रमण रमण रावल।
जिस क्रूरता के साथ कोविड 19 वायरस ने दुनिया को संक्रमण और मौत के हवाले किया है, उससे समाज का अहम तबका मीडिया भी चपेट में आया है। यूं तो वह भी कोरोना वारियर्स होने का हकदार है,किन्तु मीडिया संस्थानों व सरकारों ने भी इस दिशा में खास उत्साह नहीं दर्शाया है।बावजूद इसके मीडिया ने अपने दायित्व निर्वहन में कतई कोताही नहीं बरती और ठेठ संक्रमण की अंधी सुरंग के अंतिम छोर तक घुसने से परहेज़ नहीं किया। यही वजह है कि दुनिया में करीब 12 सौ और भारत में 30 अप्रैल तक करीब 165 पत्रकारों ने जान गंवाई है। यह सिलसिला अभी भी जारी है।
युद्ध और शांति काल में बराबरी से अपनी जिम्मेदारी को अंजाम देने वाले मीडिया ने कोरोना के मद्देनजर भी कदम पीछे नहीं खींचे। यहां तक कि जब 2020 में कोरोना ने अपना जाल फैलाया,जिससे बचने के बारे में समूची दुनिया में कहीं भी बचाव की प्राथमिक जानकारी तक नहीं थी,तब भी मीडिया मैदान में डटे रहा। कहने में हर्ज नहीं कि जिस तरह से मेडिकल,पैरा मेडिकल स्टाफ और प्रशासनिक,पुलिस महकमा मोर्चा संभाले था,उसी बराबरी से मीडिया ने भी कंधे से कंधा मिलाकर काम किया । जैसा कि सुनिश्चित था, शुरुआती दौर में सावधानी की गफलत से चपेट में लोग आते गए,वैसे ही मीडियाकर्मी भी इससे बच नहीं पाए।
जेनेवा स्थित मीडिया राइट संगठन ने इस बारे में जो जानकारी जाहिर की है वह इस पेशे की जोखिम को रेखांकित करती है। उसने बताया है कि दुनिया के संक्रमित करीब 222 देशों में से 76 देशों के मीडियाकर्मी भी बड़ी संख्या में कोविड संक्रमित हुए। बेशक इनमें से ज्यादातर ठीक भी हुए,किन्तु बड़े वर्ग की जान भी गई है। ऐसे करीब 1184 मीडियाकर्मी हैं,जो संक्रमण के बाद में जान गंवा बैठे। इनमें सबसे अधिक 181 ब्राज़ील के,फिर 165 भारत के,140 पेरू के,106 मैक्सिको के,52 इटली के,51 बांग्लादेश के,47 अमेरिका के,28 ब्रिटेन के,25 पाकिस्तान के हैं।
यदि भारत की बात करें तो अकेले अप्रैल 2021 में सर्वाधिक 19 मीडियाकर्मी उप्र में,17 तेलंगाना में,13 महाराष्ट्र सहित देश में करीब 60 पत्रकार अपनी जान से हाथ धो बैठे। भारत के बारे में दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ परसेप्शन स्टडीज ने जो जानकारी जुटाई,वह पत्रकारों के कोविड संक्रमित होने पर प्रकाश डालती है। इसमें बताया गया कि पत्रकारों को कोरोना वारियर्स न मानना अभी भी चिंताजनक है। तीन चार राज्य सरकारों ने पत्रकारों को कोरोना वारियर्स माना है,जिसके तहत उनकी मौत होने पर परिजन को 50 लाख रुपए की मदद दी जाएगी,किन्तु ज्यादातर राज्य सरकारें उदासीन हैं। मप्र सरकार ने अभी इन्हें कोरोना वारियर्स तो मान लिया लेकिन आर्थिक सहायता की रकम 4 लाख रुपए ही रखी है। जबकि प्रदेश भर के पत्रकार संगठन इसे 50 लाख रुपए किए जाने की मांग कर रहे है । इंदौर प्रेस क्लब इस मामले में लगातार सरकार के समक्ष अलग,अलग स्तर से यह मांग कर रहा है।
पत्रकारों को इस महामारी में राहत की अच्छी खबर दैनिक भास्कर प्रबंधन की ओर से मिली है। हाल ही में उसके संचालक गण सुधीर,गिरीश और पवन अग्रवाल ने परिपत्र जारी कर संतोषजनक राहत पैकेज की घोषणा की है। इसमें कहा गया है कि यदि कोरोना से किसी साथी को हम खोते हैं तो उसके परिवार को एक साल तक प्रतिमाह का उसका वेतन या 30 हजार रूपए में से जो भी कम हो,उसे दिया जाएगा। बीमा कंपनी से 48 महीने के वेतन के बराबर रकम दी जाएगी।सामाजिक सरोकार के तहत बनाए गए कोष से 7 लाख रुपए दिए जाएंगे। इसी तरह ई डी एल आई (एम्पलाई डिपॉज़िट लिंक इंश्योरेंस) के तहत 35 महीने का मूल वेतन,जो अधिकतम 7 लाख रुपए तक दिए जाएंगे। साथ ही भविष्य निधि, ग्रेच्युटी व अन्य कोई भी बकाया रकम होगी,उसका तत्काल भुगतान कर दिया जाएगा। भास्कर प्रबंधन की इस सकारात्मक पहल का लाभ उसके 12 राज्यों के 3 भाषाओं के 65 संस्करण के हजारों कर्मचारियों को मिलेगा।
इसी तरह की अनुकरणीय पहल नागपुर के लोकमत समूह ने भी की है। उसके संपादकीय संचालक करण दर्डा ने लोकमत के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख संजीव गुप्ता की कोरोना से मौत होने पर उनके परिवार को 10 लाख रुपए की सहायता प्रदान की है। उनके उपचार के लिए लोकमत समूह के अध्यक्ष,पूर्व सांसद विजय दर्डा ने हर संभव प्रयास किए थे।इसी तरह संस्थान के करीब आधा दर्जन कर्मियों की कोरोना मृत्यु पर दो वर्ष का वेतन देना तय किया है।यह नीति सभी पर लागू होगी। इसके अलावा जो भी कर्मचारी संक्रमित होकर जितने भी दिन अवकाश पर रहता है, उसे पूरा वेतन दिया जाता है।
जब देश और दुनिया से कोरोना से संक्रमण,उससे उपजी बेरोजगारी,व्यापार की परेशानी और इलाज न करा पाने की बेबसी व मौतों की खबरें आ रही है,तब संस्थानों द्वारा अपने कर्मचारियों की चिंता और मदद करने की खबरें भी समाज में सुकून और सकारात्मकता बढ़ाती है।
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