नीतीश का तुगलकी फरमान, अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार

सुनील अग्रवाल
भागलपुर, (बिहार)। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तुगलकी फरमान ने सोशल मीडिया पर लिखने वालों के अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से चोट पहुंचाने का काम किया है। इससे लोगों में सरकार के प्रति रोष बढ़ना लाजिमी है।
गौरतलब है कि हाल के दिनों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आदेश निर्गत किया है कि राजनीति से जुड़े नेताओं एवं सरकारी सेवकों के क्रियाकलापों पर सोशल मीडिया में किसी भी प्रकार की टीका-टिप्पणी की तो जेल की हवा खानी पड़ सकती है। इससे बिहार के खास तौर पर युवाओं में रोष देखा जा रहा है और उनका मानना है कि सरकार का यह फरमान आम लोगों के अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार करने के सामान है। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि सरकार का यह आदेश आपातकाल के आहट के जैसा दिखता है।
हालांकि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस आदेश की कड़े शब्दों में निन्दा की है और कहा है कि सरकार अपनी खामियों पर पर्दा डालने के प्रयास के तहत उक्त आदेश को जबरन लागू करना चाहती है।
सनद रहे कि हाल के दिनों में बिहार के अपर पुलिस महानिदेशक नैयर हसनैन खान के एक सर्कुलर से राज्य की राजनीति में भूचाल आ गया है। इस सर्कुलर के जरिए यह बताने की कोशिश की गई है कि अधिकारियों, नेताओं, मंत्रियों यानी मान्यवरों के खिलाफ आपत्तिजनक एवं अभद्र टिप्पणी को साइबर अपराध मानते हुए कारवाई की जाएगी मतलब साफ है कि विरोध को कुचल दो।
यह और बात है कि सरकार का यह फरमान कितना कारगर साबित होता है, मगर नीतीश सरकार की मंशा पर सवाल उठना लाजिमी है। दुखद तो यह है कि बिहार में बद से बद्तर होते जा रहे कानून व्यवस्था के आगे लाचार व बेबस पुलिस और अपना आपा खो चुके मुख्यमंत्री मौलिक अधिकारों का अध्ययन किए बगैर अगर अगर इस कानून को अमलीजामा पहनाया जाता है तो यह कहना गलत नहीं होगा कि यह किसी बोखलाहट का ही परिणाम है।
गौरतलब है कि अगर मान्यवरों के खिलाफ अभद्र या अमर्यादित टिप्पणी होती है तो सदन में प्रिविलेज मोशन लाने का प्रावधान पूर्व से है। साथ ही आइपीसी और सीआरपीसी की धाराएं लागू हैं। बावजूद ऐसे फैसले लेने की क्या जरूरत आन पड़ी,समझ से परे है।
बहरहाल इतना तो तय है कि बिहार पुलिस के इस सर्कुलर ने बिहार प्रेस बिल की याद ताजा कर दी है, जबकि यह उच्चतम न्यायालय के फैसले के हिसाब से असंवैधानिक है। सवाल यह उठता है कि आखिर नीतीश कुमार को पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र के रास्ते पर जाने की क्या जरूरत पड़ गई,जो वे ऐसे गैरसंवैधानिक कानून को लागू करने पर आमादा हैं।

Comments are closed.