समग्र समाचार सेवा
लखनऊ, 12अगस्त। विश्व के इतिहास में विभिन्न सभ्यताओं की संरचना ऊपर से एक जैसी प्रतीत होती है, लेकिन उनकी विशिष्टता उनके केन्द्र में निहित होती है। भारतीय सभ्यता की विशेषता उसके एकात्ममूलक, शास्त्रमूलक और समाजमूलक होने में है। दूसरे शब्दों में, यह एक अध्यात्ममूलक सभ्यता है, जिसकी दृष्टि हमेशा केन्द्र की ओर होती है। इसके विपरीत, आधुनिक यूरोप की दृष्टि शक्तिमूलक, अजेयतामूलक और परिधि की ओर गतिशील प्रतीत होती है।
चीन की सभ्यता की सम्यक् दृष्टि को साम्यवादी विचारों ने अप्रत्याशित रूप से विकृत कर दिया है। ये विचार जनसत्ता के पूर्व सम्पादक और विचारक बनवारी ने लखनऊ विश्वविद्यालय में कुमारस्वामी फ़ाउण्डेशन के तत्वावधान में आयोजित अठारहवें पण्डित भुवनेशचन्द्र मिश्र स्मृति व्याख्यान में व्यक्त किए। उन्होंने भारत के पुनः अपने स्वत्व को प्राप्त करने का आवाह्न किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता फ़ाउण्डेशन के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर आर के मिश्र ने की। इस अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रति-कुलपति प्रोफ़ेसर मनुका खन्ना, राजनीतिशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर संजय गुप्ता, दर्शनशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर राकेश चंद्रा, मदनमोहन मालवीय शिक्षक प्रशिक्षण केन्द्र के निदेशक प्रोफ़ेसर कमल कुमार सहित अन्य विद्वानों और छात्रों ने उपस्थिति दर्ज कराई।
इस अवसर पर फ़ाउण्डेशन की वार्षिक पत्रिका तत्त्व-सिन्धु का भी विमोचन किया गया।
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