अपशिष्ट से उपयोगिता तक : भारत में प्लास्टिक रीसाइक्लिंग के लिए नीडोनॉमिक रोडमैप

प्रो. मदन मोहन गोयल, पूर्व कुलपति

जलवायु संकट और पर्यावरणीय क्षरण के इस युग में, भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है — जहाँ प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन में टुकड़ों-टुकड़ों में किए जा रहे प्रयासों की जगह अब समग्र और साहसिक कदमों की आवश्यकता है। नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (एनएसटी  ) इस संकट का समाधान एक संरचित और समावेशी दृष्टिकोण के माध्यम से करना चाहता है।  एनएसटी का यह विश्वास है कि “अपशिष्ट तब तक अपशिष्ट नहीं होता जब तक हम उसे व्यर्थ नहीं कर देते।” यह दृष्टिकोण सोच में बदलाव की मांग करता है — अपशिष्ट से उपयोगिता की ओर, जिसके लिए परिपत्र अर्थव्यवस्था  के सिद्धांतों को अपनाना और पूरे प्लास्टिक पुनर्चक्रण मूल्य श्रृंखला का आधुनिकीकरण करना आवश्यक है।

भारत में प्लास्टिक का विरोधाभास

कभी चमत्कारी माने जाने वाले प्लास्टिक को आज एक वैश्विक पर्यावरणीय संकट का कारण माना जाता है। भारत हर वर्ष लगभग 3.5 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा लैंडफिल्स, नदियों और समुद्रों में चला जाता है। यद्यपि कुछ हद तक पुनर्चक्रण होता है, फिर भी यह प्रक्रिया अव्यवस्थित, असंगठित और सीमित है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (  सीपीसीबी) ने प्लास्टिक कचरा प्रबंधन की निगरानी और विनियमन में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन केवल नियमन पर्याप्त नहीं है। आवश्यकता है एक एकीकृत, नवोन्मेषी और प्रेरणादायक दृष्टिकोण की — जो कि जरूरत आधारित जीवन को प्राथमिकता देने वाले नीडोनॉमिक्स सिद्धांतों पर आधारित हो।

परिवर्तन का मांडेटनीडोनॉमिक्स दृष्टिकोण

एनएसटी प्लास्टिक पुनर्चक्रण पारिस्थितिकी तंत्र में निम्नलिखित प्रमुख सुधारों की मांग करता है:

1. पारदर्शिता और दक्षता के लिए तकनीक का समावेश

प्रौद्योगिकी इस परिवर्तन की धुरी होनी चाहिए। रीयल-टाइम डिजिटल ट्रैकिंग, एआई आधारित छंटाई, और स्मार्ट डस्टबिन व ट्रकों में IoT सेंसर के माध्यम से कचरा संग्रहण से पुनर्चक्रण तक की प्रक्रिया को कुशल बनाया जा सकता है। मोबाइल ऐप्स के माध्यम से नागरिकों, नगर निकायों, कबाड़ीवालों और पुनर्चक्रणकर्ताओं को जोड़कर एक जवाबदेह प्रणाली बनाई जा सकती है।  एनएसटी का मानना है कि यह तकनीकी बदलाव केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित न हो — इसके लिए ग्रामीण और अर्ध-शहरी भारत हेतु सस्ते और स्केलेबल मॉडल विकसित किए जाएं।

2. असंगठित क्षेत्र की भूमिका का पुनर्परिकल्पन

भारत में 15 लाख से अधिक लोग अनौपचारिक कचरा बीनने के कार्य से जुड़े हैं। ये लोग पुनर्चक्रण की रीढ़ हैं, लेकिन उपेक्षित भी हैं।  एनएसटी का मॉडल इन्हें सहकारी समितियों, पहचान पत्र, प्रशिक्षण, और सुरक्षा उपकरण के माध्यम से औपचारिक प्रणाली में शामिल करने का पक्षधर है।
इनकी गरिमा का सम्मान करते हुए इनकी जमीनी समझ का लाभ लिया जा सकता है।

3. विकेंद्रीकृत स्मार्ट अवसंरचना

एनएसटी का सुझाव है कि बड़े केंद्रीकृत पुनर्चक्रण संयंत्रों की जगह स्थानीय पुनर्चक्रण केंद्र बनाए जाएं — छोटे, मोबाइल, और स्रोत के निकट। इससे परिवहन लागत घटेगी, कार्बन उत्सर्जन कम होगा, और सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहन मिलेगा। हर नगरपालिका वार्ड, पंचायत, या शहरी झुग्गी क्षेत्र में ऐसे केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं, जो सार्वजनिक-निजी भागीदारी द्वारा संचालित हों।

4. जनमानस में बदलाव: “यूज़ एंड थ्रो” से “रीयूज़ एंड रिस्पेक्ट

समस्या का मूल व्यवहार में है।  एनएसटी मानता है कि पर्यावरणीय नैतिकता को स्कूलों, कॉलेजों और सामुदायिक केंद्रों में प्रतिदिन की बातचीत का हिस्सा बनाया जाए।
जन-जागरूकता अभियानों जैसे “प्लास्टिक को पहचानो, पुनः उपयोग में लाओ” से उत्तरदायी उपभोग को बढ़ावा दिया जा सकता है। बिहेवियरल इकॉनॉमिक्स के औजारों जैसे पुरस्कार प्रणाली भी प्रभावी सिद्ध हो सकती है।

