भारत के यशस्वी कथाकार शैलेश माटियानी ने विश्व साहित्य को एक नई दिशा दी -डाक्टर रमेश पोखरियाल

श्री पोखरियाल ने हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के वेबिनार में की शिरकत

समग्र समाचार सेवा।

14 अक्टूबर 2020 को प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार शैलेश मटियानी की नब्बेवीं वर्षगाँठ के अवसर पर “लेखक शैलेश मटियानी तथा हिंदी साहित्य में उनका योगदान” विषय पर हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के भारत-विद्या विभाग, जर्मनी द्वारा केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, भारत के सहयोग से एक वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसमें यूरोप एवं भारत से हिंदी के प्रमुख साहित्यकारों, विद्वानों एवं विद्यार्थियों ने भाग लिया। वेबिनार की औपचारिक शुरुआत माननीय शिक्षा मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के वीडियो संदेश से की गयी, जिसमें डॉ निशंक ने वेबिनार में शामिल सभी वक्ताओं एवं श्रोताओं का अभिनंदन करते हुए एवं उत्तराखंड के अनेकों साहित्यकारों को याद करते हुए शैलेश मटियानी के जीवन एवं उनके साहित्य पर विस्तार में अपनी बात रखी। उन्होंने याद दिलाया कि शैलेश मटियानी का संघर्षमय जीवन पहाड़ जैसा ही कठिन रहा है और उनके संघर्ष की ताप उनके साहित्य में प्रतिबिंबित हुई है।

मटियानी ने जीवन में हमेशा संघर्षों से मुक़ाबला किया और कभी हार नहीं मानी और न ही कभी कठिन परिस्थितियों में भी अपने सम्मान से समझौता किया। उनकी कहानियों और उपन्यासों को पढ़ने पर ऐसा लगता है कि जो दर्द उनके साहित्य में झलकता है, उसका एक-एक गट्टा, क्षण मटियानी ने जीवन में जिया है। मटियानी की ख़ासियत यह है कि उनके पात्र जीवंत होकर बोल उठते हैं। यह मटियानी की बड़ी साहित्यिक कला है, जो उन्हें महान साहित्यकार बनाती है।

 

माननीय शिक्षा मंत्री जी ने आयोजकों को साधुवाद देते हुए कहा कि इस वेबिनार के माध्यम से देश-विदेश के विद्वानों एवं छात्र-छात्राओं को मटियानी जी एवं उनके साहित्य को जानने और समझने का अवसर मिलेगा और आगे के लिए प्रेरणा भी मिलेगी। लोगों को मटियानी का साहित्य पढ़ने से भारतीय और विशेषतः उत्तराखंड और हिमालय के परिदृश्य, प्रकृति, संस्कृति, समाज और वहाँ के समाज का आध्यात्म, परंपराएँ, जीवन की सरलता और सुंदरता और साथ ही कठिनाइयों के बारे में भी जानकारी मिलेगी।

भारत के शिक्षा मंत्री डॉ निशंक जी के उद्बोधन को सुनकर हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के भारत-विद्या विभाग तथा यूरोप के अन्य विश्वविद्यालयों के विद्वान एवं छात्र-छात्राएँ बहुत गदगद थे। छात्र-छात्राओं का कहना था कि मंत्री जी ने अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकालकर इतनी सुन्दर, सरल और सटीक भाषा शैली में हमें हिंदी के एक महान लेखक के बारे में बताया। यह अवसर हमारे लिए प्रेरणादायक था और एक यादगार क्षण भी। विदित हो कि डॉ निशंक 2007 में हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में आए थे, जहाँ उनकी कुछ कहानियों और कविताओं का जर्मन अनुवाद किया गया था। 

शैलेश मटियानी एवं उनके साहित्य पर आयोजित इस वेबिनार को दो सत्रों में विभाजित किया गया था। पहले सत्र में प्रसिद्ध साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, श्री विभूति नारायण राय, श्री देवेंद्र मेवाड़ी एवं साहित्यकार और केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष श्री अनिल शर्मा ‘जोशी’ ने अपने विचार व्यक्त किए। पद्मश्री कवि लीलाधर जगूड़ी ने शैलेश मटियानी के संदर्भ में “लेखक की निर्मिति एवं नियति” पर विस्तार में बात की।

