विकसित भारत हेतु नीडो-एजुकेशन: नीडोनॉमिक्स फ्रेमवर्क में लिप सर्विस से परे नेतृत्व
परख अंतर्दृष्टि, गीता-प्रेरित मूल्यों और स्मार्ट नीडो-गवर्नेंस के साथ भारत की शैक्षिक प्रणाली में सुधार
प्रो. मदन मोहन गोयल, प्रवर्तक नीडोनॉमिक्स एवं पूर्व कुलपति
हाल ही में जारी परख (पी.ए.आर.ए.के.एच 2024 ) राष्ट्रीय सर्वेक्षण—( ज्ञान के प्रदर्शन, जांच, समीक्षा और विश्लेषण के माध्यम से समग्र विकास )—सिर्फ एक और सरकारी दस्तावेज नहीं है। यह भारत की शिक्षा व्यवस्था का एक सशक्त निदान है और राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई की पुकार है। इसलिए यह केवल औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि गंभीर, निरंतर और मूल्यों पर आधारित परिवर्तन की मांग करता है।
नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (एनएसटी ) का आह्वान है कि सभी हितधारक—नीति-निर्माता, शिक्षक, अभिभावक और विद्यार्थी— पी.ए.आर.ए.के.एच 2024 की रिपोर्ट को ध्यानपूर्वक पढ़ें और इसके निष्कर्षों को व्यावहारिक, मूल्य-आधारित बदलाव के रूप में आत्मसात करें।
आज जब भारत विकसित भारत बनने की आकांक्षा रखता है, तब शिक्षा इस यात्रा की रीढ़ होनी चाहिए। लेकिन जब रीढ़ ही कमजोर हो, तो लक्ष्य दूर हो जाता है। हमारी शिक्षा प्रणाली की मूल समस्याएं—विशेष रूप से शिक्षक गुणवत्ता, संस्थागत नेतृत्व और आध्यात्मिक आधार—अब अनदेखी नहीं की जा सकतीं। सुधारों के लिए केवल बातें नहीं, नीडोनॉमिक्स आधारित नेतृत्व की आवश्यकता है, जो आर्थिक तर्क को नैतिक और आध्यात्मिक ज्ञान के साथ जोड़ता है।
1. शिक्षा की नींव का संकट: एक शिक्षक का दृष्टिकोण
शिक्षकों के परिवार में जन्म लेकर—चार पीढ़ियों तक—मैं केवल नीति-निर्माण के नजरिये से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत पीड़ा से भी बोल रहा हूँ। मैंने अपनी आँखों से शिक्षा व्यवस्था में दरारें गहराते देखी हैं। ये दरारें केवल पुरानी पाठ्य पुस्तकों या अधूरी भौतिक सुविधाओं से नहीं, बल्कि शिक्षा के व्यवसायीकरण, ज्ञान की वस्तुकरण और गुरु-शिष्य संबंधों के विघटन से उत्पन्न हुई हैं।
शिक्षण अब एक सेवा कम, और पेशा अधिक बन गया है। शिक्षक-छात्र का रिश्ता प्रेरणादायी नहीं, बल्कि लेन-देन का हो गया है। इसका मूल कारण शिक्षक प्रशिक्षण में आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा की अनुपस्थिति है। जब तक हम शिक्षकों को मूल्य, नैतिकता और सहानुभूति का साक्षात उदाहरण नहीं बनाएँगे, हम विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण नहीं कर सकते।
2. नीडो–शिक्षा: कक्षा की चार दीवारों से परे
नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट द्वारा कल्पित नीडो–शिक्षा एक ऐसी शिक्षा की मांग करती है जो ज़रूरत-आधारित हो, मूल्य-प्रधान हो, बाज़ार-प्रधान नहीं, और समाज के कल्याण से जुड़ी हो, न कि केवल लाभ से।
