भारत लौटे बिना कानून को चुनौती नहीं दे सकते विजय माल्या: बॉम्बे हाई कोर्ट

फरार कारोबारी को साफ संदेश—न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आए बिना भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई संभव नहीं

  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने FEO Act की वैधता पर सुनवाई से पहले भारत लौटने की शर्त रखी
  • विजय माल्या की दो याचिकाएँ—FEO घोषित करने के आदेश और कानून की संवैधानिक चुनौती
  • अदालत ने भारत लौटने की समय-सीमा बताने वाला हलफनामा दाखिल करने को कहा
  • प्रत्यर्पण कार्यवाही अंतिम चरण में, याचिका से देरी नहीं होनी चाहिए: ईडी

समग्र समाचार सेवा
मुंबई | 24 दिसंबर:बॉम्बे हाई कोर्ट ने फरार कारोबारी विजय माल्या को स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भारत लौटे बिना वह भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम (FEO Act) की संवैधानिक वैधता को चुनौती नहीं दे सकते। अदालत ने मंगलवार, 23 दिसंबर 2025 को इस आधार पर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया कि याचिकाकर्ता ने स्वयं को भारतीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में प्रस्तुत नहीं किया है।

मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम अंखड़ की खंडपीठ ने कहा कि विजय माल्या ने हाई कोर्ट में दो याचिकाएँ दायर की हैं—एक, वर्ष 2019 में मुंबई की विशेष अदालत द्वारा उन्हें भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किए जाने के आदेश को चुनौती देने वाली; और दूसरी, FEO Act की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली। अदालत ने स्पष्ट किया कि विदेश में रहते हुए वह दोनों याचिकाओं को एक साथ आगे नहीं बढ़ा सकते।

पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, “आपको यह बताना होगा कि आप भारत कब लौटेंगे। तभी हम कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करेंगे।” कोर्ट ने माल्या को निर्देश दिया कि वह एक हलफनामा दाखिल कर भारत लौटने की समय-सीमा स्पष्ट करें। अदालत ने यह भी कहा, “भारत वापस आइए, हम समाधान देने के लिए यहाँ हैं।”

हालाँकि, अदालत ने यह अंतर भी स्पष्ट किया कि विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई वह विदेश में रहते हुए भी कर सकते हैं, लेकिन किसी कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए अदालत के अधिकार क्षेत्र में आना आवश्यक है। पीठ ने सवाल उठाया, “अदालत के अधिकार क्षेत्र में आए बिना कोई व्यक्ति आपराधिक जिम्मेदारी कैसे समाप्त कर सकता है?”

विजय माल्या की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने दलील दी कि कानून किसी व्यक्ति को भारत आए बिना भी अधिनियम की वैधता को चुनौती देने की अनुमति देता है। उन्होंने कहा कि उनके मुवक्किल ने जाँच में सहयोग किया है और उनकी लगभग 14 हजार करोड़ रुपये की संपत्तियाँ जब्त की जा चुकी हैं, जबकि कथित देनदारी लगभग 6 हजार करोड़ रुपये की है।

वहीं, प्रवर्तन निदेशालय की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का कड़ा विरोध किया। उन्होंने अधिनियम की धारा 14 का हवाला देते हुए कहा कि जो व्यक्ति अदालतों से बच रहा हो, वह इस तरह की कार्यवाही को चुनौती नहीं दे सकता। उन्होंने यह भी बताया कि यूनाइटेड किंगडम में माल्या के प्रत्यर्पण से जुड़ी कार्यवाही अंतिम चरण में है और ऐसी याचिकाओं से उसमें बाधा नहीं आनी चाहिए।

गौरतलब है कि किंगफिशर एयरलाइंस से जुड़े ऋण डिफॉल्ट मामलों की जाँच के दौरान विजय माल्या मार्च 2016 में भारत छोड़कर चले गए थे। जनवरी 2019 में उन्हें FEO Act के तहत भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किया गया था। हाई कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 12 फरवरी को तय की है और कहा है कि तब तक माल्या को यह स्पष्ट करना होगा कि वह भारत लौटेंगे या किसी एक याचिका को वापस लेंगे।

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