श्री अमित शाह ने राज्य सभा में ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ पर चर्चा की शुरुआत की
वंदे मातरम् राष्ट्र के प्रति समर्पण का माध्यम आजादी के आंदोलन में भी था, आज भी है और 2047 में विकसित भारत के निर्माण के समय भी रहेगा-अमित शाह
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वंदे मातरम आज भी राष्ट्रभक्ति, त्याग और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा प्रेरणास्रोत: शाह
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2025–26 को वंदे मातरम वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है; स्मारक टिकट, सिक्का और डॉक्यूमेंट्री जारी
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हर जिले में प्रदर्शनी, देशभर में सामूहिक गान, विदेशों में भारतीय दूतावासों में सांस्कृतिक आयोजन
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शाह बोले 2047 तक विकसित भारत के संकल्प को वंदे मातरम नई ऊर्जा देगा
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 10 दिसंबर: केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने बुधवार को संसद के राज्यसभा सदन में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि “वंदे मातरम कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकता।” उन्होंने कहा कि यह गीत आज़ादी के आंदोलन से लेकर आधुनिक भारत तक राष्ट्रभक्ति, समर्पण और सांस्कृतिक चेतना का अमर प्रतीक बना हुआ है।
अमित शाह ने कहा कि वंदे मातरम की जरूरत 1875 में भी थी, स्वतंत्रता संग्राम में भी थी, आज भी है और 2047 में विकसित भारत बनने तक रहेगी। गृह मंत्री ने आरोप लगाया कि “कुछ लोग” इस राष्ट्रीय गीत के महिमामंडन को पश्चिम बंगाल चुनाव से जोड़कर कमतर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि वंदे मातरम ने सीमाओं से परे पूरी दुनिया में आज़ादी के आंदोलनों को प्रेरित किया।
शाह ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में शहीदों के अंतिम शब्द अक्सर ‘वंदे मातरम’ होते थे। यह गीत युवा पीढ़ी में राष्ट्रप्रेम जगाने वाला मंत्र रहा है और आज भी सुरक्षा बलों के मनोबल का सबसे बड़ा आधार है।
वंदे मातरम की ऐतिहासिक यात्रा
गृह मंत्री ने बताया कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह गीत 7 नवंबर 1875 को सार्वजनिक हुआ और देखते ही देखते राष्ट्रभक्ति व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया। उन्होंने कहा कि विदेशी शासन ने इस गीत पर प्रतिबंध लगाया, इसे गाने वालों को कोड़ों और जेल की सज़ा दी गई, लेकिन यह गीत फिर भी कश्मीर से कन्याकुमारी तक घर-घर पहुंचा।
शाह ने महर्षि अरविंद, रवींद्रनाथ टैगोर और सरला देवी द्वारा किए गए ऐतिहासिक योगदान का भी उल्लेख किया और बताया कि 1947 में आज़ादी के दिन सुबह 6:30 बजे वंदे मातरम का प्रसारण आकाशवाणी से हुआ, जिसने पूरे देश को भावुक कर दिया। 1950 में संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया।
तुष्टीकरण और राजनीतिक विवादों पर प्रहार
अमित शाह ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि 1925 में “तुष्टीकरण” की शुरुआत वंदे मातरम के “दो हिस्से किए जाने” से हुई और अगर ऐसा न हुआ होता, तो “देश का विभाजन भी न होता।” उन्होंने कहा कि सौ वर्ष पूरे होने पर भी वंदे मातरम बोलने वालों को जेल में डाला गया और आपातकाल में लोकतांत्रिक आवाज़ों को दबा दिया गया।
उन्होंने कहा कि संसद में वंदे मातरम के गायन को कई बार रोका गया था, लेकिन 1992 में राम नाईक और लालकृष्ण आडवाणी के प्रयासों से इसे पुनः शुरू किया गया।
2025–26: वंदे मातरम वर्ष
अमित शाह ने बताया कि केंद्र सरकार ने 150वीं वर्षगांठ को एक वर्ष के महा-अभियान के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
मुख्य कार्यक्रम:
- 7 नवंबर 2025 को प्रधानमंत्री ने अभियान की शुरुआत की
- देशभर में सामूहिक गान और 75 वादकों का विशेष सांस्कृतिक प्रस्तुतीकरण
- स्मारक डाक टिकट और विशेष सिक्का जारी
- हर जिले और तहसील में प्रदर्शनी
- डिजिटल प्रदर्शनी करोड़ों लोगों तक भेजी जाएगी
- डॉक्यूमेंट्री और 25 लघु फिल्में तैयार
- आकाशवाणी, दूरदर्शन और FM पर विशेष कार्यक्रम
- Tier-2, Tier-3 शहरों में PIB की सभाएं
- विदेशों में दूतावासों में सांस्कृतिक आयोजन
- हाईवे पर वंदे मातरम आधारित भित्तिचित्र, रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डों पर LED डिस्प्ले
- ‘Salute to Mother Earth’ अभियान के तहत वृक्षारोपण
शाह ने कहा कि अमृतकाल के दौरान वंदे मातरम देश को विकसित भारत की दिशा में आगे ले जाने वाला राष्ट्रीय मंत्र बनेगा। उन्होंने कहा कि यह सभी सांसदों की जिम्मेदारी है कि बच्चों और युवाओं में वंदे मातरम की भावना को पुनः स्थापित करें।
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