पुलिस कमिश्नर परमवीर के पत्र प्रहार से गृह मंत्री देशमुख घायल,सरकार खतरे में…

KUMAR RAKESH
KUMAR RAKESH

*कुमार राकेश

भारत की माया नगरी मुंबई एक बार फिर कई मायावी कहानियों के साथ चर्चा में हैं .बचपन में कई लोगो ने कभी चोर-पुलिस का खेल खेला होगा.ये कहानियाँ मुंबई मसाला फिल्मो में कई बार उपयोग भी हुआ हैं .इस कारण लोगो को वैसी फिल्मे अच्छी लगती थी.एक नया दर्शक वर्ग भी तैयार हुआ था.वो आज भी है.बदलते परिवेश में समाज बदला है.लोगो के स्वाद व तेवर बदले हैं.फिर भी लोग इस सोशल मीडिया युग में भी  ऐसी कहानियों से खुश होते दिख रहे हैं .

अब महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई की खिचड़ी सरकार में एक नयी खिचड़ी फिल्म  की “विशेष सुगंध” आम लोगो तक पहुंची है.सरकारी पक्ष बचाव मुद्रा में हैं तो भाजपा व अन्य विपक्षी दल आक्रामक तेवर में आ गए हैं .इसकी मुख्य वजह हैं मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह और एनसीपी कोटे से प्रदेश के गृह मंत्री अनिल देशमुख के बीच आरोप युद्ध.परमवीर के एक पत्र प्रहार से उनके मंत्री अनिल देशमुख  बुरी तरह घायल हो गए हैं.इससे महाराष्ट्र सरकार अन्दर से हिल गयी हैं.सरकार पर संकट के नए बादल दिखने लगे हैं.

इस पूरे प्रकरण में परमवीर सिंह स्वयं को नायक  के तौर पर स्थापित करने में जुटे हैं,जबकि गृह मंत्री अनिल देशमुख खलनायक के तौर पर पेश किये जा रहे हैं.इस पूरे प्रकरण से महाराष्ट्र सरकार पर संकट के बादल छा गए  हैं .सरकारी पक्ष के सभी घटक सरकार को बचाने में जमीन आसमान एक करने में जुट गए हैं .

परमवीर सिंह ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को एक ऐसा पत्र लिखा,जिससे देश व प्रदेश की राजनीति में एक नया भूचाल आ गया है.शरद पवार व उद्धव ठाकरे भी इस नए आरोप से सवालों के घेरे में हैं .परमवीर सिंह ने लिखा हैं कि गृह मंत्री अनिल देशमुख उनसे वसूली के लिए अकसर दबाव डालते थे.हर महीने मुंबई से 100 करोड़ रूपये उगाही के लिए कहते थे .विवादास्पद इन्स्पेक्टर सचिन वाजे को इस मुहिम का एक हिस्सा बताया जा रहा हैं . सचिन वाजे वही पुलिस अफसर हैं ,जो मुकेश अम्बानी के अन्तालिया के पास लावारिस स्कार्पियो कार प्रकरण के बाद चर्चा में आया  था . सचिन वाजे के शिव सेना से बहुत गहरे रिश्ते रहे हैं .हालाँकि शरद पवार ने इस बात को नकारा है.पवार कहते हैं कि सचिन वाजे को तो  परमवीर सिंह ने दोबारा नौकरी दिया था.तो ये भी एक सवाल है कि क्या परमवीर इतने शक्तिशाली थे कि वह बिना सरकार से अनुमति लिए उसकी नियुक्ति कर दी.इससे पवार अपने जवाब में खुद सवाल बन जाते हैं.

परमवीर सिंह ने कहा है वे अक्सर दबाव में रहते थे .परन्तु यहाँ पर एक  सवाल ये भी आता है कि पुलिस कमिश्नर के पद पर रहते हुए परमवीर सिंह ने ये मुद्दा क्यों नहीं उठाया? वे चुप क्यों थे ? क्या मजबूरियां थी ? यदि परमवीर इतने ही ईमानदार हैं तो अभी तक चुप क्यों थे ?ये भी एक सवाल है? पुलिस कमिश्नर पद से हटाये जाने के बाद ही क्यों हंगामा किया या करवाया?  ये सब गहन जांच का विषय हैं.

