समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 26 सितंबर: वो साल 1962 था, जब चीन के आक्रमण से ठीक दो महीने पहले भारत सरकार ने रूस से ‘युद्ध का घोड़ा’ मंगाने की मंजूरी दे दी थी। अक्टूबर में भारत की तरफ से सात पायलट और 15 इंजीनियर अन्य स्टाफ के साथ रूस के लिए रवाना हुए। लेकिन कुछ ही समय बाद चीन ने भारत पर हमला कर दिया। उस समय भारतीय सेना पूरी तरह तैयार नहीं थी, और परिणाम गंभीर रहे।
रूस से भारत तक का लंबा सफर
सोवियत संघ में भारतीय टीम का नेतृत्व विंग कमांडर दिलबाग सिंह ने किया था, जो बाद में भारतीय वायुसेना के चीफ बने। विमला देवी की किताब ‘भारत-पाक संबंध एवं युद्ध 1965’ के अनुसार, टीम ने ताशकंद के पास कजाकिस्तान में स्थित ल्यूगोवाया एयरबेस पर पांच महीने तक प्रशिक्षण लिया। रूस से आने के बाद मिग-21 का पहला स्क्वाड्रन नंबर 28 बनाया गया और इसे चंडीगढ़ में स्थापित किया गया।
#WATCH | The decommissioning ceremony of the Indian Air Force's MIG-21 fighter aircraft fleet begins at Chandigarh Air Force station; Defence Minister Rajnath Singh, senior officers present.
MiG-21s were inducted into the Indian Air Force in 1963 and will be decommissioned today… pic.twitter.com/v8NuzfqQEb
— All India Radio News (@airnewsalerts) September 26, 2025
मिग-21 के पहले बैच में छह मिग-21 और F-135 (टाइप-74) एयरक्राफ्ट थे। ये सभी विमान समुद्री जहाज से मुंबई आए और फिर वहां से उड़ान भरकर चंडीगढ़ पहुँचे।
मिग-21 ने युद्ध में दिखाया कौशल
1 सितंबर 1965 को आदमपुर से मिग-21 ने दुश्मन के क्षेत्र में प्रवेश किया और पाकिस्तानी सैबर जेट को मार गिराया। हालांकि नए युद्धक विमान होने के कारण उस समय कुशल पायलटों की कमी थी। मिग-21 के बाद भारतीय वायुसेना में मिग-23, 25, 27 और 29 भी शामिल हुए।
छह दशक की सेवा और बहादुरी
1963 से लेकर अब तक मिग-21 और उसके वैरिएंट्स ने देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चंडीगढ़ में विदाई समारोह में कहा, “1971 के युद्ध से लेकर करगिल, बालाकोट ऑपरेशन तक मिग-21 ने भारतीय सेना को मजबूती दी। ढाका में मिग-21 ने पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक भूमिका निभाई।”
Speaking at the Decommissioning Ceremony of the IAF MiG-21 in Chandigarh. https://t.co/5YVAwjlHPX
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) September 26, 2025
मिग-21 ने चार प्रमुख सैन्य संघर्षों में देश के लिए बहादुरी दिखाई और भारतीय वायुसेना के पायलटों को जीत दिलाई।
मिग-21: ‘मिग एयर फोर्स’ से ‘उड़ता ताबूत’ तक
2006 के आसपास इसे ‘मिग एयर फोर्स’ कहा जाने लगा था। हालांकि बुजुर्ग पंखों और तकनीकी सीमाओं के कारण अंतिम वर्षों में इसे ‘उड़ता हुआ ताबूत’ भी कहा गया। इसके बावजूद, मिग-21 की बहादुरी और योगदान करोड़ों भारतीयों के दिलों में हमेशा जीवित रहेगा।
किसी ने लिखा भी है:
“न भूलो वो रणभूमि जहां तूने विजय का पताका फहराया,
जो भी लड़े थे तूफानों से, वो तेरा ही तो था साया.
अब तू चला है एक नए सफर पर, ये विदाई के लम्हे भारी हैं,
तेरी यादें हमेशा संग रहेंगी, तू शान है हमारी।”
आज मिग-21 का विदाई समारोह भावुक पलों से भरा रहा, और देशवासियों ने अपने इस आसमानी योद्धा को सलाम किया।
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