शैक्षणिक नेतृत्व में आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता को प्राथमिकता मिले: प्रो. एम.एम. गोयल ने आई.आई.ए.एस. शिमला में एक व्याख्यान के दौरान कहा
शिमला, 30 मई:
“शैक्षणिक नेतृत्व में नीडोगवर्नेंस के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता ( एआई ) की तुलना में आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता (एसआई) अधिक आवश्यक है,” यह कहना है भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान ( आईआईएएस ), शिमला के विज़िटिंग प्रोफेसर एवं तीन विश्वविद्यालयों के पूर्व कुलपति प्रो. मदन मोहन गोयल का। प्रो. गोयल, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट के प्रवर्तक हैं। उन्होंने यह वक्तव्य “संस्थागत प्रबंधन में नीडो-गवर्नेंस हेतु शैक्षणिक नेतृत्व” विषय पर व्याख्यान श्रृंखला के दूसरे सत्र में दिया।
इस सत्र की अध्यक्षता आईआईएएस के फेलो प्रो. जे.के.राय ने की ने की, जिन्होंने प्रो. गोयल का परिचय दिया। यह सत्र सचिव श्री एम.सी. नेगी, एआरओ श्री प्रेम चंद, श्री हेम राज, राष्ट्रीय फेलो, टैगोर फेलो, फेलो, अतिथि फेलो, आईयूसी एसोसिएट्स तथा संस्थान में निवासरत विद्वानों की उपस्थिति में आयोजित हुआ, जो आईआईएएस में सक्रिय शैक्षणिक भागीदारी को दर्शाता है।
प्रो. जे.के. राय ने प्रो. एम.एम. गोयल के व्याख्यान को शैक्षणिक शासन के लिए एक उच्च कोटि का, नवोन्मेषी मॉडल बताया, जो गीता से प्रेरित “स्वधर्म” पर आधारित है। उन्होंने “प्रतिबद्धता नहीं, बल्कि आत्मचेतन भक्ति” की भावना को रेखांकित किया और भगवान राम को समाज-सेवा में कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक बताया।
प्रो. गोयल ने बल दिया कि तकनीकी दक्षता के साथ-साथ आत्मज्ञान, मूल्यों और नैतिक निर्णय क्षमता का विकास आज की शिक्षा व्यवस्था की अनिवार्यता है।
प्रो. गोयल ने कहा, “कृत्रिम बुद्धिमत्ता केवल जानकारी दे सकती है, निर्णय नहीं। निर्णय विवेक से आते हैं, और विवेक आता है आध्यात्मिक चेतना से। जब तक नेतृत्व आत्मचिंतनशील नहीं होगा, तब तक वह समाज के लिए कल्याणकारी दिशा तय नहीं कर सकता।”
प्रो. गोयल ने यह भी स्पष्ट किया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग सहायक भूमिका में होना चाहिए, न कि नेतृत्वकारी निर्णयों में। शिक्षा के क्षेत्र में नेतृत्व को केवल तकनीक का नहीं, बल्कि सत्य, सेवा, और संतुलन के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
अपने व्याख्यान में प्रो. गोयल ने भारतीय दर्शन, भगवद्गीता, और सांस्कृतिक चेतना का उल्लेख करते हुए कहा कि “मन, बुद्धि और आत्मा के समन्वय से ही संपूर्ण नेतृत्व विकसित होता है।”
प्रो. गोयल ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों को दूर करने के लिए नीडो–गवर्नेंस आधारित स्पष्ट सार्वजनिक–निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा मॉडल एनईपी को वास्तव में नीडो–शिक्षा से जोड़ते हुए नीडो–रोजगार को सुनिश्चित करेगा।
उन्होंने शैक्षणिक नेतृत्व की प्रभावशीलता और दक्षता को बढ़ाने के लिए गीता–आधारित नीडोनॉमिक्स को अपनाने की वकालत की।
प्रो. गोयल ने यह भी कहा कि “पेपरवेट से खेलने” जैसी बातों में भी सशक्तिकरण और आत्मबोध की आवश्यकता होती है, जिसे विकेंद्रीकरण के दृष्टिकोण से ही प्राप्त किया जा सकता है।
प्रतिस्पर्धा नहीं, सहयोग को आधार बनाकर शैक्षणिक नेतृत्व की नई कथा लिखने का आह्वान करते हुए प्रो. गोयल ने शिक्षाविदों से निडर, साहसी और उत्साही बनने की अपील की।
उन्होंने यह भी कहा कि शिक्षकों और प्रशासकों को स्ट्रीट स्मार्ट (सरल , नैतिक , क्रियाशील , उत्तरदायी , और पारदर्शी ) बनना चाहिए । श्रोताओं ने व्याख्यान के बाद प्रश्नोत्तर सत्र में प्रो. गोयल से गहन चर्चा की।
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