एमपी की महिला जज का इस्तीफा: ‘न्यायपालिका ने मुझे निराश किया
न्याय के मंदिर में न्याय से वंचित: महिला जज का इस्तीफा बना न्यायिक व्यवस्था पर सवालिया निशान, जानिए क्या है पूरा मामला जिस पर लगाए थे आरोप, उसे ही बनाया हाईकोर्ट का जज
- मध्य प्रदेश की महिला जज अदिति शर्मा ने इस्तीफा दिया, जिस सीनियर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया, उसे ही हाईकोर्ट का जज बना दिया गया था।
- अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा, ‘मैंने न्याय में विश्वास नहीं खोया है, बल्कि उस संस्था ने मुझे निराश किया, जिसने न्याय की रक्षा की शपथ ली थी।’
- यह घटना न्यायपालिका की आंतरिक कार्यप्रणाली और यौन उत्पीड़न के आरोपों से निपटने के तरीकों पर गंभीर सवाल उठाती है।
समग्र समाचार सेवा
जबलपुर, 2 अगस्त, 2025: न्यायपालिका पर अक्सर जनता का अटूट भरोसा होता है। लेकिन जब न्याय के मंदिर के भीतर ही एक न्यायाधीश को न्याय से वंचित होना पड़े, तो यह पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा कर देता है। मध्य प्रदेश की एक महिला सिविल जज, अदिति शर्मा ने अपने पद से इस्तीफा देकर न्यायिक गलियारों में हलचल मचा दी है। उनका इस्तीफा उस विरोध का प्रतीक है, जिसके तहत उन्होंने एक वरिष्ठ जिला न्यायाधीश, राजेश कुमार गुप्ता को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का जज बनाए जाने का कड़ा विरोध किया था। उन्हीं गुप्ता पर अदिति शर्मा और दो अन्य महिला न्यायिक अधिकारियों ने दो साल पहले यौन उत्पीड़न और दुराचार के गंभीर आरोप लगाए थे।
क्या हैं अदिति शर्मा के गंभीर आरोप?
अदिति शर्मा ने अपने इस्तीफे में जो लिखा है, वह न्यायपालिका में व्याप्त चुप्पी और उदासीनता की कड़वी सच्चाई को बयां करता है। उन्होंने आरोप लगाया कि:
उत्पीड़न और दुराचार: उन्होंने 2023 में वरिष्ठ जिला न्यायाधीश राजेश कुमार गुप्ता पर उत्पीड़न और दुराचार के आरोप लगाए थे। उन्होंने इन आरोपों को ‘अज्ञात रूप से नहीं, बल्कि दस्तावेजी तथ्यों और एक आहत महिला के अदम्य साहस के साथ’ दर्ज कराया था।
कोई जांच नहीं, कोई जवाबदेही नहीं: अदिति शर्मा के अनुसार, इन गंभीर आरोपों के बावजूद, न तो कोई जांच हुई, न कोई नोटिस जारी किया गया और न ही आरोपी जज से कोई स्पष्टीकरण मांगा गया।
इनाम की जगह सजा: उन्होंने लिखा है कि जिस व्यक्ति ने उनके दुख की साजिश रची, उसे जवाबदेही से बचाने के बजाय, ‘पुरस्कृत’ किया गया और हाईकोर्ट के जज का पद दिया गया। उन्होंने इस पदोन्नति को ‘न्याय शब्द का क्रूर मजाक’ बताया।
न्यायपालिका पर क्यों उठ रहे सवाल?
अदिति शर्मा का यह इस्तीफा सिर्फ एक व्यक्तिगत विरोध नहीं, बल्कि न्यायिक प्रणाली की संस्थागत विफलता का एक तीखा बयान है। यह घटना कई गंभीर सवाल उठाती है:
महिलाओं की सुरक्षा: जब एक महिला जज को ही न्यायपालिका के भीतर सुरक्षा और न्याय नहीं मिल पाता, तो अन्य महिलाओं के लिए क्या संदेश जाता है?
कॉलेजियम की प्रक्रिया: सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने आरोपी जज के नाम की सिफारिश क्यों की, जबकि उनके खिलाफ गंभीर शिकायतें दर्ज थीं?
संस्थागत चुप्पी: अदिति शर्मा ने राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को कई बार पत्र लिखकर अपील की, लेकिन ‘उनकी चुप्पी ही उनका फैसला’ रही।
गौरतलब है कि अदिति शर्मा उन 6 महिला जजों में से थीं, जिन्हें जून 2023 में सेवा से हटा दिया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बाद में ‘मनमाना और अवैध’ बताते हुए सभी को बहाल कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने उस समय भी कहा था कि न्यायिक संस्थानों को महिला अधिकारियों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होना चाहिए।
आगे की राह और जांच की मांग
अदिति शर्मा का यह इस्तीफा एक विरोध पत्र है, जो हमेशा न्यायिक फाइलों में गूंजता रहेगा। यह घटना अब पूरे देश का ध्यान खींच रही है और न्यायपालिका की आंतरिक कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग को बल दे रही है। यह देखना होगा कि क्या इस इस्तीफे के बाद सुप्रीम कोर्ट या कोई अन्य न्यायिक निकाय इस मामले का संज्ञान लेकर कोई निष्पक्ष जांच का आदेश देता है या नहीं।
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