पारंपरिक कक्षा मॉडल, जो पाठ्यक्रम की पूर्ति और परीक्षा परिणामों पर केंद्रित है, अब अपर्याप्त हो चुका है। हमें पाठ्यक्रम पुनर्निर्माण, नैतिक शिक्षा, समावेशी पद्धतियाँ और भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस ) के अनुरूप शिक्षक प्रशिक्षण की आवश्यकता है। भारतीय परंपरा में शिक्षा केवल सूचना का हस्तांतरण नहीं, बल्कि बुद्धि का जागरण और इंद्रियों का अनुशासन रहा है। इसी दृष्टिकोण को पुनः जागृत और आधुनिक रूप से परिकल्पित करना होगा।
3. गुरु–शिष्य संबंध की पुनर्स्थापना: आईकेएस और आध्यात्मिकता के माध्यम से
गुरु-शिष्य संबंध को पुनर्जीवित करने के लिए हमें शिक्षक प्रशिक्षण में आध्यात्मिक तत्वों को सम्मिलित करना होगा। शिक्षक केवल ज्ञान देने वाले नहीं, बल्कि प्रेरणा देने वाले, मार्गदर्शक और नैतिक रूप से उन्नत बनाने वाले होने चाहिए।
इसके लिए धर्म, आत्म-अनुशासन और शिष्य की विशिष्टता का सम्मान आवश्यक है, जैसा कि भारतीय ज्ञान परंपरा सिखाती है। गुरु–शिष्य परंपरा को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में समाहित किया जाना चाहिए—इसके मूल्यों को सुरक्षित रखते हुए।
यह आध्यात्मिक आधार धर्म नहीं, बल्कि नैतिक दिशा सूचक यंत्र है, जो शिक्षकों को वर्तमान समय की चुनौतियों—भावनात्मक तनाव, विविध सीखने की आवश्यकताएँ, डिजिटल ध्यान भटकाव और नैतिक भ्रम—से उबरने में सहायता करता है।
4. अभिभावक–शिक्षक साझेदारी: शिक्षा की सफलता की भूली हुई कड़ी
शिक्षा में सफलता के लिए सबसे उपेक्षित उपकरणों में से एक है अभिभावक–शिक्षक साझेदारी। वर्तमान प्रणाली में यह या तो औपचारिकता है या पूरी तरह अनुपस्थित।
नीडोनॉमिक्स फ्रेमवर्क में यह साझेदारी अनिवार्य बन जाती है। शिक्षक और अभिभावक मिलकर विद्यार्थी की प्रगति, सीखने की कमजोरियों और भावनात्मक समर्थन पर कार्य करें। नियमित रूप से ऑफलाइन या ऑनलाइन अभिभावक-शिक्षक बैठकें संस्थागत प्रक्रिया बननी चाहिए, विकल्प नहीं।
विद्यालयों को अभिभावकों को सह–शिक्षक के रूप में सशक्त बनाना चाहिए, विशेषकर प्रारंभिक शिक्षा और बुनियादी स्तरों पर। वर्कशॉप, डिजिटल डैशबोर्ड और साझा मूल्यांकन रिपोर्ट से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि शिक्षा घर और स्कूल दोनों में निरंतर चले।
5. गीता–प्रेरित नीडोनॉमिक्स और समय अनुशासन की शक्ति
श्रीमद्भगवद्गीता के अनेक उपदेशों में, समय अनुशासन और निष्काम कर्म की शिक्षा शिक्षा-क्षेत्र के लिए अत्यंत उपयोगी है।
गीता-प्रेरित नीडोनॉमिक्स प्रातःकालीन कार्य की अनुशंसा करता है, केवल धार्मिक कारणों से नहीं, बल्कि मानसिक स्पष्टता, उत्पादकता और दिनचर्या के लिए। जब शिक्षक और विद्यार्थी दोनों अपने जैविक घड़ी को प्रातःकालीन बौद्धिक प्रदर्शन के अनुसार ढालते हैं, तो सीखना आनंददायक और प्रभावी बनता है।
