79वें स्वतंत्रता दिवस पर मोदी ने लाल किले से आरएसएस की तारीफ़ की, विपक्ष ने कहा– ‘स्वतंत्रता संग्राम का अपमान’

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 16 अगस्त: भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से अपने भाषण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की प्रशंसा की। उन्होंने आरएसएस को दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन बताते हुए इसकी ‘100 वर्षों की राष्ट्र सेवा’ को गौरवपूर्ण करार दिया। लेकिन विपक्ष ने इस बयान को “स्वतंत्रता संग्राम और शहीदों का अपमान” बताया और तीखी आलोचना की।

मोदी का भाषण: आरएसएस की सेवा पर गर्व

प्रधानमंत्री ने कहा,
“मैं अत्यंत गर्व के साथ यह व्यक्त करना चाहता हूं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी संस्था की स्थापना 100 वर्ष पूर्व हुई थी। राष्ट्र सेवा के इसके 100 वर्ष गौरवपूर्ण और गौरवशाली रहे हैं। स्वयंसेवक मातृभूमि के कल्याण हेतु जीवन समर्पित कर रहे हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन है।”

मोदी ने लाल किले से स्वयंसेवकों को नमन करते हुए कहा कि यह सेवा परंपरा भारत को आत्मनिर्भर और विकसित बनाने की दिशा में प्रेरित करती रहेगी

विपक्ष का हमला: ‘इतिहास का अपमान’

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने मोदी के भाषण पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह “संवैधानिक, धर्मनिरपेक्ष गणराज्य की भावना का खुला उल्लंघन” है।
उन्होंने आरोप लगाया,
“प्रधानमंत्री अब पूरी तरह आरएसएस की दया पर निर्भर हैं और संगठन को खुश करने के लिए लाल किले से उसका गुणगान कर रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस का राजनीतिकरण बेहद खतरनाक है।”

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि स्वतंत्रता दिवस पर आरएसएस की प्रशंसा करना “स्वतंत्रता संग्राम का अपमान” है।
उनका कहना था कि आरएसएस ने कभी आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया और गांधीजी से अधिक विरोध अंग्रेजों से किया।

वामदलों और क्षेत्रीय दलों का विरोध

सीपीएम महासचिव एम. ए. बेबी ने कहा कि मोदी ने “शहीदों की स्मृति और स्वतंत्रता आंदोलन की भावना का अपमान” किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस ने हमेशा धार्मिक आधार पर समाज को बांटने का काम किया और गांधी की हत्या के बाद उस पर प्रतिबंध भी लगाया गया।

राजद सांसद मनोज कुमार झा ने कहा,
“स्वतंत्रता दिवस का भाषण राजनीति और इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने का अवसर नहीं होना चाहिए था। प्रधानमंत्री की भाषा समावेशी होनी चाहिए थी।”

सावरकर की तस्वीर पर विवाद

विवाद और गहरा तब हुआ जब केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय ने स्वतंत्रता दिवस पर एक पोस्ट जारी किया, जिसमें महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह की तस्वीरों के ऊपर विनायक दामोदर सावरकर की तस्वीर लगाई गई।

तृणमूल कांग्रेस सांसद सागरिका घोष ने इसे “अत्यंत आपत्तिजनक” बताया और कहा कि गांधीजी की हत्या से जुड़े संगठन का महिमामंडन स्वतंत्रता दिवस की गरिमा के विपरीत है।

सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा कि गांधी से ऊपर सावरकर को रखना “कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सोची-समझी कार्रवाई” है, जो सरकार की धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धता को कमजोर करती है।79वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी का भाषण जहां आरएसएस की भूमिका को मान्यता देने वाला था, वहीं विपक्ष ने इसे स्वतंत्रता संग्राम और शहीदों के बलिदान का अपमान बताया। आरएसएस, सावरकर और स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत को लेकर छिड़ी यह नई बहस आने वाले समय में और तीखी हो सकती है।

 

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