बॉम्बे हाईकोर्ट ने पूर्व सेबी अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और बीएसई अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर पर लगाई रोक

समग्र समाचार सेवा
मुंबई,5 मार्च।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण कानूनी फैसले में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की पूर्व अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर रोक लगा दी है। यह आदेश विशेष अदालत के उस फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर आया है, जिसमें एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) को इन अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।

हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी

न्यायमूर्ति शिवकुमार डिजे की पीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि विशेष अदालत का आदेश “यांत्रिक” प्रतीत होता है और उसमें मामले की संपूर्ण समीक्षा नहीं की गई थी। अदालत ने कहा कि संबंधित अधिकारियों को अपना पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं दिया गया था, जिससे न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ वकील अमित देसाई और सुदीप पासबोला ने माधबी पुरी बुच एवं अन्य अधिकारियों की ओर से दलीलें पेश कीं। वहीं, पत्रकार सपन श्रीवास्तव, जिन्होंने यह शिकायत दर्ज करवाई थी, ने अपना पक्ष रखा।

तीन दशक पुरानी घटना का मामला

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि शिकायत में जिन कथित अनियमितताओं की बात की गई है, वे 1994 की हैं, जबकि संबंधित नियम 2002 में लागू हुए थे। उन्होंने विशेष अदालत के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि वर्तमान पदाधिकारी उस कथित अनियमितता से सीधे तौर पर जुड़े नहीं थे।

इसके अलावा, तुषार मेहता ने अदालत को याद दिलाया कि बॉम्बे हाईकोर्ट पहले ही सपन श्रीवास्तव पर फर्जी और बेबुनियाद याचिकाएं दायर करने के लिए ₹5 लाख का जुर्माना लगा चुका है। उन्होंने श्रीवास्तव को “आदतन मुकदमेबाज” बताया और कहा कि उनका उद्देश्य केवल सार्वजनिक अधिकारियों को परेशान करना था।

बीएसई और सेबी के अधिकारियों की सफाई

बीएसई अधिकारी प्रमोद अग्रवाल के वकील अमित देसाई ने भी शिकायत को गलत करार दिया और कहा कि यह मामला भारत की वित्तीय प्रणाली की साख को नुकसान पहुंचाने के लिए उठाया गया है। उन्होंने बताया कि जिन नियमों का हवाला देकर आरोप लगाए गए हैं, वे कंपनी की लिस्टिंग के काफी वर्षों बाद लागू हुए थे।

माधबी पुरी बुच के वकील सुदीप पासबोला ने तर्क दिया कि प्रतिभूति अनुबंध विनियमन अधिनियम (Securities Contract Regulation Act) के कथित उल्लंघन के आरोप निराधार हैं, क्योंकि कंपनी उन नियमों में संशोधन से पहले ही सूचीबद्ध हो चुकी थी।

क्या था पूरा मामला?

पत्रकार सपन श्रीवास्तव ने शिकायत में आरोप लगाया था कि माधबी पुरी बुच और कुछ सेबी व बीएसई अधिकारियों ने कॅल्स रिफाइनरीज़ लिमिटेड (Cals Refineries Ltd.) की “धोखाधड़ीपूर्ण” लिस्टिंग की अनुमति दी थी और कंपनी के खिलाफ समय पर कार्रवाई नहीं की गई, जिससे उन्हें और उनके परिवार को भारी नुकसान हुआ।

शिकायत के आधार पर विशेष अदालत ने एंटी-करप्शन ब्यूरो को भारतीय दंड संहिता, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और सेबी अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करने और 30 दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था। विशेष न्यायाधीश ने कहा था कि इस मामले में प्रारंभिक साक्ष्य मौजूद हैं, जो नियामकीय विफलता और मिलीभगत को दर्शाते हैं।

अगली सुनवाई और संभावित प्रभाव

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अब इस एफआईआर पर रोक लगाकर मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को तय की है। यह कानूनी मामला भारत के वित्तीय नियमन प्रणाली और कॉर्पोरेट गवर्नेंस की बारीकियों को उजागर करता है। इसका असर भविष्य में नियामक संस्थाओं की जवाबदेही और निवेशकों के हितों की रक्षा पर भी पड़ सकता है।

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