समग्र समाचार सेवा
भोपाल, 4 सितंबर: मध्य प्रदेश की राजनीति में आदिवासी पहचान को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस विधायक उमंग सिंघार ने छिंदवाड़ा में आयोजित मध्य प्रदेश आदिवासी विकास परिषद की बैठक और सम्मान समारोह में आदिवासी समाज की अलग पहचान को रेखांकित करते हुए कहा – “मैं गर्व से कहता हूं कि हम आदिवासी हैं, हिंदू नहीं। यह बात मैं कई सालों से कहता आ रहा हूं।”
पौराणिक कथा का हवाला
सिंघार ने अपने संबोधन में आदिवासी समाज की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने की बात कही। उन्होंने रामायण की शबरी का उदाहरण देते हुए कहा कि “शबरी, जिन्होंने भगवान राम को जूठे बेर खिलाए थे, वह भी आदिवासी थीं।” उन्होंने दावा किया कि इस धरती पर आदि काल से निवास करने वाले लोग ही वास्तविक आदिवासी कहलाते हैं।
सिंघार ने यह भी कहा कि समाज को अपनी अलग पहचान कायम रखनी होगी और सरकारों से मांग करनी होगी कि वे आदिवासी समुदाय के मान-सम्मान की रक्षा करें।
बयान से मचा सियासी हड़कंप
इस बयान ने प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। हिंदू पहचान और आदिवासी पहचान के बीच अंतर को उजागर करने वाले इस बयान को राजनीतिक रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आने वाले चुनावों से पहले आदिवासी वोट बैंक को साधने की यह कांग्रेस की कोशिश हो सकती है।
प्रदेश में लगभग 21% आदिवासी आबादी है, जो विधानसभा और लोकसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाती है। ऐसे में सिंघार का यह बयान भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए रणनीतिक दृष्टि से अहम माना जा रहा है।
भाजपा का पलटवार
भाजपा नेताओं ने सिंघार के बयान को समाज को बांटने की राजनीति करार दिया। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस आदिवासियों को हिंदू समाज से अलग दिखाकर केवल वोटों की राजनीति कर रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या कांग्रेस अब आदिवासी समाज को मुख्यधारा से अलग करने की कोशिश कर रही है?
चुनावी समीकरणों पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि सिंघार का यह बयान आदिवासी समाज को प्रभावित कर सकता है। कांग्रेस जहां इसे अपनी पहचान की राजनीति से जोड़ रही है, वहीं भाजपा इसे समाज को तोड़ने का प्रयास बता रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह बयान चुनावी रणनीति में किस तरह असर डालता है।
उमंग सिंघार का बयान केवल एक राजनीतिक वक्तव्य नहीं, बल्कि आदिवासी पहचान की बहस को फिर से केंद्र में लाने वाला कदम है। यह तय है कि इस बयान के बाद मध्य प्रदेश की सियासत में आदिवासी मुद्दे और भी अहम हो जाएंगे।
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