परिपत्र अर्थव्यवस्थाचक्र को पूर्ण करना

एनएसटी परिपत्र अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को पूरी तरह से अपनाने की वकालत करता है। यह उत्पाद जीवनचक्र को दोबारा सोचने की बात करता है — डिज़ाइन से लेकर निपटान तक, ताकि अधिकतम उपयोगिता निकाली जा सके।

मुख्य बिंदु:

  • रीसायक्लेबिलिटी पर केंद्रित डिज़ाइन: एकल सामग्री, आसानी से अलग होने वाले घटक, और इको-फ्रेंडली रंगों का उपयोग।
  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व ( ईपीआर): कंपनियों को अपने उत्पादों और पैकेजिंग को वापस लेने व पुनर्चक्रण में निवेश की नीति।
  • बाय-बैक और डिपॉजिट रिफंड प्रणाली: उपयोग किए गए प्लास्टिक को लौटाने पर प्रोत्साहन।
  • प्लास्टिक-से-ईंधन और उत्पाद नवाचार: केमिकल रीसायक्लिंग, 3डी प्रिंटिंग जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा।

एनएसटी का मानना है कि यह मॉडल महंगा या अभिजात्य नहीं, बल्कि आर्थिक, नैतिक और समावेशी होना चाहिए।

सतत प्रभाव के लिए स्मार्ट निवेश

स्थायी पुनर्चक्रण प्रणाली के लिए रणनीतिक निवेश आवश्यक है।  एनएसटी आग्रह करता है कि:

  • कचरा प्रबंधन स्टार्टअप्स में निवेश बढ़ाया जाए।
  • सामुदायिक केंद्रों को ब्याज मुक्त ऋण या सब्सिडी दी जाए।
  • सीएसआर फंडिंग का उपयोग स्थानीय पुनर्चक्रण और जनशिक्षा अभियानों में हो।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से तकनीकी आदान-प्रदान और क्षमता निर्माण हो।

एनएसटी आर्थिक लाभ और सामाजिक जिम्मेदारी को साथ लेकर चलने वाली मूल्य आधारित निवेश रणनीति पर बल देता है।

शासन की भूमिका और समन्वय की आवश्यकता

सरकारी संस्थाएं जैसे  सीपीसीबीअब केवल निगरानीकर्ता न रहकर परिवर्तन के सक्षमकर्ता बनें। इसके लिए जरूरी है:

  • एकीकृत डिजिटल डैशबोर्ड: पूरे देश में प्लास्टिक कचरे की निगरानी के लिए।
  • नीति समन्वय: राज्य और केंद्र की नीतियों को एक साझा दृष्टिकोण में ढालना।
  • हितधारकों का समन्वय: नीति निर्माताओं, उद्योगपतियों, NGO, और अनौपचारिक कार्यकर्ताओं को नियमित मंचों पर एक साथ लाना।

एनएसटी मानता है कि सहयोग, न कि विभागीयता, आगे बढ़ने का मार्ग है।

भारत की क्षमतामात्रा से मूल्य तक

भारत न केवल एक प्रमुख प्लास्टिक कचरा उत्पादक है, बल्कि मानव संसाधन, तकनीकी विशेषज्ञता, और नीतिगत प्रगति के साथ एक वैश्विक अग्रणी बन सकता है। यह बदलाव मात्रा से मूल्य की ओर जाना है — केवल संग्रहण नहीं, बल्कि प्लास्टिक से ऊर्जा, उत्पाद या कच्चे माल के रूप में मूल्य प्राप्त करना है।
एनएसटी का स्पष्ट मत है: “भारत अपवाद बनकर नहीं, उदाहरण बनकर नेतृत्व करे।”

निष्कर्ष:

यह यात्रा केवल प्लास्टिक प्रबंधन की नहीं, बल्कि उपभोग, उत्पादन और प्रकृति के साथ हमारे संबंध को फिर से परिभाषित करने की है। एनएसटी केवल एक ढांचा नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन प्रस्तुत करता है — जो व्यक्ति से शुरू होकर समाज तक फैलता है। इस संसाधन-संपन्न लेकिन जिम्मेदारी-विहीन दुनिया में, भारत को आगे आना ही होगा। अनुशासन, जवाबदेही और जरूरत-आधारित उपभोग के मूल्यों को अपनाकर हम प्लास्टिक क्रांति को प्रतिबंध या आरोप नहीं, बल्कि संतुलन और आचरण के माध्यम से नेतृत्व दे सकते हैं।

आइए हम संकल्प लें -हर एक पुनर्चक्रित बोतल एक स्वच्छ अंतरात्मा की ओर एक कदम हो, और हर प्लास्टिक टुकड़ा जो लैंडफिल से बचाया जाए, नीडोनॉमिक्स के आलोक में धरती की गरिमा की पुनर्स्थापना का प्रतीक बने ।

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