हम किसान को उसका सही हक भी नहीं दे रहे हैं, उसे पुरस्कृत करने की बजाय: उपराष्ट्रपति
किसान आंदोलन का आकलन सीमित रूप से करना एक बड़ी गलतफहमी है: उपराष्ट्रपति
हम यह विचारधारा नहीं रख सकते कि किसान अपने आप थक जाएगा: उपराष्ट्रपति
जब कोई भी सरकार वादा करती है, और वह वादा किसान से जुड़ा हुआ होता है, तो हमें उसे निभाने में कोई कसर नहीं छोड़नी चाहिए: उपराष्ट्रपति
किसान आज भी अपनी उपज की उचित कीमत के लिए तरस रहा है: उपराष्ट्रपति
क्या हम किसान और सरकार के बीच एक सीमा रेखा बना सकते हैं?: उपराष्ट्रपति
यदि कोई राष्ट्र किसान की सहनशीलता को परखने की कोशिश करेगा, तो उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी: उपराष्ट्रपति
देश की कोई ताकत किसान की आवाज को दबा नहीं सकती: उपराष्ट्रपति
आंदोलनरत किसान और तनावग्रस्त किसान देश की समग्र भलाई के लिए अच्छे संकेत नहीं है: उपराष्ट्रपति
कृषि क्षेत्र के मुद्दों का समाधान शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए: उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज सवाल किया कि आखिरकार किसान से वार्ता क्यों नहीं हो रही है। ICAR-CIRCOT के शताब्दी समारोह में बोलते हुए उन्होंने मंच पर मौजूद केंद्रीय कृषि और कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान से कहा, “कृषि मंत्री जी, हर पल आपके लिए महत्वपूर्ण है। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ, और भारत के संविधान के तहत दूसरे सबसे बड़े पद पर विराजमान व्यक्ति के रूप में मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि कृपया मुझे बताइए, क्या किसान से कोई वादा किया गया था, और वह वादा क्यों नहीं निभाया गया? हम क्या कर रहे हैं वादा पूरा करने के लिए? पिछले साल भी आंदोलन था, इस साल भी आंदोलन है, और समय जा रहा है, लेकिन हम कुछ नहीं कर रहे हैं।”
अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “माननीय कृषि मंत्री जी, मुझे तकलीफ हो रही है। मेरी चिंता यह है कि अब तक यह पहल क्यों नहीं हुई। आप कृषि और ग्रामीण विकास मंत्री हैं। मुझे सरदार पटेल की याद आती है, उनका जो उत्तरदायित्व था देश को एकजुट करने का, उन्होंने इसे बखूबी निभाया। यह चुनौती आज आपके सामने है, और इसे भारत की एकता से कम मत समझिए।”
“किसान से वार्ता तुरंत होनी चाहिए, और हमें सबको यह जानना चाहिए, क्या किसान से कोई वादा किया गया था? माननीय कृषि मंत्री जी, क्या पिछले कृषि मंत्रियों ने कोई लिखित वादा किया था? अगर किया था, तो उसका क्या हुआ?” उन्होंने जोर देते हुए कहा।
आंदोलित किसानों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा, “हम अपने लोगों से नहीं लड़ सकते, हम उन्हें इस स्थिति में नहीं डाल सकते कि वे अकेले संघर्ष करें। हम यह विचारधारा नहीं रख सकते कि उनका संघर्ष सीमित रहेगा, और वे अंततः थक जाएंगे। हमें भारत की आत्मा को परेशान नहीं करना चाहिए, हमें उसके दिल को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए। क्या हम किसान और सरकार के बीच एक सीमा रेखा बना सकते हैं? जिनको गले लगाना चाहिए, उन्हें दूर नहीं किया जा सकता।”
“जब मैंने आह्वान किया, तो मुझे एक प्रतिक्रिया मिली। प्रतिक्रिया माननीय जगजीत सिंह डल्लेवाल से आई। यह संतुलित प्रतिक्रिया थी। उन्होंने पहले जो मैंने कहा उस पर ध्यान केंद्रित किया। वह SKM और KMM जैसी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं, जो आंदोलित हैं। उन्होंने मेरी भावना को समझा, और फिर माननीय कृषि मंत्री ने पूछा, ‘उनका संदेश मेरे लिए क्या है?’ उनका संदेश था कि किसान से जो वादा किया गया था, वह पूरा क्यों नहीं हुआ? यह आपकी चुनौती है। जब कोई सरकार वादा करती है, और वह वादा किसान से जुड़ा होता है, तो हमें कभी भी कुछ अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए। किसान हमारे लिए सम्मानित, पूजनीय और हमेशा वंदनीय है। मैं खुद किसान का पुत्र हूँ, मुझे पता है किसान क्या कुछ नहीं झेलता है, और वह हमारा अन्नदाता है,” उन्होंने आगे कहा।
