ट्रंप सरकार के H-1B वीज़ा शुल्क पर बवाल, 1 लाख डॉलर फीस के खिलाफ दाखिल पहली बड़ी याचिका

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 4 अक्टूबर: अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा H-1B वीज़ा पर 1 लाख डॉलर की भारी-भरकम फीस लगाने के फैसले के खिलाफ बड़ा कानूनी विवाद खड़ा हो गया है। द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूनियनों, शिक्षकों, धार्मिक समूहों और कई अन्य संगठनों के गठबंधन ने कैलिफ़ोर्निया की उत्तरी जिला अदालत में इस आदेश के खिलाफ पहली बड़ी याचिका दाखिल की है।

क्या है विवाद?

पिछले महीने राष्ट्रपति ट्रंप ने एक प्रोक्लेमेशन (घोषणा) पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत हर नए H-1B वीज़ा पर 1 लाख अमेरिकी डॉलर (करीब 83 लाख रुपये) का शुल्क लिया जाएगा। यह घोषणा होते ही कंपनियों और पेशेवरों में अफरा-तफरी मच गई थी। कई कंपनियों ने विदेश में मौजूद कर्मचारियों को तुरंत अमेरिका लौटने की सलाह तक दी थी।

याचिकाकर्ताओं का तर्क

संगठनों का कहना है कि यह कदम न केवल मनमाना और अव्यवहारिक है, बल्कि राष्ट्रपति को टैक्स या राजस्व वसूलने का अधिकार अमेरिकी संविधान के तहत नहीं है। उनका आरोप है कि प्रशासन ने इस फैसले से पहले आवश्यक नियामक प्रक्रिया का पालन भी नहीं किया।
याचिकाकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि इतनी ऊंची फीस अस्पतालों, स्कूलों, चर्चों, गैर-लाभकारी संगठनों और छोटे व्यवसायों को गहरी चोट पहुंचाएगी, जो विदेशी कुशल कर्मचारियों पर निर्भर हैं।

व्हाइट हाउस का पक्ष

व्हाइट हाउस ने सफाई देते हुए कहा कि यह शुल्क केवल नए वीज़ा पर लागू होगा, मौजूदा वीज़ा धारकों पर नहीं। प्रेस सेक्रेटरी कैरोलीन लेविट ने एक्स पर लिखा, “स्पष्ट कर दूं कि यह वार्षिक शुल्क नहीं है, बल्कि केवल एक बार का शुल्क है। यह केवल नई वीज़ा याचिकाओं पर लागू होगा, न कि नवीनीकरण या मौजूदा वीज़ा धारकों पर।”

उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग पहले से H-1B वीज़ा रखते हैं और फिलहाल अमेरिका से बाहर हैं, उन्हें दोबारा प्रवेश पर यह शुल्क नहीं देना होगा।

ट्रंप प्रशासन का तर्क

ट्रंप प्रशासन का कहना है कि H-1B वीज़ा कार्यक्रम लंबे समय से अमेरिकी श्रमिकों को नुकसान पहुंचा रहा है। व्हाइट हाउस द्वारा जारी तथ्यपत्र में दावा किया गया कि आईटी सेक्टर में H-1B वीज़ा धारकों की हिस्सेदारी वर्ष 2003 के 32% से बढ़कर हाल के वर्षों में 65% से अधिक हो गई है। इसके चलते अमेरिकी नागरिकों में बेरोजगारी बढ़ी है और कंपनियां सस्ते विदेशी श्रमिकों को प्राथमिकता दे रही हैं।

असर और आगे की राह

कानूनी लड़ाई शुरू होने के साथ ही यह मुद्दा अमेरिका में चुनावी बहस और श्रम नीतियों के केंद्र में आ गया है। अदालत का फैसला न केवल विदेशी पेशेवरों के लिए, बल्कि उन भारतीय आई

 

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