भारत का लोकतांत्रिक ढांचा और “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की परिकल्पना

समग्र समाचार सेवा

नई दिल्ली,17 दिसंबर।

भारत का लोकतांत्रिक ढांचा अपनी जीवंत चुनावी प्रक्रिया के आधार पर फल-फूल रहा है और नागरिकों को हर स्तर पर शासन को सक्रिय रूप से आकार देने में सक्षम बनाता है। स्वतंत्रता के बाद से अब तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के 400 से अधिक चुनावों ने निष्पक्षता और पारदर्शिता के प्रति भारत के चुनाव आयोग की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है। हालाँकि, अलग-अलग और बार-बार होने वाले चुनावों की प्रकृति ने एक अधिक कुशल प्रणाली की आवश्यकता पर चर्चाओं को जन्म दिया है। इससे “एक राष्ट्र, एक चुनाव” की अवधारणा में रुचि फिर से जागृत हुई है।

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” के इस विचार को एक साथ चुनाव के रूप में भी जाना जाता है, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक ही साथ कराने का प्रस्ताव प्रस्तुत करता है। इस प्रणाली का उद्देश्य चुनावों के लिए किए जाने वाले प्रबंधों में सुधार, खर्चों में कमी और प्रशासन में बाधाओं को कम करना है।

भारत सरकार ने 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया, जिसने इस विचार की व्यवहार्यता की समीक्षा की। समिति की रिपोर्ट में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए व्यापक सुझाव दिए गए, जिनमें संवैधानिक संशोधन और चरणबद्ध कार्यान्वयन की सिफारिशें शामिल हैं। 18 सितंबर 2024 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इन सिफारिशों को स्वीकृति प्रदान की।

इतिहास और पृष्ठभूमि
1951 से 1967 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे। हालाँकि, राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के समयपूर्व विघटन ने 1968 और 1969 में इस प्रक्रिया को बाधित किया। 1970 में चौथी लोकसभा के भंग होने के बाद यह प्रवृत्ति समाप्त हो गई। 1980 के दशक से, देश को बार-बार चुनावों के चक्र का सामना करना पड़ा है, जिससे शासन और संसाधनों पर लगातार दबाव बना है।

विभिन्न लोक सभाओं की प्रमुख उपलब्धियों की समय-सीमा

समिति की रिपोर्ट और निष्कर्ष
समिति ने इस विषय पर 21,500 से अधिक प्रतिक्रियाएँ प्राप्त कीं, जिनमें से 80% ने एक साथ चुनाव का समर्थन किया। 47 राजनीतिक दलों में से 32 ने इस प्रस्ताव को समर्थन दिया। विशेषज्ञों, जैसे पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और चुनाव आयुक्तों ने भी बार-बार चुनावों के कारण होने वाली आर्थिक और सामाजिक बाधाओं को रेखांकित करते हुए इस विचार का समर्थन किया।

समिति ने अनुच्छेद 82ए और 324ए में संशोधन की सिफारिश की है, जिससे लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराए जा सकें। इसे दो चरणों में लागू करने की सिफारिश की गई है:

  1. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना।
  2. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के 100 दिनों के भीतर नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराना।

आगे की राह
जनता और राजनीतिक दलों के समर्थन को देखते हुए, “एक राष्ट्र, एक चुनाव” का विचार भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुदृढ़ और संसाधन-कुशल बनाने का वादा करता है। इसे लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधन, राजनीतिक आम सहमति और चरणबद्ध दृष्टिकोण आवश्यक हैं। यदि यह प्रणाली लागू होती है, तो यह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक ऐतिहासिक सुधार साबित हो सकती है।

 

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