समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 03 अगस्त: शनिवार को शिवसेना (उद्भावता) नेता उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र सरकार पर मराठी भाषा के अस्तित्व को खतरे में डालने का आरोप लगाया। ठाकरे का ऐतिहसिक आरोप आया सार्वजनिक हैरत के बीच जब उन्होंने कहा कि राज्य में दो विवादास्पद जनादेश—त्रिनीति और हिंदी—मराठी के खिलाफ थोपे जा रहे हैं, जिससे महाराष्ट्र की मातृभाषा को खत्म करने की कोशिश नज़र आती है।
मुख्यमंत्री की ‘असहाय’ भूमिका और भ्रष्टाचार मामले
ठाकरे ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को असहाय बताया, जिन्होंने भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे मंत्रियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
फडणवीस पर आरोप है कि विपक्ष द्वारा प्रस्तुत सबूतों को नजरअंदाज करने की बजाय केवल चेतावनी देकर राजीनामा टाल दिया गया। ठाकरे ने कहा, “मैंने पहले कभी इतना असहाय मुख्यमंत्री नहीं देखा। कोई भी किसी से जवाब नहीं मांग सकता।”
शेतकरी क्रांति संगठन का विलय और विरोध का विस्तार
ताजा घटनाक्रम में ठाकरे के निवास मातोश्री में किसानों के संगठन शेतकरी क्रांति का शिवसेना (उद्भावता) में विलय हुआ। इससे पार्टी को किसानों से गहरा जनाधार मिलने की उम्मीद जताई गई।
उद्धव और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ने मिलकर पाँच जुलाई को मुंबई में हिंदी के सरकारी निर्णय (GR) के खिलाफ एक साझा रैली की थी, जिसे उन्होंने मराठी भाषा की रक्षा की जीत बताया।
कोकाटे विवाद: रमी से लेकर insensitive टिप्पणी तक
राज्य के माणिकराव कोकाटे, जो राकांपा संबंधित मंत्री हैं, उन्होंने विधान परिषद में ‘रमी’ खेलते हुए वायरल वीडियो और किसानों के प्रति असंवेदनशील टिप्पणियों के लिए आलोचना झेली।
बृहस्पतिवार रात मंत्रालय में उन्हें कृषि से खेल व युवा कल्याण विभाग में स्थानांतरित किया गया।
शिवसेना (उद्भावता) ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर—जिनमें संजय शिरसाट, संजय राठौड़ और योगेश कदम शामिल हैं—भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे की मांग की।
भाषा की लड़ाई: विवादास्पद प्रस्ताव और GR वापसी
ठाकरे ने कहा कि “हमें किसी से कोई नफरत नहीं है, लेकिन हम पर थोपे नहीं जाने देंगे।” उन्होंने आरोप लगाया कि कक्षा 1 से 5 तक छात्रों के लिए लागू विवादास्पद त्रिनीति और हिंदी पाठ्यक्रम प्रस्ताव महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान के विरुद्ध हैं।
जन विरोध के चलते सरकार को आदेश वापस लेना पड़ा—जिसका राजनीतिक मंच पर उद्धव और राज ठाकरे ने जोरदार स्वागत किया, इसे मराठी सांस्कृतिक विजय बताया।
राष्ट्रभाषा रक्षा या राजनीतिक रणनीति?
उद्धव ठाकरे का यह भाषाई मुद्दा सिर्फ भाषा का संघर्ष नहीं, बल्कि महाराष्ट्र में सांस्कृतिक व पहचान-संवेदनशीलता को लेकर एक बड़ा राजनीतिक पर्व बन गया है।
भाषा और भ्रष्टाचार दोनों पर उनका निशाना बीजेपी सरकार की छवि को चुनौती दे रहा है, खासकर चुनावी माहौल में जहां पहचान राजनीति निर्णायक होती है।
मराठी भाषा को लेकर उद्धव ठाकरे का आन्दोलन और आरोप इस बात को दर्शाता है कि भाषा राजनीति मात्र तक सीमित नहीं है—यह पहचान, विरोध और लोकतांत्रिक अधिकार की लड़ाई है।
वहीं, मुख्यमंत्री और राज्य सरकार को भी यह स्पष्ट संदेश मिल चुका है कि भाषा-संस्कृति या भ्रष्टाचार की उठी आवाज़ को नजरअंदाज करना राजनीतिक विकल्प के रूप में सुरक्षित नहीं रह गया है।
इस चुनावी लड़ाई में भाषा का संरक्षण एक सशक्त हथियार बन गया है, और महाराष्ट्र अब एक ऐसे चुनाव का मैदान है, जहां पहचान संघर्ष लोकतंत्र की आत्मा बनने की तरफ बढ़ रहा है।
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