समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 15नवंबर। इनका जन्म 5 अक्टूबर, 1524 ईस्वी को हुआ था। ये अंग्रेजों के शासन से कई 3 सदी पहले की वीरांगना थीं। मध्य प्रदेश के गोंडवाना में उनका शासन था। जिस गढ़मंडला राज्य पर उनका शासन था, उसका केंद्र जबलपुर में था। उनके पति गौड़ राजा दलपत शाह की असामयिक मृत्यु हो गई थी। रानी दुर्गावती ने अपने नाबालिग बेटे वीर नारायण को गद्दी पर बिठाया। हालाँकि, शासन और राजकाज वही संभाला करती थीं। इलाहाबाद के मुग़ल आक्रांता आसफ खान के साथ इनका युद्ध हुआ। इनका शसन 1550-1564 तक चला था। अकबर के आदेश पर जब मुगलों ने उन पर आक्रमण किया, तब उन्होंने होने दीवान से कहा था कि गुलाम रहने से बेहतर है युद्ध के मैदान में सम्मान से मरना। युद्ध में इन्होंने मैदान छोड़ने या दुश्मन के हाथों मरने से अच्छा खुद की जान लेना उचित समझा।
52 युद्धों में से 51 युद्धों में विजय प्राप्त करने वाली महान वीरांगना रानी दुर्गावती गोंडवाना राज्य की शासिका थीं, जिन्होंने लंबी अवधि तक शासन किया था.
रानी दुर्गावती ने अपनी चतुरता, उन्नत युद्ध कौशल एवं वीरता से तीन बार मुगल सेना से युद्ध लड़ा जिसमें उन्हें विजय प्राप्त हुई.
माँ भारती की रक्षा हेतु आक्रमणकारियों से युद्ध लड़ते हुए वर्ष 1564 में रानी दुर्गावती ने आत्म बलिदान दे दिया. वर्तमान में रानी दुर्गावती का नाम भारत की महानतम वीरांगनाओं की सबसे अग्रिम पंक्ति में आता है.
रानी दुर्गावती का महल गोंडवाना राज्य के केंद्र जबलपुर में अवस्थित है, जिसे मदन महल के नाम से जाना जाता है. इसमें एक गुप्त सुरंग थी जो मंडला के रानी दुर्गावती महल में जाकर मिलती थी.
चंदेलों की बेटी थी,
गोंडवाने की रानी थी।
चंडी थी रणचंडी थी,
वो दुर्गावती भवानी थी।।
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