ब्रांड्स के पीछे की सच्चाई: नीडोनॉमिक्स की दृष्टि से ओरिजिनल, डुप्लीकेट और उपभोक्ता बुद्धिमत्ता पर स्ट्रीट इकॉनॉमिक्स का विश्लेषण

नीडोनॉमिक्स के दृष्टिकोण से नैतिक ब्रांडिंग और स्ट्रीट-स्मार्ट विकल्पों की खोज

 

प्रो. मदन मोहन गोयल.प्रवर्तक, नीडोनॉमिक्स  एवं पूर्व कुलपति

उपभोक्तावाद के इस युग में हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति का दृष्टिकोण अब केवल आवश्यकता तक सीमित नहीं है। यह बहुपरतीय, गतिशील और सामाजिक-आर्थिक, मानसिक और सांस्कृतिक कारकों से प्रभावित होता है। नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (एनएसटी) इस भ्रम को स्पष्टता प्रदान करता है, जो आवश्यकता आधारित उपभोग और लालच प्रेरित आकांक्षा में मौलिक अंतर करता है।

एक ऐसा ही क्षेत्र जहां यह द्वंद्व स्पष्ट रूप से दिखता है, वह है ब्रांडेड उत्पादों की पसंद बनाम उनके अनब्रांडेड या डुप्लीकेट विकल्पों की स्वीकार्यता। यह कहना, “हम ओरिजिनल ब्रांडेड उत्पादों को पसंद करते हैं,” आज की भौतिकतावादी दुनिया में सामान्य और यहां तक कि आकर्षक लग सकता है। लेकिन नीडोनॉमिक्स के संदर्भ में, यह एक गहराई से लेन-देन आधारित कथन है, जो विवेकपूर्ण मूल्यांकन की मांग करता है।

ओरिजिनल का मिथक और डुप्लीकेट की गलत समझ

वैश्विक बाज़ार ने “ब्रांडेड” उत्पादों के साथ एक मजबूत भावनात्मक और मानसिक जुड़ाव बना दिया है। एक ब्रांड अब केवल उत्पाद नहीं, बल्कि विश्वास, प्रतिष्ठा और आकर्षण का प्रतीक बन चुका है। लेकिन एनएसटी इस धारणा को चुनौती देता है और एक अनदेखे सत्य को उजागर करता है—यह जरूरी नहीं कि “ओरिजिनल” वास्तव में मौलिक हो।

ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जहां उच्च ब्रांड वाले उत्पाद खुद अपने शोरूम से नकली या घटिया उत्पाद बेचते पाए गए हैं, केवल अत्यधिक मुनाफा कमाने के लालच में। तब यह उचित प्रश्न उठता है: यदि ओरिजिनल ही ओरिजिनल नहीं है, तो डुप्लीकेट को  स्वाभाविक गलत क्यों माना जाए?

एनएसटी एक साहसिक लेकिन तर्कसंगत स्थिति लेता है—यदि डुप्लीकेट उत्पाद पारदर्शी है और उचित मूल्य पर वास्तविक आवश्यकता को पूरा करता है, तो उसमें कोई धोखाधड़ी नहीं है। असल धोखाधड़ी तो तब है, जब ब्रांडेड उत्पाद अधिक मूल्य पर बिकते हैं लेकिन गुणवत्ता या प्रदर्शन में असफल होते हैं।

भारतीय स्ट्रीट इकॉनॉमी का अर्थशास्त्रडुप्लीकेट संस्कृति का औचित्य

भारत की जीवंत स्ट्रीट इकॉनॉमी—फुटपाथी दुकानों से लेकर साप्ताहिक हाट तक—लंबे समय से महंगे ब्रांडेड उत्पादों के सस्ते विकल्पों का स्रोत रही है। यहां बौद्धिक संपदा (आई पी ) कानून अक्सर दैनिक आर्थिक व्यवहारिकता से टकराते हैं।

जहां वैश्विक कानून ऐसी प्रथाओं को ‘पायरेसी’ या ‘नकलीपन’ मानते हैं,  एनएसटी  इसे एक अलग दृष्टिकोण से देखता है—एक ऐसा दृष्टिकोण जो कॉर्पोरेट ब्रांडिंग के अंधानुकरण के बजाय पहुंच, किफायतीपन और कार्यक्षमता को प्राथमिकता देता है।

एनएसटी इस प्रथा को नीडो-न्याय के रूप में मान्यता देता है—विशेष रूप से भारत के मध्यम वर्ग और श्रमिक वर्ग  के लिए, जो बिना ब्रांड प्रीमियम के उपयोगी वस्तुओं तक पहुंच के हकदार हैं। स्ट्रीट इकॉनॉमी भले ही मौलिकता न दे पाए, लेकिन वह मूल्य के बदले मूल्य देने की ईमानदारी जरूर देती है।

एक व्यावहारिक उदाहरण लें: यदि एक ब्रांडेड शर्ट ₹5,000 में मिलती है और दिखने में वही शर्ट ₹500 में उपलब्ध हो, तो एक परिवार का जिम्मेदार पुरुष स्वाभाविक रूप से सस्ते विकल्प को ही चुनेगा। यह निर्णय न तो कानून का अपमान है और न ही किसी को ठगने का प्रयास, बल्कि परिवार की आवश्यकताओं का सम्मान है।

एनएसटी  इसे नीडोनॉमिक निर्णय कहता है—एक जिम्मेदार और विनम्र विकल्प।

ब्रांडिंग की नैतिक कीमतजब लोगो बन जाते हैं भ्रम

आधुनिक ब्रांडिंग अब पदार्थ से अधिक कहानी पर केंद्रित हो गई है। कंपनियां अपने उत्पादों को जीवनशैली का विकल्प दर्शाने में करोड़ों खर्च करती हैं। यह भावनात्मक रूप से उपभोक्ताओं को ऐसे भ्रम में डालती है कि वे वस्तु नहीं, उसका लोगो  खरीदते हैं।

नीडोनॉमिक्स उपभोक्ताओं से आग्रह करता है कि वे इस सतही परत के परे सोचें। क्या हम गुणवत्ता खरीद रहे हैं या केवल ब्रांड का नाम? क्या हम उपयोगिता ले रहे हैं या केवल दिखावा?

