क्या राहुल को दुल्हा बनाने के लिए विपक्ष तैयार है?

त्रिदीब रमण
त्रिदीब रमण

क्या यह मौसम बदलने की आहट है
मेरे सिर पर धूप व हाथों में छतरी है’

पटना में इस 23 जून को जब विपक्षी एका का नया मंजर सजा तो जाने-अनजाने राहुल गांधी ने महफिल लूट ली। 15 विपक्षी दलों का जो कुनबा सजा था, उसमें 13 दलों में से सिर्फ राहुल को ही रिसीव करने सीएम नीतीश ने अपने मंत्रियों के दल-बल के साथ पटना एयरपोर्ट पर मज़मा लगाया था। नीतीश चाहते थे कि ’राहुल की अगवानी कर वे उन्हें सीधे एयरपोर्ट से अपने सीएम निवास ले जाएं, जहां विपक्षी एका की बैठक आहूत थी।’ पर वक्त की बेवफाईयों ने राहुल को भी शातिर बना दिया है, वे टीम नीतीश को गच्चा देकर सीधे सदाकत आश्रम जा पहुंचे, जहां कांग्रेसियों की भारी भीड़ जमा थी, देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को संदर्भित करते हुए राहुल ने तुर्रा उछाला कि ’कांग्रेस के डीएनए में ही बिहार है।’ राहुल ने यह भी कहा कि ’जब अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वे दक्षिण भारतीय राज्यों से गुज़र रहे थे तो वहां भी बिहार के लोगों की भारी भीड़ ने उनका स्वागत किया था।’ सबसे खास बात तो यह कि बिहार कांग्रेस ने राहुल के आने को खासा प्रचारित नहीं किया था कि राहुल सदाकत आश्रम आकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे, बावजूद इसके राहुल की सभा में कांग्रेसी उमड़ पड़े। विपक्षी एका की इस अहम बैठक में लालू यादव आधा घंटा पहले ही नीतीश के घर पहुंच गए, इससे एकबारगी उन कयासों पर भी विराम लग गया कि राज्य में राजद और जदयू के बीच एक कुछ ठीक नहीं चल रहा है। ममता बनर्जी पहले लालू के घर पहुंचीं जो बिहार के इस खांटी नेता के महत्व को बताने के लिए काफी था। लालू ने एक तरह से पूरी महफिल लूट ली, वे झकाझक सफेद कुर्ता-पाजामा में नज़र आए और उन्होंने लगे हाथ मुनादी भी कर दी कि वे ’अब बिल्कुल फिट हैं।’ लालू ने राहुल की शादी की बात छेड़ कर एक तरह से यह इशारा भी दे दिया कि ’2024 में विपक्ष में दूल्हे का सेहरा राहुल के सिर ही सजेगा।’ जैसा कि इस कॉलम में सबसे पहले इस रहस्य से पर्दा उठाया गया था कि कांग्रेस चाहती है कि ’विपक्षी एका की अगली मीटिंग किसी कांग्रेस शासित राज्य में हो’, कांग्रेस ने अपनी ओर से दो विकल्प भी सुझाए थे शिमला या फिर जयपुर, अंततः शिमला के नाम पर इस बैठक मुहर लग गई।

थोकभाव में भाजपा सांसदों के टिकट कटेंगे

एक ओर जहां विपक्षी एका की कोशिशों का महाकुंभ चल रहा है, वहीं भाजपा भी अपनी चुनावी तैयारियों को चाक-चौबंद कर रही है। इस संदर्भ में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने लगभग इस बात पर मुहर लगा दी है कि ’2024 के चुनाव में पार्टी अपने 70प्लस सांसदों को अलविदा कह देगी और उनकी जगह नए चेहरों को मैदान में उतारा जाएगा।’ इसके अलावा पार्टी के मौजूदा 25 फीसदी सांसदों के टिकट कटना भी तय माना जा रहा है। इसके लिए भाजपा ने अपने तमाम मौजूदा सांसदों की रिपोर्ट कोर्ड भी तैयार कर ली है। यूपी में भाजपा ने सभी 80 सीटों को जीतने का लक्ष्य रखा गया है। जिन 70 प्लस नेताओं के सिर पर टिकट कटने की तलवार लटक रही है, वे हैं सत्यदेव पचौरी, वीके सिंह, हेमा मालिनी, रीता बहुगुणा जोशी, रमापति राम त्रिपाठी, संतोष गंगवार, जगदंबिका पाल और सत्यपाल सिंह के अलावा पहलवानों के विरोध का ताप झेल रहे बृजभूषण शरण सिंह का भी टिकट कट सकता है। बिहार के मौजूदा 17 में से 6 सांसदों के टिकट कट सकते हैं, जिसमें गिरिराज सिंह, अश्विनी चौबे, आरके सिंह, राधा मोहन सिंह, रमा देवी और रवि शंकर प्रसाद के नाम शामिल हो सकते हैं। अश्विनी चौबे मौके की नज़ाकत को भांपते हुए पहले से ही अपने बेटे अर्जित शाश्वत के टिकट के लिए हाथ पैर मार रहे हैं। बताया जा रहा है कि गुजरात के 10, कर्नाटक से 9, महाराष्ट्र से 8, झारखंड के 2, मध्य प्रदेश के 5 और राजस्थान के भी 5 मौजूदा भगवा सांसदों के टिकट कटने लगभग तय है। टिकट काटने का यह सिलसिला आने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों से ही शुरू हो सकता है। संघ भी इस बात का पक्षधर बताया जाता है कि ’मध्य प्रदेश जैसे हिंदी पट्टी के बड़े राज्यों में नए और फ्रेश चेहरों पर ही दांव लगाया जाए’, रिपोर्ट है कि मध्य प्रदेश के भी 40 मौजूदा भाजपा विधायकों के टिकट कट सकते हैं।

