आरक्षण पर SC के फैसले पर मायावती ने जताई आपत्ति, बोलीं- मतभेद पैदा होगा

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 5अगस्त। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाले हालिया फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। रविवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी इस फैसले से बिल्कुल सहमत नहीं है और इसे दलित और आदिवासी समाज के लिए हानिकारक बताया।

फैसले पर पुनर्विचार करें सुप्रीम कोर्ट: मायावती
मायावती ने कहा, “अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग एक समूह के रूप में अत्याचारों का सामना करते हैं। यह समूह समान है, इसलिए किसी भी तरह का उप-वर्गीकरण करना सही नहीं होगा। हमने माननीय सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वो अपने फैसले पर पुनर्विचार करें। वरना इस देश में जो करोड़ों दलित और आदिवासी समाज के लोग हैं, उनको पैरों पर खड़ा करने के लिए परम पूज्य बाबा साहब बी.आर. आंबेडकर ने जो आरक्षण की सुविधा दी थी, अगर यह खत्म हो गई तो बड़ा मुश्किल हो जाएगा।”

आरक्षण खत्म हो गया, तो बहुत बुरा होगा
बसपा प्रमुख ने जोर देकर कहा, “जो लोग कहते हैं कि एससी-एसटी (अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति) हर मामले में आर्थिक रूप से मजबूत हो गए हैं, तो उसमें मैं समझती हूं कि 10 या 11 प्रतिशत लोग ही मजबूत हुए होंगे, बाकी 90 प्रतिशत लोगों की हालत तो बहुत ज्यादा खराब है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से लगभग 90 प्रतिशत लोग, जिन्हें आरक्षण की जरूरत है, वो तो बहुत ज्यादा पिछड़ जाएंगे। उन्हें इस फैसले के अनुसार अगर निकाल दिया जाएगा, तो यह बहुत बुरा होगा।”

मायावती ने सत्तारूढ़ दल और कांग्रेस पर निशाना साधा
मायावती ने सत्तारूढ़ दल और कांग्रेस पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, “केंद्र और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जो कहते हैं कि हम एससी-एसटी समाज के हिमायती हैं, उन्हें पहले इनकी पैरवी सही तरीके से करनी चाहिए, जोकि उन्होंने नहीं की। कांग्रेस ने भी इस मामले को लेकर ढुलमुल रवैया अपनाया। ऐसी स्थिति में केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार से हमें कहना है कि यदि आपकी नीयत साफ है, तो जो भी फैसला आया है, उसे संसद के अंदर संविधान में संशोधन करें और इसे संविधान की नौंवी सूची में लाएं।”

सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर क्या फैसला सुनाया?
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों को आरक्षण प्रदान किया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राज्यों को पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के ‘मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों’ के आधार पर उप-वर्गीकरण करना होगा।

अनुसूचित जातियों को उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत के फैसले के जरिये ‘‘ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार’’ मामले में शीर्ष अदालत की पांच-सदस्यीय पीठ के 2004 के फैसले को खारिज कर दिया। फैसले में कहा गया था कि अनुसूचित जातियों (एससी) के किसी उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं।

इस फैसले से अनुसूचित जातियों के बीच आरक्षण के अधिकारों के वितरण को लेकर देश में नए सिरे से बहस छिड़ गई है। मायावती की इस आपत्ति ने राजनीतिक और सामाजिक चर्चाओं को और अधिक गर्म कर दिया है, जिसमें उन्होंने सरकार और राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर स्पष्टता और समर्थन की मांग की है।

Comments are closed.