समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 20 मई। कान फिल्म महोत्सव में इंडिया पवेलियन के चौथे दिन की शुरुआत मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका पर एक सत्र के साथ हुई। सत्र का शीर्षक, ‘शी शाइन्स’ सर्वथा उपयुक्त था, जिसका संचालन अभिनेत्री व निर्माता खुशबू सुंदर ने किया। वक्ताओं में अभिनेत्री ईशा गुप्ता, ग्रीक-अमेरिकी निर्देशक डाफ्ने श्मोन के साथ-साथ फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर और सुधीर मिश्रा थे, जो महिला केंद्रित फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं।
बातचीत की शुरुआत करते हुए दिग्गज अभिनेत्री खुशबू सुंदर ने कहा, “भारतीय सिनेमा एक खूबसूरत दौर से गुजर रहा है, जहां महिलाएं न केवल अभिनय करने में, बल्कि निर्माता, निर्देशक और तकनीशियन के रूप में भी सिनेमा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।”
नारी शक्ति के साथ रचनात्मक अर्थव्यवस्था के बारे में बात करते हुए भंडारकर ने कहा, “जब आपके पास फिल्म के नायक के रूप में एक महिला हो, तो धन जुटाना मुश्किल होता है, लेकिन मैं भाग्यशाली हूं कि मैंने ऐसी फिल्में बनाईं जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता बनीं। महिला प्रधान फिल्मों से आपको मनचाहा बजट नहीं मिलता, लेकिन पूरी दुनिया में ऐसी ही स्थिति है।“
फिर जोखिम क्यों? यह पूछे जाने पर भंडारकर ने कहा, ‘मैं उनके (महिलाओं के) नजरिए से फिल्में बनाने में सहज हूं। यह कहानियों को एक अलग दृष्टिकोण देता है।“
“जब मैं चांदनी बार के निर्माता के पास गया, तो लोग पैसा नहीं लगाना चाहते थे। मुझे तब कई नायकों के साथ एक फिल्म त्रिशक्ति बनानी पड़ी। फिल्म ने बिल्कुल भी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। फिर मैंने चांदनी बार बनाने का फैसला किया और आखिरकार मुझे एक निर्माता मिल गया। शुक्र है कि चांदनी बार व्यावसायिक और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित रही। मुझे लगता है कि इसने मुझे महिलाओं को केंद्रीय पात्रों के रूप में रखते हुए और अधिक फिल्में बनाने का साहस दिया। हालांकि आज भी लोग मुझसे कहते हैं कि अगर मैं किसी हीरो के साथ फिल्म बनाऊंगा, तो फिल्म निर्माण का बजट बढ़ जाएगा। लेकिन मैं जिस तरह का सिनेमा बना रहा हूं, उसे बनाकर खुश हूं। हालांकि चीजें निश्चित रूप से बदल रही हैं, खासकर ओटीटी के साथ, यह हर किसी को जोखिम उठाने का अवसर देता है।“
ईशा गुप्ता ने अपने अनुभव के बारे में कहा, “इस साल मैंने फिल्म उद्योग में एक दशक पूरा किया और 2019 तक मेरे लिए एक फिल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाना सिर्फ एक सपना था। हम अनुपम खेर और कुमुद मिश्रा को लेकर एक फिल्म बनाने की कोशिश कर रहे थे, जिसमें एक महिला पुलिस वाले के रूप में मेरी केंद्रीय भूमिका थी, लेकिन फिल्म के लिए धन जुटाना बहुत मुश्किल था। जब फिल्म सिनेमाघरों में आई तो कुछ खास नहीं चली, लेकिन जब फिल्म नेटफ्लिक्स पर आई तो इसे खूब देखा गया। इससे पता चलता है कि दर्शक महिला केन्द्रित कहानियों को देखना चाहते हैं। अब चीजें बदल रही हैं, लेकिन हमें ऐसे और निर्देशकों की जरूरत है, जिन्हें हमारी कहानियों पर भरोसा हो।“
