भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है यहां की संघीय सरकार 5 वर्ष के अंतराल में चुनाव के माध्यम से चुनी जाती है । देश के नागरिक इस चुनावी प्रक्रिया में सीधी तौर पर भाग लेते हैं । मतदान लोकतंत्र का महापर्व है । मतदान करता कौन है? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 में कहा गया है कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के लिए निर्वाचकों का चयन वयस्क मताधिकार के आधार पर होना चाहिए । देश के न्यूनतम 18 वर्ष के नागरिकों को जाति; वर्ग; धर्म; लिंग के भेदभाव के बिना वोट देने का अधिकार है । भारत में 26 जनवरी 1950 से यह व्यवस्था लागू है । प्रश्न यह उठता है चुनाव कैसे होंगे ? और इन्हें कौन सी संस्था करावेगी? संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार 25 जनवरी 1950 को निर्वाचन आयोग की स्थापना हुई यह निर्वाचन आयोग स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है अनुच्छेद 324 एक के अनुसार निर्वाचन आयोग को संसद और राज्य विधान मंडल के सभी निर्वाचकों के लिए तथा राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचन के संबंध में अधीक्षण; निदेशक एवं नियंत्रण की शक्ति प्रदान की गई है ।
भारत में पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1920 के बीच हुआ । स्वतंत्र भारत के प्रथम आम चुनाव में प्रथम मतदाता हिमाचल प्रदेश के काल्पा में 1 जुलाई 1917 को जन्मे श्याम शरण नेगी ने 34 वर्ष की उम्र में पहला मतदान
किया । किन्नौर में भारी हिमपात के कारण पांच माह पूर्व ही सितंबर 1951 में चुनाव
हुए । चुनाव के समय श्यामशरण नेगी किन्नौर के मोरंग स्कूल में अध्यापक थे । उनकी चुनाव ड्यूटी लगी हुई थी; उन्होंने कहा कि मैं मतदान करके ही अपनी ड्यूटी पर
जाऊंगा । वह सूरज निकलने से पहले ही मतदान स्थल पर पहुंच गए; जबकि उसे समय पोलिंग पार्टी भी नहीं पहुंची थी । नेगी जी ने जल्दी मतदान करने का निवेदन किया पोलिंग पार्टी ने रजिस्टर खोलकर उन्हें पर्ची दी मतदान करते ही स्वर्णिम इतिहास उन्होंने अपने नाम कर लिया और मास्टर श्यामशरण नेगी आजाद भारत के प्रथम मतदाता बन गए । नेगी जी ने कुल 106 वर्ष का जीवन जिया 22 नवंबर 2022 को उन्होंने 34 वीं बार हिमाचल प्रदेश की सरकार को बनाने के लिए मतदान किया । भारत सरकार और निर्वाचन आयोग ने उन्हें ब्रांड एंबेसडर भी बनाया था । 2014 में गूगल इंडिया ने सार्वजनिक घोषणा करके उन्हें सम्मानित भी किया था । उन्होंने अपने कार्यक्रम में आए हुए दर्शकों को मतदान के महत्व की भी याद दिलाई थी । 5 नवंबर 2022 को 106 वर्ष की उम्र में श्याम शरण नेगी जी का निधन हो गया । इस बार उन्होंने मतदान घर पर ही किया था; क्योंकि वह मतदान स्थल तक जाने में समर्थ नहीं थे । मतदान के तीन दिन बाद ही उनका निधन हो गया; अंतिम संस्कार पूरे राज्य के सम्मान के साथ किया गया ।
वर्ष 2011 में तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति प्रतिभा जी पाटिल द्वारा प्रथम मतदाता दिवस मनाने की घोषणा की गई । प्रश्न यह उठता है कि निर्वाचन आयोग को अपनी स्थापना के 61 वर्ष में राष्ट्रीय मतदाता दिवस बनाने मानने की या प्रारंभ करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? विश्व में भारत जैसे बड़े लोकतंत्र देश में भी मतदान को लेकर रुझान कम हो रहा है युवाओं में निरंतर मतदान के प्रति गिरावट एवं आरुचि देखने को मिल रही है उन्हें जागरूक बनाने के लिए भारत के निर्वाचन आयोग ने “राष्ट्रीय मतदाता दिवस “मनाने की पहल की । राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाने का उद्देश्य यह है कि देश के सभी मतदान केदो वाले क्षेत्रों में सभी पात्र मतदाताओं की पहचान की जाए पंजीकरण में वृद्धि हो नए मतदाताओं को मतदाता सूची में दर्ज किया जाए निर्वाचन फोटो पहचान पत्र उन्हें सौंपा जाए । मतदान में युवा मतदाताओं की भागीदारी बढ़े; उन्हें अपना अमूल्य मतदान करने हेतु प्रोत्साहन स्वरूप यह दिवस मनाया जाता है ।
