*डॉ ममता पांडेय
“हम उन्नति करेंगे; हम एक होंगे; हम एक ऐसे देश में रहेंगे जिसका भाग्य केवल उसके बच्चों के हाथ में होगा।”
बंगाल टाइगर के नाम से सुविख्यात शिक्षाविद महान शिक्षाविद सर आशुतोष मुखर्जी के पुत्र श्यामा प्रसाद का जन्म 6 जुलाई 1901से को कोलकाता में हुआ वर्ष 1917 में मैट्रिक के 1921 में कोलकाता उच्च न्यायालय में इंडियन बार के सदस्य होने के लिए उन्होंने 1923 में लो की उपाधि अर्जित की इसके बाद बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड रवाना हुए इंग्लिश बार जिससे कि वह इंग्लिश बार के सदस्य बन सके लेकिन उनके इंग्लैंड जाने का मूल उद्देश्य ब्रिटेन में विश्वविद्यालय की कार्य प्रणाली का अध्ययन करना था उन्होंने यही किया और कोलकाता विश्वविद्यालय के सिंडिकेट के केवल 23 वर्ष की उम्र में वह इसके सबसे युवा सदस्य थे बंगाली में पोस्ट ग्रेजुएशन किया बैरिस्टर एवं शिक्षाविद कहलाए उसे युवावस्था में श्यामा प्रसाद ने विश्वविद्यालय से संबंधित विषयों में अपने आप को कितने सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया कि उसे समय के महान वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र राय ने उन्हेंअपने पिता का पुत्र कहते हुए बधाई दी।
सिर्फ 33 साल की अविश्वसनीय उम्र में वह विश्वविद्यालय की उपकल्प कुलपति बने और विश्वविद्यालय संचालन में नए प्राण डाल दिए सन 1934 से 1938 तक उन्होंने कुलपति के रूप में सबसे युवा कुलपति के रूप में दो वर्ष के दो कार्यकाल पूर्ण किए।
1937 में गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने दीक्षांत समारोह में छात्रों को बंगाल में संबोधित किया यह प्रथम अवसर था जब किसी दीक्षांत समारोह को बंगाल में संबोधित किया गया हो।
1935 में ब्रिटिश संसद ने गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट पारित किया जिसके अंतर्गत भारतीयों को ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलना था तथा हर प्रांत में एक चुनी हुई सरकार होनी थी जिसे पूरी तरह भारतीय द्वारा चलाया जाना था लेकिन इसका क्रियान्वयन एक ब्रिटिश गवर्नर के कार्यकारी शासन के अंतर्गत भारतीय तथा अंग्रेज अधिकारियों द्वारा चलाई जा रही भारतीय सिविल सेवा के माध्यम से होना था। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को इस बात के लिए मनाया गया कि वह सरस्वती देवी का मंदिर छोड़कर वह राजनीति के ऊपर खबर रास्ते में प्रवेश करें इस तरह हुए शैक्षिक पार्थक्य से बाहर निकले और राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हो गए।
डॉक्टर मुखर्जी को राजनीति में लाने के लिए प्रेरित करने वालों में एन . सी चटर्जी (पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के पिता); आशुतोष लाहिड़ी; जस्टिस मनमंथ नाथ मुखर्जी तथा भारत सेवा संघ संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानंद महाराज थे। दो मुखर्जी के लिए प्रणमानंद जी महाराज महान प्रेरणा स्रोत रहे।
1941 में डॉक्टर मुखर्जी ने फजल उल हक को मुस्लिम लीग का साथ छोड़ने तथा कांग्रेस और हिंदू महासभा के साथ मंत्रिमंडल गठित करने पर राजी कर लिया फजलुल हक से पुराने रिश्ते के कारण उन्होंने कैबिनेट को बहुत अच्छी तरह चलाया कैबिनेट इतना लोकप्रिय हुआ कि प्रगतिशील प्रजातांत्रिक गठबंधन नाम से पूर्व में जाने जाना जाना जाने वाला कैबिनेट अबश्याम हक कैबिनेट “के नाम से जाना जाने लगा। जिसमें वह स्वयं वित्त मंत्री बने।
