ताकि सनद रहे: कांग्रेस के बड़े नेता पवन खेड़ा कर रहे धमकाने की भाषा का इस्तेमाल

आशीष अंशु
इन दिनों प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस के बड़े नेता पवन खेड़ा धमकाने की भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन यह बात किसी चैनल की पैनल चर्चा में नहीं सुनाई पड़ती। खेड़ा जांच अधिकारियों को धमका देते हैं कि एक-एक की फाइल खुलवाएंगे, आज तो हद्द तब हो गई जब प्रेस कांफ्रेंस में वे मीडिया को धमका रहे थे कि वे आएंगे तो उनकी मर्जी की खबर जिन्होंने नहीं चलवाई, उन पत्रकारों को मीडिया संस्थान से आजाद करा देंगे।

पवन खेड़ा की धमकियों का असर कुछ मीडिया संस्थान और एंकरों पर दिखाई भी देने लगा है।

यह तय है कि कांग्रेस सरकार में नहीं आ रही लेकिन उसने धमकी और आक्रामक भाषा का इस्तेमाल करके एक भय का माहौल तो बना दिया है।

कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे कमजोर दौर से गुजर रही है लेकिन वह अजीत अंजुम, रवीश कुमार, अभिसार शर्मा, आरफा खानम, पुण्य प्रसून वाजपेई जैसे समर्थकों के साथ मजबूती से खड़ी है। विश्लेषकों में आशुतोष गुप्ता, राहुल देव, प्रभु चावला, पंकज शर्मा जैसे विश्लेषक किसी हद्द तक जाकर यूं ही कांग्रेस के लिए माहौल नहीं बना रहे हैं। सुप्रिया श्रीनेत तो अपने आईटी सेल के युवाओं के लिए प्रेस कांफ्रेंस करने आ गई।

10 साल की सरकार के दौरान गोदी मीडिया टर्म चिपकाने वाले संगठित थे। जिन पर यह आरोप लगा, वे कभी संगठन की ताकत समझ ही नहीं पाए। उन्होंने चुप्पी ओढ़ ली। कभी पलट कर जवाब नहीं दिया। उनकी इसी चुप्पी को सहमति मान ली गई।

एक दो बार जवाब आया भी तो इतनी आवाज उसकी दबी हुई थी कि किसी ने ठीक से सुनी तक नहीं।

जब चौदह पत्रकारों का बायकॉट हुआ, वे सभी पत्रकार अलग थलग पड़ गए। उस समय भी कोई कोशिश नहीं हुई, ना पत्रकार समाज की तरफ से और ना नागरिक समाज की तरफ से, उनके साथ खड़े होने की।

अजीत अंजुम को लेकर एक यू ट्यूबर ने यू ट्यूब पर ही कुछ तथ्यात्मक गलती कर दी, अपनी बात कहते हुए। कितना बड़ा समूह आ गया, रातों रात अजीत अंजुम के साथ। यह अजीत अंजुम या राजीव शुक्ला/ News 24 की नहीं, बल्कि कांग्रेस इको सिस्टम की ताकत थी।

वह हर बार गायब होता है, जब किसी अमन चोपड़ा पर एफआईआर हो जाए, कैपिटल टीवी के मनीष कुमार को जब गिरफ्तार करने की कोशिश हो, रचित को पंजाब पुलिस जब पकड़ कर ले जाए, रोहित सरदाना की मृत्यु पर एशियन ह्यूमन राइट कमीशन का एक एजेंट उनकी बिटिया पर अभद्र टिप्पणी कर दे, और सोशल मीडिया पर कांग्रेस इको सिस्टम द्वारा जश्न मनाया जाए, सुधीर चौधरी जैसे सम्मानित पत्रकार को कांग्रेस पोषित पत्रकार तिहाड़ी बोल दें, अर्णब गोस्वामी को उनके घर से किसी खतरनाक अपराधी की घसीट कर ले जाया जाए, इतना ही नहीं, रुबिका लियाकत के लिए भाषा की सारी मर्यादा लांघ ली जाए। इन सबके बीच सन्नाटा होता है क्योंकि यहां एक दूसरे के साथ खड़े होने का साहस कोई जुटाने को तैयार नहीं है। वे अमीश देवगन, सुशांत सिन्हा हों या बृजेश सिंह। जिसे कांग्रेस पोषित पत्रकारों ने गोदी मीडिया नाम दिया है, वहां सभी अकेले हैं। वे संगठित हो नहीं पाए हैं। इनमे अधिक नाम उनके हैं, जो समाज से पूरी तरह कटे हुए हैं। सब सेलिब्रिटी हैं और सभी अलग-अलग खड़े हैं। उन मौकों पर भी साथ नहीं आते, जब इनके साथ वाले पर हमला होता है।

दुख इस बात का है कि प्रनॉय रॉय हों या रजत शर्मा, इन्हें यही लगता है कि पब्लिक कुछ समझ नहीं रही या पब्लिक कुछ भी समझे, चैनल मालिक और संपादक अब इतनी ऊंचाई पर बैठे हैं कि उन्हें इन बातों से अब फर्क ही नहीं पड़ता।

इतना कुछ सिर्फ इसलिए लिख दिया है ताकि सनद रहे। यह किसी के पक्ष या किसी के विरोध में मोर्चा खोलने के भाव से नहीं लिखा गया है। इसलिए जिस भाव से लिखा है, अपेक्षा है कि आप सब उसी भाव से पढ़ें। लिखते लिखते कुछ शेष रह गया हो तो उसे जरूर जोड़िए।

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