ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार देने की सिफारिश पर पाकिस्तान में बवाल, नेताओं ने की समीक्षा की मांग

समग्र समाचार सेवा
इस्लामाबाद, 23 जून: ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते युद्ध के बीच अमेरिका द्वारा ईरानी परमाणु ठिकानों पर बमबारी के फैसले ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को झकझोर दिया है। अब इस निर्णय का असर पाकिस्तान की घरेलू राजनीति पर भी साफ देखा जा रहा है, जहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने के सरकार के फैसले पर कड़ा विरोध सामने आया है।

सरकार पर ‘चापलूसी’ का आरोप

पाकिस्तान सरकार ने शुक्रवार को घोषणा की थी कि वह राष्ट्रपति ट्रंप को भारत-पाकिस्तान तनाव में उनकी कथित ‘शांति’ भूमिका के लिए नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करेगी। इस सिफारिशी पत्र पर उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार के हस्ताक्षर हैं, जिसे नॉर्वे की नोबेल समिति को भेजा जा चुका है।

लेकिन शनिवार को अमेरिका और इजरायल द्वारा मिलकर ईरान के फोर्दो, इस्फहान और नतांज जैसे परमाणु ठिकानों पर हमले के बाद यह फैसला मुद्दा बन गया है। सोशल मीडिया पर #RevokeTrumpNomination ट्रेंड कर रहा है।

मौलाना फजलुर रहमान ने खोला मोर्चा

जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (एफ) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने तीखा हमला करते हुए कहा,

“ट्रंप का ‘शांतिदूत’ चेहरा झूठा साबित हो चुका है। जो व्यक्ति फलस्तीन, सीरिया और ईरान पर बमबारी को सही ठहराता है, वह शांति का प्रतीक कैसे हो सकता है? यह सिफारिश पाकिस्तान की कमजोरी को दर्शाती है।”

उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर और ट्रंप के बीच हुई हालिया मुलाकात के बाद यह कदम उठाना चापलूसी और विदेश नीति में बचकानापन है।

पूर्व सीनेटर मुशाहिद हुसैन का बयान

पूर्व सीनेटर मुशाहिद हुसैन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर लिखा,

“अब ट्रंप ‘शांतिदूत’ नहीं, बल्कि एक युद्ध समर्थक नेता बन चुके हैं। सरकार को तुरंत उनकी नोबेल सिफारिश की पुनर्समीक्षा करनी चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा कि ट्रंप ने खुद को नेतन्याहू और इजरायली लॉबी के दबाव में डाल दिया है और यह कदम उनके राष्ट्रपति कार्यकाल की सबसे बड़ी रणनीतिक भूल बन सकती है।

 

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