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “आज किसान को केवल एक काम सौंप दिया गया है: खेतों में अनाज उगाना और फिर उसकी सही कीमत पर बिक्री के बारे में सोचना। मुझे समझ में नहीं आता कि हम क्यों ऐसे फार्मूला नहीं बना सकते, जिसमें अर्थशास्त्रियों और थिंक टैंक के साथ विचार-विमर्श करके हमारे किसानों को पुरस्कृत किया जा सके। हम उन्हें उनका हक भी नहीं दे रहे, पुरस्कृत तो दूर की बात है। हमने जो वादा किया था, उसे देने में भी कंजूसी कर रहे हैं, और मुझे समझ में नहीं आता कि किसान से वार्ता क्यों नहीं हो रही है? हमारी मानसिकता सकारात्मक होना चाहिए; हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि अगर हम किसान को यह कीमत देंगे तो इसके नकारात्मक परिणाम होंगे। जो भी कीमत हम किसान को देंगे, देश को पांच गुना फायदा होगा, इसमें कोई दो राय नहीं है। मैंने सुना है कि लोग कहते हैं कि महंगाई बढ़ जाएगी। मैं एक सरल बात कहता हूँ। गेहूं से ब्रेड बनती है, और उसमें कितना अंतर है! दूध से आइस क्रीम बनती है, और उसमें भी कितना अंतर है। कौन लोग हैं जो कहते हैं कि अगर हम अपने किसानों को उनकी उपज की उचित कीमत देंगे, मुझे नहीं समझ आता कि इससे कोई संकट आएगा।”
किसान आंदोलन के व्यापक प्रभाव पर विचार करते हुए उन्होंने कहा, “यह बहुत संकीर्ण आकलन है कि किसान आंदोलन का मतलब केवल वे लोग हैं जो सड़कों पर हैं। नहीं। किसान का बेटा आज अधिकारी है, किसान का बेटा सरकारी कर्मचारी है। लाल बहादुर शास्त्री जी ने क्यों कहा था – जय जवान, जय किसान। उस जय किसान के साथ हमारा रवैया वही होना चाहिए, जैसा लाल बहादुर शास्त्री ने कल्पना की थी।”
भारत में हो रहे बदलाव पर अपनी भावना व्यक्त करते हुए श्री धनखड़ ने कहा, “पहली बार मैंने भारत को बदलते हुए देखा है। पहली बार मुझे महसूस हो रहा है कि एक विकसित भारत सिर्फ हमारा सपना नहीं, यह हमारा लक्ष्य है। भारत कभी इतनी ऊंचाई पर नहीं था। हमारी प्रतिष्ठा कभी इतनी ऊंची नहीं थी। जब ऐसा हो रहा है तो मेरा किसान क्यों परेशान है? वह क्यों पीड़ित है? Why is the farmer stressed? यह एक गंभीर मुद्दा है, और इसे हल्के में लेना मतलब यह है कि हम व्यावहारिक नहीं हैं, और हमारी नीति निर्माण सही दिशा में नहीं है।”
“मेरी पीड़ा यह है कि किसान और उनके हितैषी आज चुप हैं, बोलने से कतराते हैं। देश की कोई ताकत किसान की आवाज को दबा नहीं सकती। यदि कोई राष्ट्र किसान की सहनशीलता परखने की कोशिश करेगा, तो उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी,” उन्होंने कहा।
भारत में खेती और किसानों के महत्व पर जोर देते हुए और ICAR की भूमिका पर उन्होंने कहा, “भारत का कृषि क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था के लिए केंद्रीय है। इसके पहुँच का कोई मुकाबला नहीं है, और ICAR के पास अत्यधिक संभावनाएं हैं, जिन्हें उपयोग में लाना चाहिए। आपके पास 180 से अधिक संस्थान और कृषि विश्वविद्यालय पूरे देश में फैले हुए हैं। न केवल आप राष्ट्रीय कृषि प्रणाली के सबसे बड़े हैं, बल्कि दुनिया में सबसे बड़े हैं। और मैंने कहा, मेरे जड़ें ग्रामीण भारत में हैं, मेरी जड़ें खेती में हैं। यदि इनका विकास नहीं होगा, तो 2047 तक विकसित भारत का सपना, कम से कम किसान के लिए तो आना चाहिए। कृषि क्षेत्र के मुद्दों का समाधान शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए। किसानों की पीड़ा और आंदोलन देश की समग्र भलाई के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।”
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