समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 23 जुलाई: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने सियासी हलकों में गर्मी ला दी है। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरएसएस प्रमुख पर तीखा पलटवार करते हुए कहा कि मोहन भागवत न केवल भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ऐतिहासिक दृष्टि को खारिज कर रहे हैं, बल्कि उन शिक्षाविदों की भी उपेक्षा कर रहे हैं जिन्होंने भारत के इतिहास को गहराई से समझा और पढ़ाया है।
‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ को लेकर टिप्पणी
खड़गे ने अपने बयान में विशेष रूप से नेहरू द्वारा लिखित ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ का उल्लेख किया और कहा, “वे (मोहन भागवत) उस पुस्तक को खारिज कर रहे हैं, जिसे भारत के इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है।” उन्होंने आगे कहा कि भागवत की सोच इतिहास को राजनीतिक चश्मे से देखने की कोशिश है, जो देश की एकता और विविधता के लिए खतरा बन सकती है।
#WATCH | Delhi: On RSS Chief Mohan Bhagwat's statement, Rajya Sabha LoP and Congress chief Mallikarjun Kharge says, "…They reject the book 'Discovery of India' written by Jawaharlal Nehru and reject the things said by our History professors in Universities. The history of RSS… pic.twitter.com/nn5cjZXcXu
— ANI (@ANI) July 23, 2025
‘आरएसएस का इतिहास अलग’ – खड़गे
कांग्रेस अध्यक्ष ने स्पष्ट रूप से कहा, “आरएसएस का इतिहास देश के इतिहास से बिल्कुल अलग है।” खड़गे ने यह आरोप भी लगाया कि आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी नहीं निभाई और अब वे इतिहास को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका इशारा स्पष्ट रूप से इस ओर था कि देश की ऐतिहासिक स्मृतियों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है।
राज्यसभा में गूंज सकता है मामला
मोहन भागवत के बयान को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे की प्रतिक्रिया से यह संकेत मिल रहा है कि संसद के मानसून सत्र में यह मुद्दा गर्मा सकता है। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल इस बयान को लेकर सरकार पर हमलावर हो सकते हैं और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों और ऐतिहासिक तथ्यों के विरुद्ध बता सकते हैं। खासतौर पर ऐसे समय में जब शिक्षा और पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है।
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