न्यायाधीश वर्मा के खिलाफ सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट में महाभियोग और नकदी विवाद की जांच

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 28 जुलाई: सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश यशवंत वर्मा को लेकर दो बड़े याचिका बिंदु सुनने के लिए सूचीबद्ध हैं। एक याचिका में लोकसभा में उनके खिलाफ महाभियोग (इम्पीचमेंट) नोटिस का विषय है, और दूसरी में उनके सरकारी आवास से जलाए गए नकद की तफ्तीश से संबंधित प्राथमिकी की मांग शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट की सूची के अनुसार, न्यायमूर्ति दीपंकर दत्ता और ए. जी. मसिह की पीठ न्यायाधीश वर्मा द्वारा दायर याचिका सुनेगी, जिसमें उन्होंने तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी है। उस आंतरिक समिति ने अनुच्छेद 124(4) के अंतर्गत वर्मा की बर्खास्तगी की सिफारिश की थी। अदालत में दायर याचिका में न्यायाधीश वर्मा ने आरोप लगाया है कि समिति ने “पूर्वनिर्धारित तरीके” से कार्य किया और उन्हें अपनी तरफ से बचाव प्रस्तुत करने का उचित अवसर नहीं मिला। उन्होंने उच्चतम न्यायालय से उस रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की है।

इसी अवधि में न्यायमूर्ति दत्ता की पीठ एक दूसरी याचिका पर भी विचार करेगी, जिसे अधिवक्ता मैथ्यूज़ जे. नेडुमपारा ने दायर किया है। इसमें मांग की गई है कि दिल्ली पुलिस को न्यायाधीश वर्मा के सरकारी आवास के बाहरी भवन में जलाए गए नकद का आरोप दर्ज करने को निर्देश दिया जाए। अधिवक्ता नेडुमपारा ने निर्देश दिया कि सरकार, जिसकी पुलिस पर नियंत्रण है, उसे इस मामले में प्राथमिक कार्रवाई करना चाहिए।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में इसी विषय पर नेडुमपारा की याचिका खारिज कर दी थी और मई में न्यायाधीश वर्मा के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग वाली याचिका भी अधूरी रह गई थी। मामला तब शुरू हुआ जब 14 मार्च को अग्निशमन दल आग बुझाने के दौरान वर्मा के सरकारी आवास में नकदी जलने की घटना की सूचना मिली। इस घटना ने न्यायिक हलकों में हलचल मचा दी थी और न्यायाधीश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेजकर आरोपों की जांच शुरू कर दी गई थी।

आंतरिक जांच समिति ने पाया कि जलाई गई नकदी भंडार कक्ष (store room) में थी, जो न्यायाधीश वर्मा या उनके परिवार के नियंत्रण में था। समिति ने यह निष्कर्ष निकाला कि 15 मार्च की सुबह नकदी भंडारकक्ष से हट गई थी। समिति की सदस्यता में शामिल मुख्य न्यायाधीश शील नागू, न्यायमूर्ति जी.एस. संधवालिया और न्यायमूर्ति अनु सिवरमन ने पाया कि न्यायाधीश वर्मा की कार्यशैली के चलते उनको बर्खास्त करने की सिफारिश की जानी चाहिए। रिपोर्ट में आरोप लगे कि वे संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत हटाए जाने लायक गम्भीर ‘misconduct’ में लिप्त रहे।

सुप्रीम कोर्ट की इस सुनवाई का असर न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता पर पड़ेगा। यदि कोर्ट समीक्षा के बाद जांच समिति की रिपोर्ट को बरकरार रखता है, तो यह महाभियोग प्रक्रिया की राह को स्पष्ट दिशा दे सकती है। वहीं यदि कोर्ट वर्मा की याचिका को मान्यता देता है तो इसमें जांच समिति की निष्पक्षता पर प्रश्न उठ सकते हैं।

इस पूरे घटनाक्रम का राजनीतिक और संस्थागत महत्व व्यापक है। न्यायाधीशों के खिलाफ आरोपों की सार्वजनिक जांच और महाभियोग की प्रक्रिया न्यायपालिका की विश्वसनीयता से जुड़ी हैं। लोकतंत्र में संवैधानिक संस्थान जब सवालों के घेरे में आते हैं, तो फैसला केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि न्याय व्यवस्था की प्रतिष्ठा का होता है।

 

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