1940 में हुआ हिंदू महासभा के कार्यवाहक अध्यक्ष बने और घोषणा की की हिंदू महासभा का राजनीतिक लक्ष्य भारत को पूर्ण स्वाधीनता दिलाना है।
जुलाई 1942 में बंगाल के गवर्नर को उन्होंने एक चिट्ठी लिखी दो मुखर्जी ने लिखा “ब्रिटिश भारत के इतिहास में पहली बार हमें जो कुछ लोकतांत्रिक संविधान सोपा गया है इसमें कई कर्मियों के बावजूद हिंदू और मुस्लिम प्रतिनिधियों द्वारा काम किए जाने की जो मांग रखी गई थी हम लोगों ने अपने समुदायों को कम के माध्यम से शक्तिशाली रूप से प्रभावित किया है इस प्रयोग की सफलता स्वाभाविक रूप से भारत के राजनीतिक विकास की राह में खड़ी सांप्रदायिक असमंजस के बेसुरे दलील की पोल खोलेगी।”
नवंबर 1942 में श्यामा प्रसाद ने पुलिस और सामान्य प्रशासन के शासकीय कार्य के निर्वहन में गवर्नर और नौकरशाही द्वारा किए जा रहे हस्तक्षेप के विरोध में बंगाल मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया और बहु प्रचारित प्रांतीय स्वाध्यता को हास्य अस्पत बताया लाडली फिर को के साथ हुआ उनका पत्र व्यवहार जिसमें उन्होंने बंदी नेताओं को रिहा करने जनता पर विश्वास करने और जापान की धमकी का सामना करने के लिए नेशनल डिफेंस फोर्स तैयार करने की अनुमति देने का आग्रह किया था अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि वह राष्ट्रीय हित में दूसरों से अपनी बात दृढ़ता से मनवाने का प्रयास करते थे।
वर्ष 1943 में बंगाल में पड़े अकाल के दौरान श्यामा प्रसाद का मानवतावा दीपक से सामने आया वह बंगाल राहत समिति एवं हिंदू महासभा राहत समिति दोनों संगठनों के लिए प्रेरणा के स्रोत थे लोगों से धन देने की उनकी अपील का देश भर में इतना अधिक प्रभाव हुआ की बड़ी-बड़ी रशियां इस प्रयोजन हेतु आना शुरू हो गई स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी उन्होंने संसद में कहा था “अब हमें ₹40 प्रतिदिन मिलते हैं मैं नहीं जानता कि भविष्य में लोकसभा के सदस्यों के भत्ते क्या होंगे हम स्वेच्छा से इस दैनिक भत्ते में से ₹10 प्रतिदिन की कटौती करें और इस कटौती से प्राप्त धन को हम अकाल ग्रस्त क्षेत्र की महिलाओं और बच्चों के रहने के लिए मकान बनाने और खाने पर पीने की व्यवस्था करने के लिए रख देना चाहिए।”
15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने के पश्चात डॉक्टर मुखर्जी हिंदू महासभा में थे जबकि ब्रिटिश सरकार कांग्रेस को पूर्ण स्थानांतरित कर चुकी थी 1946 के शुरू में डॉक्टर मुखर्जी अपने पुराने निर्वाचन क्षेत्र कोलकाता विश्वविद्यालय विधानसभा क्षेत्र से बंगाल विधान परिषद के लिए निर्विरोध चुन लिए गए तथा जुलाई में उनके राजनीतिक व्यक्तित्व की लोकप्रिय तथा स्वीकृति इतनी अधिक थी कि एक नए संविधान की रूपरेखा के निर्माण पर कार्य करने के लिए बंगाल कांग्रेस द्वारा भारत के संविधान सभा के लिए उन्हें नामांकित किया गया संविधान सभा में उनका प्रदर्शन अत्यंत प्रभावशाली था उन्होंने संसदीय संरचना में अपनी सर्वाधिक कुशलता का प्रदर्शन किया और एक से अधिक अवसरों पर तर्कपूर्ण हस्तक्षेप किया कुछ सुधारो के उत्तर में उन्होंने संविधान सभा के कार्य में बाधा डालने की लक्ष्य से जो कुछ को कहा वह उनके उल्लेखनीय साहस के उदाहरण हैं।
महात्मा गांधी ने आग्रह किया कि भारत के पहले मंत्रिमंडल में डॉक्टर मुखर्जी को शामिल किया जाए उल्लेखनीय की सरदार पटेल स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में डॉक्टर मुखर्जी को शामिल किए जाने के जबरदस्त पक्षधर थे समापन के लिए आ रहा है।
