2006 मुंबई ब्लास्ट केस: हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, चार हफ्तों में मांगा जवाब

समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 24 जुलाई: साल 2006 के मुंबई सीरियल ट्रेन बम धमाकों के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा 12 आरोपियों को बरी करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रोक लगा दी है। हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए महाराष्ट्र सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि यह निर्णय अब किसी कानूनी मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा और सभी आरोपियों को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया गया है।

हाईकोर्ट के फैसले पर केंद्र और राज्य की आपत्ति

21 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2006 के चर्चित ट्रेन ब्लास्ट केस में सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि सरकारी पक्ष आरोपियों के खिलाफ सबूत पेश करने में विफल रहा, इसलिए उन्हें रिहा किया जा रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि आरोपी किसी अन्य मामले में वॉन्टेड नहीं हैं, तो उन्हें तुरंत जेल से छोड़ा जाए।

इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले की गंभीरता को देखते हुए शीघ्र सुनवाई की मांग की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर आज इस पर सुनवाई की।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और अंतरराष्ट्रीय पहलू

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह की पीठ ने कहा कि कुछ आरोपी पाकिस्तानी नागरिक भी हैं, और यह मामला सीमा पार की गतिविधियों से जुड़ा है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस फैसले को किसी अन्य आतंकी केस की कानूनी मिसाल नहीं माना जाएगा।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जो आरोपी जेल से रिहा हो चुके हैं, उन्हें वापस जेल नहीं भेजा जाएगा। कोर्ट की यह टिप्पणी कानूनी संतुलन और मानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती है

मकोका मामलों पर प्रभाव की चिंता

महाराष्ट्र सरकार की ओर से तुषार मेहता ने यह आशंका भी जताई कि हाईकोर्ट का फैसला राज्य में लंबित कई मकोका मामलों पर प्रभाव डाल सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि फैसले में इस्तेमाल की गई कानूनी भाषा और निष्कर्षों से भविष्य की जांच और अभियोजन प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई से पहले अब सभी 12 आरोपियों को अपना जवाब दाखिल करना होगा, जिसके आधार पर अदालत इस मामले में अंतिम निर्णय की दिशा तय करेगी।

 

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