नौकरशाही पर भगवा मुलम्मा

देश के नौकरशाही भले ही इस बात पर लाख इतरा ले कि सारा राज-काज वही चला रहे हैं, तो वे कान खोल कर सुन लें कि सत्तारूढ़ भाजपा ने उन्हें अपने सांचे में फिट करने का पक्का बंदोबस्त कर लिया है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा 2024 के चुनाव में 50 से ज्यादा मौजूदा या रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स को चुनावी मैदान में उतार सकती है। सूत्र यह भी बताते हैं कि भाजपा के संगठन महासचिव बीएल संतोष और पार्टी महासचिव विनोद तावड़े की अगुवाई में एक टीम गठित की गई है, जिन्होंने देश भर में घूम-घूम कर ऐसे लोकप्रिय नौकरशाहों की शिनाख्त पूरी कर ली है। इस कड़ी में कुछ नाम उभर कर सामने आ रहे हैं, उनमें से एक नाम पूर्व आईएएस अधिकारी परवीन सिंह परदेसी का भी है, जो फिलहाल नीति आयोग की शोभा बढ़ा रहे हैं, उन्हें महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र से भाजपा का टिकट मिल सकता है। राधेश्याम मोपलवार जो मराठवाडा में पानी पंचायत से लोकप्रिय हुए थे, ये एकनाथ शिंदे की पसंद बताए जाते हैं, इन्हें भी चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी है। वहीं परवीन सिंह परदेसी की निकटता देवेंद्र फड़णवीस से जगजाहिर है। इसके अलावा मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को हरियाणा या राजस्थान के किसी गुर्जर बहुल सीट से मैदान में उतारा जा सकता है। इनका नंबर यूपी या महाराष्ट्र से भी लग सकता है।

मूर्ति में माया

पिछले दिनों बसपा प्रमुख मायावती ने अपने लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय से डॉ. आंबेडकर और मान्यवर कांशीराम की मूर्तियां हटवा दीं और इन्हें शिफ्ट कर अपने सरकारी आवास में लगवा दिया है, इसके साथ ही मायावती ने अपनी मूर्ति बनाने का भी ऑर्डर दे दिया है, माना जाता है कि माया मेमसाहब की मूर्ति डॉक्टर और मान्यवर की मूर्तियों के ठीक बीच में लगाई जाएगी। पार्टी मुख्यालय से इन दोनों मूर्तियों को हटाने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि बहिनजी इन दिनों कभी पार्टी कार्यालय जाती ही नहीं थीं, बसपा का सारा काम-धाम वह अपने सरकारी निवास से ही कर लेती हैं। पर पार्टी सिरमौर के मूर्ति हटाने के निर्णय का विरोध पार्टी में ही शुरू हो गया है, कभी बहिनजी के खास विश्वासपात्रों में शुमार होने वाले कुंवर फतेह बहादुर ने इस विरोध की अलख जगा दी है। वहीं बहिनजी इन दिनों बसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं से अक्सर कहते सुनी जा सकती हैं कि ’बाबा साहेब और कांशीराम जी कहते थे कि दलितों का उत्थान तभी हो सकता है जब वह सत्ता के साथ रहे।’ बहिनजी का यह ताजा उद्घोष कहीं इस बात का संकेत तो नहीं कि वह 2024 के चुनाव में भाजपा के साथ जाने की इच्छुक हैं?

आप तो ऐसे न थे?

विपक्षी एका का मंच अभी सजा भी नहीं है कि उसकी चूलें हिलने लगी है। अभी विपक्षी एका की बैठक शुरू ही होनी थी कि आप ने अपना खटराग अलाप दिया कि ’जो अध्यादेश पर हमारे साथ है वह लोकतंत्र के साथ है, जो इसके साथ नहीं वह लोकतंत्र का विरोधी है।’ पर जब दो मुख्यमंत्री केजरीवाल व मान समेत आप का पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल पटना पहुंचा तो कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने टका सा जवाब दे दिया कि ’अध्यादेश की बात संसद में होनी चाहिए, सार्वजनिक मंचों पर नहीं।’ खड़गे की बात सुन कर आप खेमे में इतनी निराशा व्याप्त हो गई कि जिस पार्टी प्रतिनिधिमंडल को दिल्ली के लिए शाम 4.30 बजे की फ्लाइट लेनी थी उसने वह एका की प्रेस कांफ्रेंस से पहले ही डेढ़ बजे दोपहर की फ्लाइट पकड़ ली। जबकि राहुल गांधी की फ्लाइट ढाई बजे की थी राहुल प्रेस कांफ्रेंस में आखिर तक बैठे रहे।

और अंत में

मोदी की अमेरिका यात्रा की सर्वत्र चर्चा है। भारतीय प्रधानमंत्री के सम्मान में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जो रात्रि भोज दिया उसमें उन्होंने अपने दादा की एक बात का जिक्र करते हुए मोदी से कहा कि ’मेरे दादा कहते थे कि जो व्यक्ति शराब नहीं पीता है, उसे टोस्ट दाएं के बजाए गिलास को बाएं हाथ में पकड़ कर करना चाहिए।’ बाइडेन की बात सुन कर मोदी भी ठहठहा कर हंस पड़े, पर उन्होंने अपने दाएं हाथ के गिलास को बाएं के हवाले नहीं किया। क्या यही बात उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति की परिचायक है?

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