समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 10अगस्त।‘महिलाओं ने कविता तथा आत्मकथात्मक साहित्य को मजबूती दी है. इस साहित्य की ओर महिलाओं के आकर्षण के लिए अनेक समाजशास्त्रीय कारण है. इतिहास तथा भूतकाल की ओर देखने के उनके दृष्टिकोण के कारण कविताएं और आत्मकथन का प्रलेखन हुआ है, जो महत्वपूर्ण है’, यह प्रतिपादन लेखिका डा प्रज्ञा दया पवार ने किया.
महाराष्ट्र सूचना केंद्र की ओर से जारी महाराष्ट्र हीरक महोत्सव व्याख्यान श्रृंखला के 53 वे व्याख्यान में वह ‘महाराष्ट्र में महिला साहित्य का जागरण’ विषय पर बोल रही थी. उन्होंने आगे कहा कि जाति और वर्ग में फंसा हुआ महिला जीवन तथा उसके दौरे और तिहरे शोषण के अनुभव का पता आत्मकथात्मक साहित्य से चलता है. उन्होंने कहा कि दलित आत्मकथाओं में महिलाओं द्वारा निर्मित साहित्य में भूख के राक्षस, घरेलू हिंसा और बाहरी हिंसा का चित्रण भी किया गया है. उन्होंने आगे कहा कि महात्मा ज्योतिबा फुले, डा बाबासाहेब आंबेडकर के प्रयासों से प्राप्त शिक्षा के कारण आई चेतना के से समाज में महिलाओं ने साहित्य का निर्माण शुरू किया. साथ ही मुस्लिम, ईसाई और आदिवासी महिलाओं ने भी अपने परिवार के सीमित ढांचे को तोड़ दिया और सामूहिक रूप से लिखना जारी किया.
डा पवार ने आगे कहा कि महिलाओं ने निर्माण किया हुआ साहित्य काफी मूल्यवान है और महाराष्ट्र की महिलाओं ने कलात्मक, वैचारिक, अनुसंधानात्मक, समीक्षात्मक, ललित आदि लेखन में बड़ा योगदान दिया है. इस समय उन्होंने आधुनिक महिला साहित्यकार के साथ ही प्राचीन काल तथा मध्ययुगीन समय की महिला साहित्यकों के योगदान पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने आगे कहा कि महिलाएं घर का काम करते समय, धन पीसने का काम करते समय, पानी भरने के लिए जाते समय और घर के बाहर भी गाती रही और स्वयं को अभिव्यक्त करती रही. इस तरह से वह संवाद करती रही.
डा पवार ने कहा कि 19वीं शताब्दी में महाराष्ट्र सहित देश में महिला अध्ययन केंद्र की शुरुआत होने की बात पता चलती है और 1975 के बाद महिला मुक्ति आंदोलन जोर शोर से शुरू हुआ. जिसके कारण महिलाओं के सभी क्षेत्रों में अध्ययन को बढ़ावा मिला. उन्होंने आगे कहा कि भारत में महिलाओं का जीवन जाति, धर्म, वर्ग में जकड़ा हुआ है. इस कारण महिला साहित्य का विचार करते समय महिलाओं ने विषम सामाजिक परिस्थिति में भी मानवीय मूल्यों को किस तरह से प्रस्तुत किया है, इस पर भी गहन विचार होना आवश्यक है. उन्होंने आगे कहा कि महात्मा ज्योतिबा फुले ने देश में जातीय और धार्मिक विषमता का उचित विश्लेषण किया है. आगे चलकर डा बाबासाहेब आंबेडकर ने महिलाओं के लिए हिंदू कोड बिल में रखे हुए अपने विचार अधिक उन्नत थे और इसका आगामी समय में महिलाओं ने लिखे हुए साहित्य पर सकारात्मक परिणाम देखने को मिला.
