बिहार चुनाव 2025: प्रशांत किशोर की एंट्री से महागठबंधन को मिल सकता है फायदा

समग्र समाचार सेवा
पटना, 20 जुलाई: बिहार में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक सरगर्मी चरम पर पहुंच चुकी है। अब तक राज्य में सत्ता की लड़ाई मुख्य रूप से महागठबंधन बनाम एनडीए के बीच देखी जाती थी, लेकिन अब चुनावी समीकरणों में एक नया मोड़ आ गया है। रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज की सक्रियता ने मुकाबले को और रोचक बना दिया है।

तेजस्वी बनाम नीतीश की टक्कर में तीसरी ताकत

वरिष्ठ पत्रकार सतीश के. सिंह ने हाल ही में एक बातचीत में कहा कि इस बार चुनावी लड़ाई तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार के बीच बेहद करीबी होने वाली है। एनडीए को जहां नीतीश कुमार के अनुभव और शासन मॉडल का लाभ मिल रहा है, वहीं तेजस्वी यादव की लोकप्रियता और युवा नेतृत्व भी बड़ी भूमिका निभा रहा है। इन दोनों के बीच अब प्रशांत किशोर की पार्टी की एंट्री ने समीकरणों को जटिल बना दिया है।

सतीश सिंह के मुताबिक, प्रशांत किशोर जितना भी वोट बैंक खींचेंगे, उसका लाभ अंततः महागठबंधन को ही मिलेगा। आरजेडी को यादव और मुस्लिम समुदाय का पारंपरिक समर्थन हासिल है, वहीं कांग्रेस दलित मतदाताओं में पकड़ बनाने की कोशिश कर रही है। यदि ये सभी फैक्टर मिलते हैं, तो महागठबंधन 30 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर हासिल कर सकता है।

प्रशांत किशोर की रणनीति और भरोसा

कुछ दिन पहले एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने कहा था कि वे बिहार में बदलाव के इरादे से आए हैं। उन्होंने कहा कि वे चाहें तो 10 सीट जीत सकते हैं या एक भी नहीं, लेकिन यदि जनता ने उनकी बात समझ ली, तो वे इतनी सीटें जीतेंगे कि गिनती करना मुश्किल हो जाएगा। इस बयान से साफ है कि वह परिणाम से ज्यादा जनसंपर्क और जनविश्वास को प्राथमिकता दे रहे हैं।

प्रशांत किशोर की रणनीति उन मतदाताओं को टारगेट कर रही है जो पारंपरिक दलों से असंतुष्ट हैं और बदलाव चाहते हैं। इससे आरजेडी और कांग्रेस जैसे दलों को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल सकता है।

सर्वे में तेजस्वी आगे, नीतीश पर दबाव

हाल ही में आए कई सर्वेक्षणों में तेजस्वी यादव को सीएम पद के लिए जनता की पहली पसंद बताया गया है। नीतीश कुमार दूसरे स्थान पर हैं, लेकिन उनके समर्थन में गिरावट दर्ज की जा रही है। वरिष्ठ पत्रकारों की राय है कि एनडीए के पास फिलहाल नीतीश के अलावा कोई ठोस विकल्प नहीं है। यदि एनडीए जीत भी जाती है, तो मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश को ही आगे करना पड़ेगा।

बिहार की राजनीति एक बार फिर से गहरी रणनीति और अप्रत्याशित मोड़ों के लिए तैयार हो रही है।

 

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