श्रुति हासन के साथ फिल्म ‘द आई’ का निर्देशन करने वाली डाफ्ने श्मोन ने कहा, “यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि 51 प्रतिशत फिल्म दर्शक, महिलाएं हैं। हमें अपनी कहानियों को पर्दे पर देखने की जरूरत है। हमें महिला निर्देशकों और अभिनेताओं को सबसे आगे रखने पर ध्यान देने की जरूरत है। हम हर साल लगभग 10 महिलाओं का चयन करते हैं और उनकी फिल्मों के लिए पैसा जुटाने में मदद करते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम कलाकारों के रूप में पुरुषों और महिलाओं को समान स्तर पर देखें।”
श्मोन ने आगे कहा, “वंडर वुमन के आंकड़ों (बॉक्स ऑफिस कलेक्शन) से पता चलता है कि अगर कोई फिल्म अच्छी बनती है, तो वह मुख्य किरदार के रूप में एक महिला के साथ भी अच्छा प्रदर्शन करेगी। हमें इन फिल्मों की अच्छी मार्केटिंग करने की जरूरत है।“
जब भंडारकर ने इस बारे में बात की कि निर्माता फिल्म में नायक के साथ एक अच्छी शुरुआत को किस प्रकार देखते है, फिल्म निर्माता सुधीर मिश्रा, जो फ्रेंच रिवेरा में फिल्म समारोह में भाग ले रहे हैं, बातचीत में शामिल होते हुए कहा, “आजकल कोई भी बॉक्स ऑफिस ओपनिंग नहीं दे रहा है।“
“दर्शक बदल रहे हैं। वे वैसे भी फिल्मों की ओटीटी रिलीज का इंतजार कर रहे हैं। उद्योग में वातावरण तेजी से बदल रहा है। अगर हम किसी फिल्म के सेट पर जाएं, तो क्रू में 50 प्रतिशत महिलाएं होती हैं। मुझे आशा है कि हमारे पास अधिक महिला फिल्म निर्माता होंगी और मुझे आशा है कि वे हमारे (पुरुषों के) दृष्टिकोण को भी सामने रखेंगी।“
“फ्रांस एक ऐसा देश है जहां पुरुषों की तुलना में युवा महिला निर्देशक अधिक हैं। धीरे-धीरे चीजें बदल रही हैं, हमारे पास जोया और रीमा और कई अन्य महिला निर्देशक दक्षिण सिनेमा में हैं। हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन हम आगे बढ़ रहे हैं।”
विभिन्न क्षेत्रों में महिला सशक्तिकरण की दिशा में सरकार किस तरह से योगदान दे रही है, इस बारे में बात करते हुए, माननीय सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री, भारत सरकार डॉ. एल. मुरुगन ने कहा, “महिलाएं वास्तव में प्रगति कर रही हैं और सिनेमा में आगे भी प्रगति करती रहेंगी। मैं सिनेमा को महिला या पुरुष प्रधान सिनेमा के रूप में नहीं देखता। महिलाओं के साथ केंद्रीय पात्रों के रूप में मगलिर मट्टम (केवल महिलायें) नामक एक तमिल फिल्म थी और इसने वास्तव में अच्छा प्रदर्शन किया था। विद्या बालन अच्छा कर रही हैं। पैडमैन जैसी फिल्में हैं, जो महिलाओं के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। महिला रचनाकारों को समर्पित “शी शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल” नामक एक फिल्म समारोह है, ऐश्वर्या सुंदर ने एक एनीमेशन फिल्म बनाई, जिसने राष्ट्रीय पुरस्कार जीता और गुनीत ने ऑस्कर जीता। मुझे लगता है कि हमारी महिलाएं सिनेमा में एक खूबसूरत जगह बनाने में पहले ही सफल हो चुकी हैं।“
माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नारी शक्ति उभर रही है।
डॉ. मुरुगन ने यह भी बताया कि कैसे एनएफडीसी ने फिल्म उद्योग में 100 से अधिक महिला रचनाकारों और तकनीशियनों को प्रशिक्षित किया है और 75 “क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टुमॉरो” नामक पहल में इस वर्ष 70 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं।
उन्होंने निष्कर्ष के तौर पर कहा, “सरकार के पास नारी शक्ति को समर्पित कई योजनाएं हैं।”
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