समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,22 अप्रैल। बीते रविवार, 20 अप्रैल 2025, को जबलपुर की शांत वायुमंडली ऊर्जा में एक दिव्य कंपन महसूस हुआ। “महर्षि परिक्रमा-2 समूह” ने आध्यात्मिक चेतना से ओत-प्रोत भारतवर्ष के भौगोलिक केंद्र – करौंदी (ब्रह्म स्थान) की यात्रा का शुभारंभ किया। यह कोई सामान्य यात्रा नहीं थी, यह एक चेतना-यात्रा थी – वेदों की परंपरा को पुनर्जागृत करती, ध्यान के गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित करती, और महर्षि महेश योगी की आध्यात्मिक गूंज को पुनः जीवंत करती।
परिक्रमा की शुरुआत वैदिक गुरु परंपरा पूजन से हुई, जिसके पश्चात सभी सदस्यों ने सामूहिक प्राणायाम एवं भावातीत ध्यान में भाग लिया। पूरे वातावरण में जैसे शांति की एक अदृश्य लहर दौड़ गई – राजा बंगला में निवास कर रहे साधकों के चेहरे आत्मिक आनंद से आलोकित हो उठे।
दोपहर 2:00 बजे परिक्रमा दल ने प्रस्थान किया महर्षि महेश योगी वैदिक विश्वविद्यालय, बिजौरी की ओर। वहां के अंतरराष्ट्रीय परिसर की भव्यता ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। सभागार कक्ष में श्री राजकुमार श्रीवास्तव जी ने जब महर्षि जी के विश्वशांति अभियान की झलकियाँ साझा कीं, तो सभी की आंखों में प्रेरणा के दीप जल उठे।
इमारतों की स्थापत्य सुंदरता, परिसर की सौम्यता और वातावरण की दिव्यता ने एक बात स्पष्ट कर दी – यह कोई साधारण स्थान नहीं, बल्कि एक ऊर्जा केंद्र है, जहां से चेतना की तरंगें सम्पूर्ण भारत में प्रवाहित होती हैं।
इसके बाद जब परिक्रमा दल ने भारत के भौगोलिक केंद्र बिंदु – ग्राम करौंदी की ओर प्रस्थान किया, तो जैसे प्रकृति भी साथ चल पड़ी। वहां की ऊर्जा, प्रकृति की नीरवता और दिव्यता को सभी ने स्वयं अनुभव किया। यह कोई भ्रम नहीं था, बल्कि यह वह स्थल था जहां से भारत के हर कोने तक ऊर्जा प्रवाहित होती है।
संध्या काल में राजा बंगला के सभागार में एकत्र होकर सभी सदस्यों ने भावातीत ध्यान सिद्धि कार्यक्रम में भाग लिया। इसके उपरांत “महर्षि अमृत-प्रवाह” का श्रवण किया गया, जिसमें पूज्य महर्षि महेश योगी जी ने ध्यान के विभिन्न आयामों के प्रभावों को स्पष्ट किया।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में श्री आर.एस. पटवारी जी ने अपने संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली भाषण में भावातीत ध्यान की वास्तविक प्रक्रिया और महत्व पर प्रकाश डाला। जब जिज्ञासु साधकों ने प्रश्न पूछे, तो हर उत्तर उनके भीतर एक नयी चेतना की चिंगारी जगा गया। यह वो संध्या थी, जहां प्रश्न नहीं, समाधान प्रमुख थे।
कार्यक्रम का समापन तृतीय दिवस की कार्य योजना की रूपरेखा के साथ हुआ। परिक्रमा का यह दूसरा दिन केवल एक आध्यात्मिक यात्रा नहीं था – यह एक संवेदनात्मक जागरण, एक चेतना की लहर, और भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण की ओर उठाया गया एक निर्णायक कदम था।
यह परिक्रमा कहती है कि भारत केवल एक भौगोलिक देश नहीं है – यह चेतना का केंद्र, ज्ञान की भूमि और शांति की प्रेरणा है। और करौंदी जैसे स्थलों की यात्रा हमें यह स्मरण कराती है कि भारत का केंद्र केवल नक्शे में नहीं, बल्कि हमारे हृदयों में है।
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