अंततः अगस्त 1947 में गांधी जी ने श्यामा प्रसाद को स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात बनी प्रथम राष्ट्रीय सरकार में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया उन्होंने इस आशा के साथ ही आमंत्रण स्वीकार किया कि वह स्वतंत्र भारत की नीतियों को उसके आरंभिक चरण में ही प्रभावित कर सकेंगे और इस प्रकार वह पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व बनी अंतरिम सरकार में शामिल हो गए केंद्रीय मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति मंत्री के रूप में उन्होंने देश में तीन सफल विशाल औद्योगिक उपक्रमों अर्थात चितरंजन लोकोमोटिव फैक्ट्री सिंदरी उर्वरक निगम और हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट फैक्ट्री की स्थापना करके देश में औद्योगिक विकास की मजबूत आधारशिला रखी वह प्रत्येक योजना और नीति को जनता के लिए उपयोगी जनता के लिए इसकी उपयोगिता और व्यावहारिकता के आधार पर आते थे।
सरदार पटेल के बड़े समर्थक थे तथा भारतीय एकता को बनाने के सरदार पटेल के महान प्रयासों में डॉक्टर मुखर्जी की उपस्थिति ने उनके हाथों को मजबूत करने का कार्य किया विशेष कर हैदराबाद के मामले में भी सरदार पटेल के साथ लगातार खड़े रहे और कार्रवाई की मांग करते रहे और इस तरह वे नेहरू के को भजन भी बने बताओ मंत्री रहते हुए उनका हिंदू महासभा के अन्य नेताओं के साथ गंभीर मतभेद था वह मानते थे कि समय के साथ में प्रवेश में महासभा को और विकसित होने की आवश्यकता है किंतु डॉक्टर मुखर्जी की सलाह को नहीं माना गया ; विभिन्न मुद्दों पर मंत्रिमंडल के अपने सहयोगियों के साथ बढ़ते मत भेद के कारण उन्होंने सरकार छोड़ दी तब उन्होंने 1948 में पार्टी छोड़ दी इसके बाद वह बिना पार्टी के नेता थे और यह स्थिति 1950 तक बनी रही।
ऐसे में वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संघ संचालक श्री गुरु जी गोवलकर से मिले उन्होंने डॉक्टर मुखर्जी को एक पार्टी बनाने के लिए कहा इसके लिए गुरु जी ने कुछ विश्वसनीय एवं योग्य कार्यकर्ता उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया इन्हें में पंडित दीनदयाल उपाध्याय बलराज मधुक अटल बिहारी वाजपेई को सभा ठाकरे नानाजी देशमुख सुंदर सिंह भंडारी जगदीश प्रसाद माथुर तथा बहुत सारे अन्य कार्य करता थे डॉक्टर मुखर्जी ने पूरे देश से आए इन नेताओं के साथ कई बैठकर की और फिर एक फिर कई विचारों तथा अनेक नाम पर विश्वास करने के बाद अंत में भारतीय जनसंघ की स्थापना की गई इसकी घोषणा 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली के रघोमल आर्य कन्या विद्यालय से की गई।
इस नए संगठन का प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को निर्वाचित किया गया वह चाहते थे की जनसंख्या देश में राष्ट्रीय शक्तियों में अग्रणी रहे और इसका आधार इतना व्यापक हो कि वह सभी को साथ लेकर एक प्रभावी राजनीतिक संगठन बनाने में सक्षम हो सके ।
डॉ श्यामा प्रसाद 1952 में हुए प्रथम आम चुनाव में प्रथम लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हालांकि उनके द्वारा स्थापित डाल जैन संघ के केवल दो ही अन्य सदस्य निर्वाचित हो पाए थे लेकिन वह निराश होने वाले व्यक्तियों में नहीं थे उन्होंने उड़ीसा की गणतंत्र परिषद पंजाब के अकाली दल हिंदू महासभा तथा अनेक निर्दलीय सदस्य सांसदों सहित एक कई छोटी-छोटी पार्टियों को एक साथ लाकर संसद में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल का गठन किया जिसके वह नेता चुने गए वे सभी उन्हें विपक्ष का मुख्य प्रवक्ता मानते थे और उन्होंने उन्हें अपनी ओर से सभी प्रमुख मुद्दों का उत्तर देने का अधिकार दिया था।