प्रथम राष्ट्रीय मतदाता दिवस 2011 की थीम थी “नो वोटर टू बी लेफ्ट बिहाइंड” तात्पर्य की “पीछे कोई मतदाता ना छूटे” । जागरूक करने हेतु प्रशासन का सहारा लिया गया है । 1 फरवरी 2021 से “एप “के माध्यम से कार्य हो रहा है । (www.eci.gov.in) पर ऑन करके हम अपनी वोटर आईडी अभिषेक जानकारी ले सकते हैं । “हेलो वोटर्स” और एसएमएस द्वारा भी हम मतदाता सूची में अपना नाम देख सकते हैं और अपनी शिकायत भी दर्ज करा सकते हैं । वर्ष 2023 की थी “नथिंग लाइक वोटिंग आई वोट फॉर स्योर ” 25 जनवरी 2023 को भारत सरकार के निर्वाचन आयोग द्वारा 1:00 बजे एक गीत जारी किया गया । गीत के बोल हैं “मैं भारत हूं” वोट इंडिया वोट का नारा भी दिया गया । मतदान प्रक्रिया में भाग लें; “मतदाता होने पर गर्व महसूस करें” इस दिन बैच भी लगाया गया । मतदाता दिवस की शपथ दिलाई जाती है ।बैच में लिखा रहता है “मतदाता बनने पर गर्व है” । स्पष्ट है कि राष्ट्रीय मतदाता दिवस का उद्देश्य युवा मतदाताओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करना; सार्वभौमिक मताधिकार को सुनिश्चित करना है । इस दिन राष्ट्रीय आयोग के अधिकारियों को श्रेष्ठ कार्य हेतु पुरस्कृत की भी किया जाता है ।
मतदान के मर्म को दंतकथा के माध्यम से समझाने का प्रयास है । किसी बड़े राज्य में एक राजा शासन करता था । एक बार उसके राज्य में महामारी फैल गई बहुत सारे लोग मरने लगे । राजा ने इसे रोकने के लिए कई उपाय किए कितने ही पैसे खर्च कर डाले पर यह बीमारी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी । लोग दिन प्रतिदिन मरते रहे एक दिन दुखी होकर राजा ने भगवान से प्रार्थना की । राजा को दुखी देखकर भगवान प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा तुम दुखी ना हो राजन इस समस्या का हाल मेरे पास है । भगवान ने अपनी बात जारी रखी और बोले तुम्हारी राजधानी के बीचों बीच एक पुराना सूखा कुआं है अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक परिवार से एक परिजन उस कुएं में एक बाल्टी दूध डालेगा । तब उस समस्या का समाधान हो जाएगा और यह बीमारी भी गांव से समाप्त हो जाएगी । कोई मारेगा भी नहीं । इतना कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो
गए । दूसरे ही दिन राजा ने सभा बुलाई और सभी गांव वालों को कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने घर से एक बाल्टी दूध अमावस्या की रात को गांव के बीच बने सूखे कुएं में डालना अनिवार्य है । कुछ दिनों बाद वह दिन आ ही गया इस रात्रि को जब उस कुएं में दूध डालना था तब गांव की एक चालक कंजूस बुढ़िया ने सोचा कि सारे लोग कुएं में तो दूध डालेंगे ही मैं अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूंगी तो क्या किसी को पता चलेगा? फिर उसी रात्रि चुपचाप एक बाल्टी पानी उस बुढ़िया ने कुएं में डाल दिया । अगले दिन देखा गया कि अभी भी लोग इस तरह महामारी से मर रहे हैं । कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी अभी भी गांव से दूर नहीं हुई थी । राजा ने उस कुएं के पास जाकर उसका कारण जानना चाह वहां उसने जाकर देखा कि पूरा कुआं पानी से भरा हुआ है दूध की तो एक बूंद भी दिखाई नहीं दे रही थी । तब राजा समझ गया कि इसी वजह से गांव में अभी तक महामारी है और लोग मर रहे हैं । दरअसल हुआ यह कि जो विचार उसे बुढ़िया को आया था वही विचार सारे गांव वालों को भी आया था और किसी ने भी उसकी हमें दूध नहीं डाला । जैसा इस कहानी में हुआ वैसा ही कई बार हम सोचते हैं और वैसा ही करते हैं । सबको मिलकर जो कार्य करना होता है
तो हम अक्सर अपनी जिम्मेदारी से अपने कर्तव्यों के निर्वहन से मुंह मोड़ लेते हैं और इंतजार करते हैं कि सामने वाला तो कर ही रहा है हमें क्या करने की क्या जरूरत है? अतः हमें इस दंतकथा से यह शिक्षा लेनी चाहिए कि मतदान के इस पावन पर्व में हम वयस्क भारतवासी अपने अमूल्य मताधिकार को समझे एक श्रेष्ठ नागरिक और एक श्रेष्ठ मतदाता के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें ।
डॉ० ममता पांडेय
सहायक प्राध्यापक राजनीति विज्ञान
ठाकुर गोविन्द नारायण सिंह शासकीय महाविद्यालय रामपुर बघेलान जिला सतना मध्य प्रदेश
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