उन्होंने वाल्मीकि एवं रामायण का संदर्भ देते हुए कहा कि कैसे रामायण के मूलपाठ से पाठक के सामने चित्र उभरते हैं, उसी तरह मटियानी के साहित्य में हमें शब्दों और पंक्तियों में उत्तराखंड के भौगोलिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के चित्र दिखते हैं। उन्होंने कहा कि मटियानी हिंदी के एक महत्वपूर्ण लेखक हैं अतः उन पर हो रहा यह वेबिनार बहुत ही सार्थक है। साहित्यकार एवं महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि, वर्धा के पूर्व कुलपति, श्री विभूति नारयण राय ने अपने संस्मरणों के माध्यम से मटियानी के जीवन में संघर्षों और कठिनाइयों को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि जब वे इलाहबाद के एसपी थे, तो अक्सर मटियानी से मिलते थे। उन्होंने यह भी कहा कि मटियानी हिंदी के इतने बड़े साहित्यकार थे लेकिन हिंदी आलोचकों ने उन्हें और उनके साहित्य का उचित मूल्याङ्कन नहीं किया। विभूति नारायण राय ने कहा कि एक बात उत्तराखंड सरकार ने अच्छी की है कि मटियानी के नाम पर पुरस्कार शुरू किए और मटियानी के नाम पर रामगढ़, नैनीताल में एक पुस्तकालय बनवाया। साहित्यकार देवेंद्र मेवाड़ी ने मटियानी के साथ बिताए क्षणों और अनुभवों के बारे में बड़े ही रोचक ढंग से अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि कैसे मटियानी उनके यहाँ आते थे और ज़मीन पर लेट जाते थे, कैसे वे अपना पूरा काम स्वयं ही करते और उन्हें कहानियाँ सुनाते और कैसे मटियानी अपने ट्रंक में अपना पूरा पुस्तकालय तथा अन्य आवश्यक चीज़ें लेकर चलते थे। उन्होंने बताया कि मटियानी ग़रीबी में जीना पसंद करते थे लेकिन कभी भी अपनी ईमानदारी और वसूलों से समझौता नहीं करते थे। वे बेशक़ दूसरों का दोष अपने ऊपर ले लेते थे लेकिन कभी भी दूसरों को परेशान नहीं देख सकते थे। उन्होंने वेबिनार के आयोजक डॉ राम प्रसाद भट्ट का आभार प्रकट करते हुए कहा कि ज़रूर हिंदी के लेखकों और आलोचकों ने मटियानी की अनदेखी की है लेकिन आज मटियानी जी यह देखकर बहुत ख़ुश हो रहे होंगे कि उनके जीवन और साहित्य पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में वेबिनार हो रहा है और दुनियाभर के लोग उनके साहित्य पर विचार कर रहे हैं। साहित्यकार एवं केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, आगरा, के उपाध्यक्ष श्री अनिल शर्मा ‘जोशी’ ने “शैलेश मटियानी के कृतित्व और जीवन दृष्टि” पर अपने विचार रखे। उन्होने कहा कि मटियानी की एक-एक कहानी हिंदी साहित्य की उत्तम कृति है और मटियानी का साहित्य दुनिया के अनेकों महान साहित्यकारों के साहित्य की श्रेणी में आता है।