राजनेता के रूप में उनकी महत्ता एवं कुशाग्रता तथा देश की समस्याओं के प्रति उनके रचनात्मक दृष्टिकोण ने उन्हें सरकार का दुर्जेय प्रतिद्वंदी बना दिया था सत्ता दल भी संसद के समक्ष आने वाले विषयों एवं समस्याओं के प्रति उनकी गहन सूक्ष्म एवं विवेचना के कारण उनका सम्मान करता था सरकार की नीतियों तथा कार्यों का उनका सूचना पूर्ण परीक्षण तथा उनके तर्कों का उनके द्वारा सहजता एवं दृढ़ता से खंडन अत्यंत विश्वसनीय प्रतीत होता था संसद में विपक्ष के नेता (गैर सरकारी )के रूप में उनकी भूमिक सेउन्हें “संसद केसरी “की उपाधि प्राप्त हुई।
संसद में झुंझलाकर बहस के दौरान नेहरू जी ने डॉक्टर मुखर्जी को कहा आई विल क्रश जनसंघ( I will crush Jansangh) (मैं जनसंघ को कुचल दूंगा) उसे पर डॉक्टर मुखर्जी का बेबाक जवाब इतिहास में सिकंदर व पूरु के संवाद के समान ही अद्वितीय व बेजोड़ है। उन्होंने कहा “मैं कहता हूं मैं आपकी इस कुचल डालने वाली मानसिकता को कुचल कर रख दूंगा” (I will crush this crushing mentality of yours)
अपने प्रभावशाली विचारों तथा अप्रतिम क्षमता के कारण डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक उत्कृष्ट सांसद बन गए अपने संसदीय कार्यकाल के दौरान उन्होंने कश्मीर की समस्या ;भारत तथा पाकिस्तान के बीच लोगों का आवागमन ;भारत की विदेश नीति; निवारक नजरबंदी चुनाव सुधार आदि जैसे राष्ट्रीय महत्व के विभिन्न विषयों पर संसदीय वादविवाद में महत्वपूर्ण योगदान किया इस महान राजनेता के संसदीय जीवन का अंतिम कार्य वर्ष 1953 में संपन्न हुआ जब उन्होंने जम्मू एवं कश्मीर प्रजा परिषद के मुद्दे को उठाने का निर्णय किया जो यह मांग कर रही थी कि इस राज्य का भारत के साथ पूर्णता विलय किया जाए अगस्त 1952 में उन्होंने जम्मू कश्मीर के दौरे के दौरान उन्होंने एक विशाल जनसमूह की बैठक में घोषणा की मैं आपको भारतीय संविधान के अंतर्गत लाऊंगा अन्यथा इसके लिए मैं अपना जीवन बलिदान कर दूंगासी जम्मू एवं कश्मीर राज्य को भारतीय संघ में शामिल करने के प्रति उनका उत्साह कितना प्रबल था कि अस्वस्थ होने के बावजूद वे कुछ प्रेस के लोगों के साथ विद्या गुरुदत्त अटल बिहारी वाजपेई टेकचंद तथा बलराज मधोक तुरंत जम्मू चले गए जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया वह जेल में गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और भारतीय एकता के लक्ष्य के लिए 23 जून 1953 को उन्होंने अंतिम सांस जेल में ली । जम्मू कश्मीर को भारतीय संविधान के दायरे में लाने और” एक देश में दो विधान ;दो प्रधान और दो निशान (झंडा )के विरोध में सबसे पहले आवाज उठाने वाले भारतीय जन संघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ही थे ।वस्तुत डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी संयुक्त भारत के हितों के लिए लड़ने वाले अग्रणी योद्धा थे जिसने आजीवन उत्साह पूर्वक उनकी हिमायत की उनकी जन्म जयंती पर हम संपूर्ण भारतवासी उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं।
डॉ० ममता पांडेय(सहायक प्राध्यापक राजनीति विज्ञान,पंडित अटल बिहारी बाजपेई ,शासकीय महाविद्यालय जयसिंहनगर जिला शहडोल,मध्य प्रदेश)
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