समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 25 सितंबर: कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी सरकार की विदेश नीति पर जोरदार हमला करते हुए कहा कि फिलिस्तीन संकट पर केंद्र सरकार “गहरी चुप्पी” अपनाकर भारत की न्याय और मानवाधिकारों की परंपरागत प्रतिबद्धता को त्याग रही है।
गांधी ने “India’s Muted Voice, Its Detachment With Palestine” शीर्षक से लिखे लेख में कहा कि इजराइल और फिलिस्तीन के बीच जारी संघर्ष पर सरकार की प्रतिक्रिया भारत के नैतिक और संवैधानिक मूल्यों से विमुख होने का चिन्ह है।
नेटन्याहू से पीएम की व्यक्तिगत मित्रता पर निशाना
कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि फिलिस्तीन पर भारत का मौन रुख सिर्फ कूटनीतिक गलती नहीं बल्कि नैतिक असफलता है। उनका कहना है कि यह रुख प्रधानमंत्री की इजराइली नेता बेंजामिन नेटन्याहू के साथ “व्यक्तिगत मित्रता” से प्रेरित है।
उन्होंने लिखा, “व्यक्तिगत मित्रता पर आधारित यह कूटनीति कभी स्वीकार्य नहीं हो सकती और न ही यह भारत की विदेश नीति का मार्गदर्शक सिद्धांत हो सकती है। अमेरिका और अन्य देशों में इसी तरह की कोशिशें हाल के महीनों में असफल रही हैं।”
सोनिया गांधी ने कहा कि भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा किसी एक व्यक्ति की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं या ऐतिहासिक गौरव पर आधारित नहीं हो सकती। इसके लिए निरंतर साहस और ऐतिहासिक निरंतरता की आवश्यकता है।
फिलिस्तीन पर नेतृत्व दिखाने की जरूरत
गांधी ने कहा कि भारत को फिलिस्तीन के मुद्दे पर नेतृत्व दिखाना चाहिए, जो अब न्याय, पहचान, सम्मान और मानवाधिकारों की लड़ाई बन गया है।
उन्होंने अक्टूबर 2023 में हमास के इजराइल पर हमलों और इजराइली सेना की प्रतिक्रिया को दोनों पक्षों के हिंसा के रूप में स्वीकार किया, लेकिन इजराइली जवाब को “नरसंहार से कम नहीं” बताया।
गांधी ने कहा, “जैसा मैंने पहले भी उठाया था, 55,000 से अधिक फिलिस्तीनी नागरिक मारे गए हैं, जिनमें 17,000 बच्चे शामिल हैं। गाजा में लोग भुखमरी जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं, जबकि इजराइली सेना भोजन, दवा और अन्य सहायता की आपूर्ति में बाधा डाल रही है।”
उन्होंने यह भी बताया कि सैकड़ों नागरिकों को भोजन लेने के प्रयास के दौरान गोली मार दी गई। फिलिस्तीनी लोग दशकों से विस्थापन, कब्जे, बस्तियों के विस्तार, आवाजाही पर रोक और उनके नागरिक, राजनीतिक और मानवाधिकारों के लगातार उल्लंघन का सामना कर रहे हैं।
फिलिस्तीन के लिए वैश्विक समर्थन
गांधी का यह लेख ऐसे समय में आया है जब फ्रांस, यूके, कनाडा, पुर्तगाल और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई पश्चिमी देश फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता दे चुके हैं या उसका समर्थन कर रहे हैं।
उन्होंने लिखा, “यह ऐतिहासिक क्षण है और न्याय, आत्म-निर्णय और मानवाधिकारों के सिद्धांतों की पुष्टि है। इन कदमों को सिर्फ कूटनीतिक इशारे नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि यह दीर्घकालिक अन्याय के सामने राष्ट्रों की नैतिक जिम्मेदारी की पुष्टि है। मौन तटस्थता नहीं, बल्कि संलिप्तता है।”
सोनिया गांधी ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत की आवाज, जो कभी स्वतंत्रता और मानव गरिमा के मामले में अडिग रही, अब “सुस्पष्ट रूप से मौन” रही है।
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