ऐसी ही कुछ बातें  21 मार्च को एनसीपी के संस्थापक अध्यक्ष शरद पवार ने भी पत्रकारों से कही .हालांकि शरद पवार की बातो में  वो दम नहीं दिखा. वो पुराने घाघ राजनेता हैं .इसलिए ऐसे आरोपों से वे कभी विचलित नहीं दिखते.श्री पवार ने परमवीर सिंह के पत्र की  वैधता पर कई सवाल उठाये–जिसमे पत्र का दो दिस्सों में होना, पत्र में परमवीर सिंह का दस्तखत का नही होना,कमिश्नर होते हुए परमवीर की चुप्पी जैसी कई  बाते.इससे तो यही लगता है कि शरद पवार भ्रष्टाचार के ऐसे गंभीर आरोपों पर गंभीर नहीं हैं.पवार ने जाँच की बात कही.परन्तु एक रिटायर अफसर जुलिओ रिबेरो के द्वारा.इस पर भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने सवाल किया,उनका कहना था कि एक मंत्री पर लगे आरोपों का एक अफसर कैसे जांच कर सकता है?

शरद पवार ने आरोपों के बारे में कोई प्रमाण नहीं होने की बात कही.परन्तु दूसरी तरफ बताया जाता हैं कि परमवीर सिंह ने अपने आरोपों के मद्देनजर कई प्रकार के प्रमाण भी पेश किये हैं .परन्तु कल तक अपने गृह मंत्री के चहेते परमवीर आज उनके दुश्मन कैसे बन गए.ये ऐसे कारण हैं जिसके बारे में केंद्र सरकार से गहन जांच होनी चाहिए .क्योकि प्रदेश सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुकी हैं .वैसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे परमवीर सिंह के उस इमेल की आईडी को भी जांच को जरुरी मान रहे है ,परन्तु अब तो एक महज़ खानापूर्ति सी होगी.ऐसा लगता है कि औपचारिक तौर पर वे अपने मेल को ही नकार दे .इसलिए अब देखना है इस अति संवेदनशील मुद्दे पर कहानी क्या मोड़ लेती हैं ?

अनिल देशमुख के इस्तीफे के  सवाल पर शरद पवार ने कहा कि ये फैसला मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लेना है.परन्तु महा गठबंधन वाली इस सरकार में उद्धव ठाकरे स्वतंत्र रूप स कोई ऐसा फैसला ले सकते है ? ये भी एक बड़ा सवाल है.

बहरहाल ,महाराष्ट्र में आजकल तीन दलों-  शिव सेना,कांग्रेस और एनसीपी की नयी नवेली 16 माह की सरकार हैं . देशमुख एनसीपी  से हैं .इसलिए शिव सेना परेशान हैं .कांग्रेस मौन मुद्रा में हैं.सबकी कोशिश है कि उनकी ये  सरकार किसी तरफ बच जाए.उसके लिए सभी सब कुछ भी करने को तैयार है.परमवीर सिंह तो शहीदी मुद्रा में आ ही गए हैं.

इस महाअघाड़ी सरकार में जहाँ एक तरफ अनिल देशमुख को बचाने की कई प्रकार के जोड़ तोड़  किये जा रहे  हैं ,वही भाजपा आक्रामक तौर पर देशमुख को हटाने के  लिए कई प्रकार के उपक्रम में जुट गयी  हैं .भाजपा नेता देवेंन्द्र फडनवीस ,राम कदम और किरीट सोमैया के साथ केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने एक साथ महाअघाड़ी सरकार के खिलाफ जोरदार मोर्चा  खोल दिया हैं.एम्एनएस के नेता राज ठाकरे ने भी अनिल देशमुख को गृह मंत्री पद से हटाने की मांग की हैं .केन्द्रीय राज्य मंत्री राम दास अठावले ने केन्द्रीय गृह मंत्री से मांग की हैं कि महाराष्ट्र  सरकार को फौरी तौर पर बर्खास्त करके प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाए जाये.

ताज़ा खबरों के मुताबिक अनिल देशमुख परमवीर सिंह के खिलाफ कोर्ट में जायेंगे.श्री सिंह के खिलाफ देशमुख मान हानि का मुकदमा भी करेगे.श्री देशमुख ने परमवीर सिंह के सभी आरोपों का खंडन किया हैं .अब देखना है कि इस परिपेक्ष्य में  राजनेता बड़ा साबित होता है  या नौकरशाह ?

वैसे नौकरशाही व राजनीति के रिश्ते के कई किस्से हैं .कई घटनाये हैं .देखना हैं कि इस नए दौर में कौन जीतता है और कौन हारता हैं ? जो भी होगा ,वो रोमांचक तो होगा ही.परन्तु प्रताड़ित होगी आम जनता ही .जिसको सदैव प्रताड़ित ही होना हैं ..क्योकि नए राजनीतिक दौर में जनता हाशिये पर आ गयी हैं जबकि राजनेता सर्वोपरि.क्या यही जीवंत लोकतंत्र हैं ??

*कुमार राकेश

 

 

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