उन्होंने मटियानी के साहित्य में प्रतिबिंबित जीवन, समाज पर बात करते हुए मटियानी की अंतर्दृष्टि को एक उच्चकोटि के लेखक का गुण बताया। उन्होंने कहा जहाँ एक ओर मटियानी के साहित्य की तुलना मैक्सिम गोर्की, तुर्कनेव के साहित्य से की जाती है आश्चर्य की बात है कि हिंदी के लेखक और आलोचक वर्ग ने मटियानी की भयंकर अनदेखी की है और यहाँ तक कि उनके बारे में अनेक अजीब बातें भी की हैं। हमें मटियानी के साहित्य एवं उनके विचारों का सम्रगता से अध्ययन करने की ज़रूरत है। उन्होंने आह्वान किया कि हमें मटियानी के साहित्य पर आगे भी विचार करते रहना चाहिए और मटियानी के साहित्य को अनुवाद के माध्यम से दुनिया के सामने प्रस्तुत करना चाहिए। प्रथम सत्र का संचालन वेबिनार के आयोजक एवं हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के आधुनिक भारत-विद्याविद् डॉ राम प्रसाद भट्ट ने की। उन्होंने बताया कि वे मटियानी के साहित्य पर शोध कर रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि मटियानी के जीवन और उनके साहित्य से भारत से बाहर भी लोग परिचित हों और यह वेबिनार शैलेश मटियानी को उनके नब्बेवें जन्मदिन पर एक छोटी श्रद्धांजलि है।

उन्होंने राजेंद्र यादव, नागार्जुन और गिरिराज किशोर का संदर्भ देते हुए कहा कि प्रेमचंद के बाद हिंदी में मटियानी ऐसे लेखक हैं जिनके पास सबसे अधिक विश्व स्तर की कहानियाँ हैं और उनके जीवन एवं साहित्य को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि मटियानी कई मायनों में जे जां, मैक्सिम गोर्की और चेख़व के समकक्ष बैठते हैं। मटियानी अपने पत्रों को विभिन्न भौगोलिक वातावरण में स्थापित करते हैं और भौगोलिकता के बदलते ही मटियानी के पात्रों की सामाजिक-सांस्कृतिक एवं भाषिक पृष्ठभूमि प्रमुखता से उभर कर आती है। मटियानी अपने पात्रों को जीवंत बनाने में दक्ष कहानीकार हैं। मटियानी और उनके साहित्य को समझने के लिए हमें उनको समग्रता में देखना होगा।  

दूसरे सत्र का संचालन सोफ़िया विश्वविद्यालय के विज़िटिंग प्रो आनंद वर्धन शर्मा ने किया। प्रो शर्मा ने बताया कि मटियानी हिंदी के एक बड़े लेखक हैं और उन्होंने सिर्फ़ कहानी और उपन्यास ही नहीं लिखे बल्कि कविताएँ भी। उन्होंने कहा कि शैलेश मटियानी की कविताओं में भी पहाड़ का दर्द है। उनकी कविताएँ बेशक़ छोटी हैं लेकिन बहुत ही मार्मिक और साथ ही बहुत गंभीर एवं प्रभावपूर्ण। प्रो शर्मा ने मटियानी की कुछ कविताएँ पढ़कर भी सुनायीं। दूसरे सत्र के पहले वक़्ता जेएनयू के प्रो देवेंद्र चौबे ने “शैलेश मटियानी : कहानी में हाशिए का सौंदर्यशास्त्र गढ़ता एक लेखक” विषय पर अपने विचार व्यवस्थित ढंग से और विस्तार में रखे। उन्होने कहा कि मटियानी ने समाज में हाशिए के लोगों को अपने साहित्य का हिस्सा बनाया, उनके जीवन और दैनिक जीवन में उनकी विभिन्न कठिनाइयों, सामाजिक एवं आर्थिक विपन्नता को बहुत ही सटीक ढंग से उजागर किया है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के पश्चात् जो दो साहित्यिक आंदोलन भारत में उभर कर आए हैं, चाहे वह वामपंथी आंदोलन हो या फिर भारतीय चिंतन परंपरा, जिसके बारे में आजकल काफ़ी चर्चा होती है, मटियानी जी उनसे या तो बहुत गहराई से नहीं जुड़े थे या फिर जुड़े ही नहीं थे। या फिर भारतीय चिंतन परंपरा से गाहे-बगाहे ही झूझते हैं या फिर व्यवस्थित ढंग से नहीं झूझते।

