शिक्षा में बदलाव लाना और वन हैल्थक एप्रोच लागू करना, महामारी के लिए तैयारियां बढ़ाना और स्वास्थ्य प्रणाली मजबूत करना आवश्यक: डॉ. . मनसुख मांडविया
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 18नवंबर। स्वास्थ्य प्राथमिकताओं, स्वास्थ्य आपात स्थिति की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया, फार्मास्युटिकल क्षेत्र में मजबूत सहयोग और डिजिटल स्वास्थ्य नवाचारों और समाधानों की पहचान की जो ग्लोबल साउथ के देशों के सामने मौजूद अनोखी चुनौतियों का समाधान करने की निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं, जिससे वैश्विक स्वास्थ्य चर्चाओं और समाधानों में समावेशिता को बढ़ावा मिलता है।” यह बात केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम, दूसरे वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट के स्वास्थ्य मंत्रियों के सत्र में अपने वर्चुअल संबोधन में कही। उनके साथ अर्जेंटीना, बेलीज, चाड, ग्रेनेडा, ग्वाटेमाला, गुयाना गणराज्य, हैती, मौरीटानिया, मोरक्को, निकारागुआ, सोमालिया, सेंट लूसिया, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस, यमन गणराज्य, कोस्टा रिका, डोमिनिका, बेनिन और भूटान के स्वास्थ्य मंत्री और प्रतिनिधि शामिल हुए।
दर्शकों को संबोधित करते हुए, डॉ. मांडविया ने “ग्लोबल साउथ के देशों के सामने आने वाली अभूतपूर्व चुनौतियों” का उल्लेख किया और “वैश्विक शासन संरचनाओं में सुधार लाने की भारत की प्रतिबद्धता” पर जोर दिया, ताकि उन्हें सामयिक वास्तविकताओं और 21वीं सदी की वैश्विक चुनौतियों, विशेषकर ग्लोबल साउथ की ज़रूरतों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाया जा सके।”
वन हेल्थ अवधारणा के महत्व पर जोर देते हुए, केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि “इसे मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को बारीकी से जोड़ने वाली विविध विषयों से जुड़ी जटिल जन स्वास्थ्य समस्याओं के लिए एक प्रभावी दृष्टिकोण के रूप में मान्यता प्राप्त है।”
उन्होंने कहा कि यह पहचानना जरूरी है कि सीवियर एक्यूट रेस्पीरेटरी सिंड्रोम (सार्स) से लेकर कोविड-19 तक वैश्विक स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाली अधिकांश देशव्यापी महामारियों और वैश्विक महामारियों की जड़ें पशुजन्य हैं। “अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य नियमों की समितियों ने लगातार प्रयासों की कमी और विखंडन को उजागर किया है, जिससे लोग अपने बचाव के लिए कमजोर पड़ गए। यह भी बेहद चिंताजनक है कि मौजूदा संकटों ने स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक असमान पहुंच को बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा, इसलिए, अध्ययन के तरीके बदलने के नुकसान को दूर करना और शिक्षा में बदलाव लाना और वन हेल्थ दृष्टिकोण को लागू करना, महामारी संबंधी तैयारियों को बढ़ाना और स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करना आवश्यक है”।
वन हैल्थ की अवधारणा का समाधान करने के लिए भारत द्वारा की गई पहलों पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. मांडविया ने कहा कि “राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केन्द्र वन हैल्थ संबंधी महत्वपूर्ण प्रयासों में सबसे आगे है, एक मौलिक सिद्धांत के रूप में वन हैल्थ पर आधारित कार्यक्रमों को लागू कर रहा है। भारत का वन हैल्थ प्रोग्राम बीमारी का शीघ्र पता लगाने के लिए विविध समूहों के बीच समन्वय को बढ़ावा देने और प्रतिक्रिया पर विशेष ध्यान देते हुए उभरती संक्रामक बीमारियों, विशेष रूप से वन्यजीव क्षेत्रों से उत्पन्न होने वाली बीमारियों की मेहनत से निगरानी और जांच करता है।” उन्होंने नेशनल वन हैल्थ मिशन के शुभारंभ पर भी प्रकाश डाला जो बीमारियों की निगरानी और रोकथाम के लिए मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण के आपस में जुड़े पहलुओं का निरीक्षण करने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाता है। उन्होंने कहा, “यह मिशन विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के बीच समन्वय की सुविधा भी प्रदान करता है, जिसका लक्ष्य मनुष्यों और जानवरों दोनों में प्राथमिकता वाली बीमारियों के खिलाफ व्यापक महामारी की तैयारी और एकीकृत रोग नियंत्रण हासिल करना है।”
डॉ. मांडविया ने अर्थव्यवस्थाओं, समाजों, स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों, शिक्षा प्रणालियों और बुनियादी ढांचे में लचीलापन बढ़ाने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता पर जोर दिया। इस संबंध में उन्होंने कहा कि दीर्घकालिक विकास में महिलाओं की केन्द्रीय भूमिका को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने ग्लोबल साउथ में सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल को आगे बढ़ाने के लिए एक आशाजनक उपकरण के रूप में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (डीपीआई) के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि “डिजिटल प्लेटफॉर्म, नेटवर्क और सेवाओं में स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों से निपटने और चिकित्सा संसाधनों तक समान पहुंच को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता है।”
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि आज के समय में सहयोग सिर्फ एक विकल्प नहीं है; यह एक आवश्यकता है। उन्होंने वन हैल्थ दृष्टिकोण के कार्यान्वयन के लिए भारत की अटूट प्रतिबद्धता का आश्वासन दिया, जैसा कि जी20 शिखर सम्मेलन के नई दिल्ली नेताओं की घोषणा में एक स्वास्थ्य-आधारित दृष्टिकोण पर जोर देने से पता चलता है। उन्होंने अनुसंधान और विकास, संक्रमण की रोकथाम तथा नियंत्रण के साथ-साथ संबंधित राष्ट्रीय कार्य योजनाओं के भीतर रोगाणुरोधी प्रबंधन प्रयासों सहित रोगाणुरोधी प्रतिरोध के महत्वपूर्ण मुद्दे के समाधान के प्रयासों को प्राथमिकता देने पर प्रमुखता से ध्यान देने पर भी प्रकाश डाला।
केन्द्रीय मंत्री ने प्रतिनिधियों को वसुधैव कुटुंबकम के भारत के सांस्कृतिक लोकाचार, “विश्व एक परिवार है” का प्रतीक और सभी जीवों के आपस में जुड़ाव पर जोर देते हुए, वन हैल्थ दृष्टिकोण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दृढ़ता से बनाए रखने के लिए प्रेरित करते हुए अपने संबोधन का समापन किया। हमारे संयुक्त प्रयासों को ग्लोबल साउथ में राष्ट्रों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए समावेशी और स्थायी समाधानों के महत्व को स्वीकार करते हुए, ग्लोबल साउथ में सहयोग, विश्वास और विकास को बढ़ावा देने की दिशा में निर्देशित किया जाना चाहिए।
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