कांग्रेसमय’ होती भाजपा के अन्तःपुर में असन्तोष की आहट
– कमल दुपट्टा पहनते ही दलबदलू की पौ बारह
-निष्ठावान कार्यकर्ता , विधायक ठनठन गोपाल
– सबसे ज्यादा परेशान हैं दूसरी पंक्ति के नेता
– नेता पुत्रों की जमात भी भविष्य के लिए परेशान
-डॉ राकेश पाठक
मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण कांग्रेसीकरण की राह पर सरपट दौड़ रही है। बीते मार्च महीने में ज्योतिरादित्य सिंधिया के जंगी दलबदल के बाद सत्ता में लौटी पार्टी अब भी कांग्रेस से विधायकों के आयात में तन,मन धन से जुटी है।
लगातार ‘कांग्रेसमय’ होने से भाजपा के अन्तःपुर में असंतोष का लावा खदबदा रहा है। इस असंतोष को बाहर आने से रोकने के उपाय नहीं किये गए तो ये लावा उपचुनाव में नतीजों को झुलसा सकता है।
ख़ास तौर पर भाजपा के नेता पुत्रों में अपने भविष्य को लेकर चिंता व्यापी हुई है। इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जिनके पिता को हराने वाले ही आज मंत्री हैं और उनकी ही पार्टी की तरफ़ से मैदान में हैं। नेता पुत्रों की बेचैनी अब सामने आने लगी है।
मार्च में कांग्रेस विधायकों के दल बदल से मप्र में भाजपा ने सरकार बनाई है। ख़ाली हुई सीटों पर 3 नवम्बर को मतदान होना है। सरकार में बने रहने के लिये भाजपा के सामने ज्यादा कठिन लक्ष्य नहीं है फिर भी वह कांग्रेस विधायकों से इस्तीफ़े दिलाकर उन्हें आयात करने में लगी है। मतदान के चंद दिन पहले दमोह के कांग्रेस विधायक का इस्तीफ़ा इसी क़वायद की कड़ी है।
– दलबदल करने वाले ख़ूब मजे में हैं…
कांग्रेस से आने वाले विधायकों को फौरन से पेश्तर मंत्री या निगम मंडल का मंत्री दर्ज़ा का अध्यक्ष पद मिल गया है। सिंधिया कोटे से आये विधायकों को मंत्री पद देने से भाजपा के ऐसे ऐसे विधायक वंचित रह गए जो पांच,सात बार तक के विधायक हैं।
यहां तक कि जो निर्दलीय प्रदीप जायसवाल कमलनाथ सरकार में खनिज मंत्री थे उन्हें शिवराज सराकार ने खनिज निगम का अध्यक्ष बना कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने में देर नहीं की।
बड़ा मल्हार के कांग्रेस विधायक प्रद्युम्न लोधी तो और भी क़िस्मत वाले रहे। सुबह विधानसभा से इस्तीफ़ा दिया।दोपहर में भाजपा की सदस्यता का दुपट्टा पहना और शाम तक नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष बन कर कैबिनेट मंत्री का दर्ज़ा पा कर घर लौटे।
– कई बार से विधायक फिर भी वंचित…
भाजपा में ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है जो पिछली कई बार से एमएलए का चुनाव जीत कर आ रहे हैं। जिनमें से कुछ तो पिछली भाजपा सरकारों में लगातार मंत्री भी रहे लेकिन अब उन्हें लाल बत्ती से महरूम कर दिया गया है।
मंत्री बनने से वंचित रह गए भाजपा विधायकों में अजय बिश्नोई, गौरीशंकर बिसेन,करण सिंह वर्मा ,रामपाल सिंह, देवी सिंह सैयाम,राजेन्द्र शुक्ल जैसे दिग्गज शामिल हैं। पिछली बार विधानसभा अध्यक्ष रहे सीताशरण शर्मा को भी मंत्रिमंडल में कोई जगह नहीं मिल सकी।
अजय बिश्नोई तो पार्टी की इस दलबदल की रीति नीति पर पिछले महीने खुलकर सवाल उठा चुके हैं।
अपने ट्विटर हेंडिल पर साफ़ लिख चुके हैं कि शिवराज और पार्टी को इस तरह सरकार नहीं बनाना चाहिये था। बिश्नोई ने यह आशंका भी जताई थी कि कांग्रेस से आये लोगों को उपकृत करने से पार्टी का निष्ठावान कार्यकर्ता हताश हो सकता है।
इन सबको मंत्री पद इसलिए नहीं मिल सका क्योंकि सिंधिया के साथ आये विधायकों को डील के मुताबिक़ मंत्री पद देना ही था। ये सारे वंचित नेता पार्टी के अन्तःपुर
में अपना असंतोष समय समय पर दर्ज़ करवाते रहते हैं।
-पिछला चुनाव हारने वाले भी परेशान..