एनएसटी  का मानना है कि ‘ओरिजिनल बनाम डुप्लीकेट’ की बहस में असली सवाल कानून नहीं, नैतिकता और विवेक का होना चाहिए। खासकर जब कई वैश्विक ब्रांड अपने उत्पाद उन्हीं फैक्ट्रियों में बनवाते हैं जहां डुप्लीकेट बनते हैं, वही कच्चा माल, वही श्रमिक।

अंतर केवल एक लोगो की मुहर और कीमत की मानसिकता में है।

उपभोक्ता मानसिकता का नीडोनॉमिक्स के माध्यम से पुनः ब्रांडिंग

एनएसटी का उद्देश्य है कि लोगों को ऐसी आर्थिक समझ दी जाए जो आवश्यकता का सम्मान करे, लालच को हतोत्साहित करे और उत्पादन व उपभोग में पारदर्शिता बढ़ाए।

इसके कुछ प्रमुख आयाम निम्नलिखित हैं:

  1. उपभोक्ता शिक्षा: उपभोक्ताओं को ब्रांड के बाहरी चमक-दमक के पार गुणवत्ता को पहचानना सीखना चाहिए। एक नीडोउपभोक्ता उत्पाद का मूल्यांकन बाज़ार की चर्चा से नहीं, बल्कि अपनी आवश्यकता और संतुष्टि से करता है।
  2. स्थानीय विकल्पों को बढ़ावा: स्वदेशी और लघु स्तर पर निर्मित वस्तुएं जो बिना ब्रांड के गुणवत्ता देती हैं, उन पर जोर दिया जाना चाहिए। ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल भी इसी दिशा में है।
  3. नीति सुधार:  आई पी कानूनों को विकासशील देशों की सामाजिक-आर्थिक हकीकत को ध्यान में रखते हुए पुनःगठित किया जाना चाहिए। स्ट्रीट वेंडर्स और लघु निर्माताओं को अपराधी ठहराने के बजाय, उनकी आवश्यकता आधारित प्रथाओं को संरक्षण मिलना चाहिए।
  4. कॉर्पोरेट जवाबदेही: ब्रांड्स को “ओरिजिनलिटी” के मिथक पर कम और वास्तविक गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। एनएसटी नैतिक विपणन, वास्तविक मूल्य निर्धारण और उत्पादन में पारदर्शिता की मांग करता है।

 नीडोनॉमिक्स में ब्रांडिंगएक संतुलित दृष्टिकोण

इसका अर्थ यह नहीं कि एनएसटी सभी ब्रांडेड उत्पादों के खिलाफ है। कई बार ब्रांड असल में बेहतर गुणवत्ता, सेवा और टिकाऊपन प्रदान करते हैं, और वे एक विवेकपूर्ण विकल्प बन सकते हैं।

लेकिन नीडोनॉमिक्स दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि यह चुनाव भावनात्मक या सामाजिक दबाव से नहीं, बल्कि आवश्यकता से प्रेरित हो। एक ब्रांड अच्छा तभी माना जाएगा जब वह मूल्य आधारित हो, न कि केवल आडंबरपूर्ण।

निष्कर्ष:

इस प्रतीकों, स्थिति और ब्रांडिंग भ्रमों से संचालित संसार में, नीडोनॉमिक्स हमें याद दिलाता है कि विवेकपूर्ण चयन करना हमारा अधिकार है। चाहे वह जूते हों, घड़ी हो या स्मार्टफोन—असल ब्रांड वो होना चाहिए जो हमारी समझदारी और विवेक को दर्शाए।

एक ईमानदारी से ज़रूरत पूरी करने वाला डुप्लीकेट, एक धोखेबाज़ ब्रांडेड उत्पाद से कहीं ज्यादा नैतिक हो सकता है।

आइए हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ें, जहां आर्थिक व्यवहार भ्रम नहीं, बल्कि बुद्धिमत्तानैतिकता और आवश्यकता से निर्देशित हो—यही नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट की असली पहचान है।

मुख्य बिंदु:

  • ओरिजिनल भी भावना में डुप्लीकेट हो सकते हैं; डुप्लीकेट भी उपयोगिता में ओरिजिनल हो सकते हैं।
  • लागत प्रभावशीलता सस्तापन नहीं, बल्कि समझदारी है।
  • स्ट्रीट इकॉनॉमिक्स, भले ही कानून से टकराते हों, लेकिन नैतिक और आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
  •  एनएसटी दिखावे पर नहीं, मूल्य पर जोर देता है; प्रतीकों पर नहीं, सच्चाई पर जोर देता है।
  • ब्रांडिंग को आवश्यकता की सेवा करनी चाहिए, न कि उपभोक्ता के मन का शोषण। हमें अपने विवेक से निर्णय लेने का अधिकार पुनः प्राप्त करना होगा।

 

 

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