मटियानी के लेखन के व्यक्तित्त्व को हम चार हिस्सों में बाँट सकते हैं। वे हिंदी की राजनीति के शिकार हुए, उनके लेखन में पहाड़ प्रमुखता से आया है, अगर हमें उत्तराखंड के सामाजिक इतिहास पर काम करना हो, तो शैलेश मटियानी हमारी सबसे अधिक मदद करते हैं। मटियानी के साहित्य में उत्तराखंड के महिला समुदाय और पहाड़ एवं मैदानी क्षेत्र के वंचित व उपेक्षित समुदाय को प्रमुखता से स्थान मिला है। इसलिए जब भी साहित्य में भारतीय स्त्री समाज और वंचित समाज के इतिहास की बात आएगी, तो मटियानी के साहित्य की भी बात आएगी। मटियानी की हम अनदेखी नहीं कर सकते। डॉ प्रवीण चंद्र बिष्ट ने मटियानी के प्रथम उपन्यास बोरीवली से बोरीबंदर तक में प्रतिबिंबित महानगरीय जीवन की त्रासदी पर अपने विचार रखे। उन्होंने बोरीवली से बोरीबंदर की सामयिकता, उसका मटियानी के जीवन से संबंध और एक लेखक की लालसा, कर्मठता और नैतिक ताक़त को उद्घाटित किया। उन्होंने कहा कि मटियानी ने बोरीवली से बोरीबंदर में समाज में व्याप्त जातिप्रथा व वर्गों की विसंगतियों को उजागर किया है। यह उपन्यास पूरी तरह से मुंबई शहर के सामाजिक, व्यावसायिक और राजनैतिक वातावरण से ओतप्रोत है। इस उपन्यास का पुरुष पात्र वीरेन वास्तव में मटियानी स्वयं ही हैं।

मटियानी ने मुंबई में जिन कठिन समस्याओं का सामना किया, वही उन्होंने इस उपन्यास के माध्यम से अपने पाठकों तक पहुँचाया है। कुमाऊँ विश्वविद्यालय के प्रो देवसिंह पोखरिया ने शैलेश मटियानी के निबंध साहित्य और संपादन पर अपने विचार विस्तृत ढंग से रखे। उन्होंने मटियानी के निबंधों उनके जीवन से जोड़कर देखने पर बल दिया और आगाह किया कि मटियानी, जो हिंदी के इतने बड़े लेखक थे, उनकी कुछ लोगों की वजह से हिंदी समाज में बहुत अनदेखी की गयी है। उन्होने कहा कि लोग मटियानी की रचनाओं को अलग दृष्टि से देखते हैं और उनके बौद्धिक चिंतन को दूसरी दृष्टि से। यह मटियानी के साथ अन्याय है। मटियानी के साहित्य को बिना उनके बौद्धिक चिंतन को समझे नहीं समझा जा सकता।

प्रो पोखरिया ने बताया कि मटियानी का वैचारिक लेखन बहुत ही महत्पूर्ण है। हमें मटियानी के साहित्य में कबीर की फक्कड़ता, निराला की प्रखरता, महादेवी की उदारता और करुणा, प्रसाद की काव्यात्मकता सब मिलती हैं। विदित हो कि मटियानी ने विकल्प और जनपक्ष जैसी हिंदी पत्रिकाओं का संपादन भी किया था। अंत में केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के डॉ हरि शंकर ने सभी का आभार प्रकट किया। उन्होंने वक़्ताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए विचारों को भी संक्षिप्त में प्रस्तुत किया। वेबिनार के आयोजक हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के डॉ राम प्रसाद भट्ट ने भी सभी का आभार प्रकट किया और कहा कि हम अगले वर्ष भी मटियानी पर गोष्ठी का आयोजन करेंगे और अनुवाद एवं शोध के माध्यम से मटियानी एवं अन्य हिंदी लेखकों की कृतियों को यूरोप के जनमानस तक पहुँचाने का प्रयास निरंतर करते रहेंगे।

 

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