गीता यह भी सिखाती है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो। यह सिद्धांत यदि शिक्षा में अपनाया जाए, तो अंकों, रैंकिंग और प्लेसमेंट से जुड़ा तनाव कम किया जा सकता है। रोजगार नहीं, आत्मविकास के लिए सीखना शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए।
इसी के साथ, शिक्षा को नीडो–एम्प्लॉयबिलिटी की दिशा में भी बढ़ना चाहिए—ज्ञान के साथ-साथ जीवन कौशल, समस्या समाधान, सहयोग और नैतिक विवेक को भी बढ़ावा देना। इसके लिए पीपीपी (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) मॉडल का उपयोग व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास में करना होगा। नीडो–गवर्नेंस के माध्यम से हम प्रशिक्षण में निवेश के प्रतिफल (आर.ओ.टी.आई ) को मापने योग्य और प्रभावी बना सकते हैं।
6. स्ट्रीट स्मार्ट नेतृत्व: समय की मांग
यूनेस्को 2024-25 रिपोर्ट ने शिक्षा में नेतृत्व की आवश्यकता को रेखांकित किया है। लेकिन सभी नेतृत्व समान नहीं होते।
भारत को चाहिए स्ट्रीट S स्मार्ट नेतृत्व—सरल, नैतिक, क्रियाशील, उत्तरदायी और पारदर्शी। यह केवल एक संक्षिप्त रूप नहीं, बल्कि नीडो–गवर्नेंस के लिए आवश्यक नैतिक और प्रभावी नेतृत्व का सार है।
शैक्षिक नेतृत्व में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और नैतिक आचरण को बढ़ावा देना चाहिए। उन्हें केवल प्रशासक नहीं, नवाचार और समावेशन के प्रेरक बनना होगा। नेतृत्व केवल अधिकार नहीं, बल्कि दृष्टि, जिम्मेदारी और चरित्र का नाम है।
7. निष्कर्ष:
नई शिक्षा नीति (एनईपी ) एक व्यापक रोडमैप प्रदान करती है, पर इसके पूर्ण लाभ तभी मिल सकते हैं जब इसे नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (एनएसटी ) के साथ समन्वित किया जाए। यह संयोजन— एनईपी + एनएसटी —टिकाऊ, समावेशी और उद्देश्य-निर्देशित सुधार ला सकता है।
आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्यों का पुनर्संयोजन, गीता-प्रेरित अनुशासन, अभिभावक-शिक्षक साझेदारी और स्ट्रीट स्मार्ट नेतृत्व को बढ़ावा देकर, हम नीडो–शिक्षा की नींव रख सकते हैं। यही वह शिक्षा है जिसकी भारत को आवश्यकता है— सकल घरेलू उत्पाद में ही नहीं, बल्कि बौद्धिक, नैतिक और भावनात्मक रूप से विकसित भारत के निर्माण के लिए।
पाँच मुख्य बातें :
- पी.ए.आर.ए.के.एच 2024 केवल चर्चाओं का विषय नहीं, बल्कि त्वरित, परिणाम-केंद्रित सुधारों की मांग करता है।
- आईकेएस आधारित आध्यात्मिक और मूल्य–आधारित शिक्षक प्रशिक्षण आवश्यक है—रिश्ते सुधारने और चरित्र निर्माण के लिए।
- अभिभावक–शिक्षक सहयोग को औपचारिक रणनीति के रूप में लागू किया जाना चाहिए, विशेषकर बाल विकास में।
- गीता–प्रेरित समय अनुशासन और निष्काम कर्म शिक्षा को आंतरिक विकास की यात्रा बना सकते हैं।
- स्ट्रीट स्मार्ट नेतृत्व से शिक्षा व्यवस्था में विश्वास, पारदर्शिता और परिवर्तन सुनिश्चित किया जा सकता है।
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