डा पवार ने आगे कहा कि 19वीं सदी की शुरुआत में महिला आत्मकथा का प्रारंभ हुआ और शुरुआती दौर में यह विद्रोही रहा. इस आत्मकथा में महिला जागृति दिखने लगी. डा पवार ने इस समय कुछ आत्माकथनों का उल्लेख किया जिसमें काशीबाई कानिटकर का माझे शिक्षण, पार्वतीबाई आठवले का माझी कहानी, रमाबाई रानाडे द्वारा लिखित , लक्ष्मीबाई तिलक द्वारा लिखित स्मृति चिन्ह जैसे आत्मचरित्रों का उदाहरण दिया. उन्होंने आगे कहा कि आगामी समय में दलित आत्मकथा का जन्म हुआ और महत्वपूर्ण बात यह थी कि शिक्षा ग्रहण करके साहित्य में योगदान देने जैसा परिवर्तन देखने को मिले. उन्होंने आगे कहा कि एक समय था जब लेखन का क्षेत्र महिलाओं के लिए उचित नहीं माना जाता और केवल पुरुषों का ही वर्चस्व दिखाई पड़ता. इस कारण महिलाओं ने निर्माण किए साहित्य में रूपक, उपमा और कही शब्द नए थे.
उन्होंने यह भी कहा कि उस समय सामान्यता यह माना जाता कि महिलाएं हास्य पर आधारित लेखन नहीं कर सकती परंतु स्मृतिचित्र से लेकर उर्मिला पवार के आईदान तक तथा मेघना पेठे के नाती चरामी और गौरी देशपांडे की उपन्यासों तक हास्य विनोद देखने को मिलता है. उन्होंने कहा कि इसके बाद के समय में महिलाओं ने कथा तथा उपन्यास की ओर अपना लक्ष्य केन्द्रित किया और इसमें भी प्रशंसनीय काम किया. उन्होंने कृष्णाबाई मोटे, मालती बाई बेडेकर, शकुंतला परांजपे, गीता साने के उपन्यासों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने अपने पहले लेखन करने वाली महिलाओं की मंशा को केवल आगे नहीं बढ़ाया बल्कि इसे और भी तार्किक रूप दिया.
डा पवार ने बताया कि साहित्य लेखकों ने महिलाओं के संबंधी साहित्य निर्मिति की है और इसी दौरान महिलाओं ने भी निडरता के साथ अपने आप को व्यक्त किया. उन्होंने आगे कहा कि यदि कविता का विचार किया जाए तो बहिणाबाई चौधरी से कल्पना दुधाल के बीच के चरण में अनुराधा पाटील जैसी काव्यत्रि ने परिवर्तित हो रहे कृषि व्यवस्था पर अपने कविता के माध्यम से भाष्य किया है. उन्होंने प्रभाकर गानोड़कर, मल्लिका अमर शेख द्वारा लिखित कविताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इन दोनों ने महिलाओं के प्रताड़ना को उजागर किया है.
आम्बेडकरी साहित्यको में कवियत्री हीरा बनसोडे, ज्योति लांजेवर, उषा अंभोरे, छाया कोरेगांवकर, प्रतिभा अहिरे, आशा लता काम्बले, कविता मोरवनकर, कमल गरुड़, अभिनया काम्बले द्वारा लिखित कविताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इन्होंने समूची व्यवस्था का अवलोकन किया है. उन्होंने आगे यह भी कहा कि पौराणिक और ऐतिहासिक महिला पात्रों को जिस प्रकार से महिला लेखिकाओं ने देखा है, वह काफी महत्वपूर्ण है. साथ ही महाराष्ट्र में महिला साहित्य में मुस्लिम, आदिवासी कथा ईसाई लेखिकाओं ने भी उल्लेखनीय योगदान दिया है. डा पवार ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि महिलाओं द्वारा निर्मित साहित्य की समीक्षा उस तरह नहीं की जा रही, जिस तरह की होनी चाहिए.
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