सन 2018 के चुनाव में मैदान में उतरे और खेत रहे नेता भी परेशान हैं। इनमें मंत्री रहे जयंत मलैया, जयभान सिंह पवैया, रुस्तम सिंह, लाल सिंह आर्य, दीपक जोशी आदि शामिल हैं।
पिछली दफ़ा दिग्गज़ नेता गौरीशंकर शेजवार का टिकिट काट कर भाजपा ने उनके बेटे मुदित को उतारा था।
मुदित जिन डॉ प्रभुराम चौधरी से हारे वही आज भाजपा प्रत्याशी हैं। शेजवार पिता-पुत्र का असन्तोष खुलकर सामने है जिसकी शिकायत भी पार्टी आला कमान तक हो गयी है।
पिछली सरकार में वित्त मंत्री रहे जयंत मलैया को हराने वाले राहुल लोधी रविवार को भाजपा में आ गए हैं।
इससे मलैया की बेचैनी बढ़ गयी है।
पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी भी अपना असंतोष दर्ज़ कराने कुछ दिन भारी भरकम काफ़िले के साथ शिवराज सिंह के श्यामला हिल्स निवास पर चढ़ाई कर चुके हैं।
पिछली दफ़ा कांग्रेस प्रत्याशी राजवर्धन सिंह दत्तीगांव से हारे मालवा के दिग्गज नेता भवँर सिंह शेखावत जैसे नेता अब तक राजवर्धन को अपनी पार्टी में पचा नहीं पाए हैं। वे पार्टी की भरी मीटिंग तक में राजवर्धन के ही सामने अपना गुबार निकालते रहे हैं।
इन सबकी पीड़ा यह है कि जिस कांग्रेस प्रत्याशी से हार कर ये हाशिये पर पहुंचे हैं आज वही व्यक्ति उनकी अपनी पार्टी का प्रत्याशी बन गया है। इनकी विवशता यह भी है कि पार्टी के निर्देश पर इन्हें अपने सनातन राजनैतिक शत्रु का झंडा-डंडा उठाकर चुनाव प्रचार करना पड़ रहा है।
इन भाजपा नेताओं के सामने अपने भविष्य को लेकर संकट खड़ा हो गया है। अगर दलबदल कर आये कांग्रेसी चुनाव जीत गए तो मात्र तीन साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में उनका टिकिट काटना असम्भव हो जायेगा।
दलबदल कर आये नेता आज भी बिना विधायक बने मंत्री हैं और जीत गए तो मंत्री रहना तय है।
ऐसे में मलैया,पवैया, लाल सिंह, शेजवार,जोशी ,रुस्तम जैसे तमाम नेताओं के असंतोष को साधना भी पार्टी के लिये के टेढ़ी ख़ीर बन गया है।
नेता तो नेता उनके पुत्र भी बेचैन..
भाजपा में लगातार कांग्रेसी कुनबे से हो रही आमद से पार्टी के कई नेताओं की अगली पीढ़ी भी बेचैन है।
अपने पिता की राजनैतिक विरासत सम्हालने को आतुर इन नेता पुत्रों की राह में दलबदल करने वालों ने रोड़े अटका दिए हैं।
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र रामेंद्र सिंह रामू पिछले कुछ सालों से ग्वालियर और दिमनी( मुरैना) सीटों पर मेहनत कर रहे हैं। अब इन दोनों सीटों में कांग्रेस से आयातित नेताओं के उतरने से रामू की राह आसान नहीं रह गयी। दलबदल वाले जीते तो 2023 के विधानसभा चुनाव के समय रामू के लिये गुंजाइश नहीं रहेगी।
पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे प्रभात झा के बेटे तुषमुल भी ग्वालियर पूर्व में सक्रिय रहते हैं। इनके अलावा पूर्व मंत्री माया सिंह के पुत्र पीताम्बर प्रताप सिंह की नज़र भी ग्वालियर पूर्व सीट पर है लेकिन यहां कांग्रेस से आये मुन्नालाल गोयल जीते तो इन दोनों की राह में गति अवरोधक बनना तय है।
मुरैना सीट पर पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह के पुत्र राकेश सिंह अपने लिये जमावट कर रहे हैं। वे जिला पंचायत के सदस्य हैं और अध्यक्ष बनते बनते रह गए थे। अब उनके पिता को हराने वाले रघुराज कंसाना उन्हीं की पार्टी से मैदान में हैं।
ज़ाहिर है राकेश सिंह का रास्ता रुकेगा।
गौरीशंकर शेजवार के पुत्र मुदित तो खुलकर ताल ठोके हुए हैं।
पार्टी के भीतर यह चर्चा गर्म है कि क्या पार्टी के निष्ठावान और प्रतिबद्ध कार्यकर्ता के हिस्से में सिर्फ़ दरी बिछाना और कुर्सी लगवाना ही बचेगा???
सत्ता की कढ़ाही में से रबड़ी, मलाई कांग्रेस से आये लोगों के दोने में देख कर कार्यकर्ता बेचैन है। देखना है उपचुनाव में इस असन्तोष से पार्टी कैसे पार पाती है??
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