सक्रिय सेनानी साने गुरुजी का चरित्र महाराष्ट्र के लिए प्रेरणादायक- समाजसेवी सुभाष वारे

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,14 अगस्त। ‘अनेक संत, समाज सुधारक, क्रांतिकारियों ने महाराष्ट्र के उत्थान के लिए विगत छह दशकों में कड़ी मेहनत की है. इस सूचि में साने गुरुजी का नाम महत्वपूर्ण है. इस सक्रिय संघर्षकर्ता का चरित्र महाराष्ट्र के लिए प्रेरणादायक है’ यह प्रतिपादन समाजसेवी सुभाष वारे ने किया.
महाराष्ट्र सूचना केंद्र की ओर से आयोजित महाराष्ट्र हीरक महोत्सव व्याख्यान श्रृंखला के 57 वे व्याख्यान में वे -सेनानी साने गुरुजी, विषय पर बोल रहे थे. उन्होंने आगे कहा कि साने गुरुजी का स्मरण करते समय उनके द्वारा लिखित श्यामची आई तथा खरा तो एकची धर्म, जगाला प्रेम अर्पावे जैसी पुस्तकों का उल्लेख करना आवश्यक है. उन्होंने कहा कि साने गुरुजी एक अच्छे साहित्यिक थे जिन्होंने बालकों के लिए बड़े पैमाने पर साहित्य निर्मिती की है. साथ ही इस्लामी संस्कृति और भारतीय संस्कृति जैसी उनकी पुस्तकें उनके तत्वज्ञानी गुणों को परावर्तित करती है. उन्होंने यह भी बताया कि साने गुरुजी ने बताए हुए अंतर भारती की संकल्पना महत्वपूर्ण है. उन्होंने यह भी कहा कि सेनानी साने गुरुजी के बारे में काफी कम लोगों को जानकारी है।

श्री वारे ने आगे बताया कि मूलतः संवेदनशील स्वभाव के कारण साने गुरुजी सृजनशील भी थे और इस कारण उनमें नवनिर्माण करने की क्षमता थी. उन्होंने संवेदनशीलता के माध्यम से अपने रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं को दूर किया और इसी कारण उन्हें सेनानी कहा जाने लगा. श्री वारे ने बताया कि किसानों को गारंटी भाव दिलाने तथा मेहनतकश लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए साने गुरुजी ने वर्ष 1936 में एक गीत लिखा शेतक-यांसाठी कामक-यांसाठी, लावु पणाला प्राण आता उठवु सारे रान आता पेटवु सारे रान…….’. उन्होंने यह भी बताया कि हालांकि साने गुरुजी का जन्म कोंकण में हुआ था, परंतु उत्तर महाराष्ट्र को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाई. वे जलगांव के एक छात्रालय में काम किया करते थे.

उन्होंने जलगांव जिला के अंबरनेर ग्राम के एक कारखाने के श्रमिकों को न्याय दिलाने के लिए आंदोलन शुरू किया जिसे महात्मा गांधी ने भी अपना समर्थन घोषित किया. श्री वारे ने आगे कहा कि साने गुरुजी कहां करते कि श्रमिक और कामगार जो कार्य करते हैं, उसका पूरा मुआवजा उन्हें मिलना चाहिए. साने गुरुजी कहते कि मालिकों ने कारखाने में निवेश किया होता है, साथ ही उस जमीन के मालिक का भी निवेश होता है. मशीन और बुद्धि का भी महत्व है और इन सब के साथ श्रमिकों का भी उत्पादन में एक महत्वपूर्ण योगदान होता है इसलिए मिलने वाले मुनाफे का एक अंश उन्हें भी दिया जाना चाहिए. साने गुरुजी कहते कि यदि श्रमिकों के परिवार आनंदित रहे तो कारखाने की उत्पादन क्षमता के साथ ही उसकी गुणवत्ता पर भी सकारात्मक परिणाम हो सकता है. वारे ने कहां की साने गुरुजी ने अपनी जान की बाजी लगाकर इस आंदोलन को सफल बनाया.

उन्होंने आगे कहा कि महाराष्ट्र हीरक महोत्सव मनाते समय साने गुरुजी का स्मरण करना होगा और साथ ही असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए उचित निर्णय लेना होगा. उन्होंने आगे यह भी बताया कि मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान में 8 अगस्त 1942 को ‘चले जाओ’ आंदोलन की शुरुआत हुई और ब्रिटिश पुलिस ने नेताओं को हिरासत में लेना आरंभ किया. महात्मा गांधी, डा राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, जगजीवन राम जैसे नेता गिरफ्तार कर लिए गये. इसके पश्चात देशभर में समाजवादी नेताओं ने आंदोलन की जवाबदेही अपने कंधों पर उठायी. उत्तर भारत से डा राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण साथ ही महाराष्ट्र से साने गुरुजी, शिरूभाऊ लिमये और एसएम जोशी ने आंदोलन का नेतृत्व किया.

उस समय साने गुरुजी भूमिगत रहकर संकेतिक भाषा का उपयोग कर जनता ने स्वाधीनता की ज्योत जलाने का काम करते रहे. इस दौरान ब्रिटिश पुलिस ने उन पर काफी अत्याचार किए. इन सब से उभर कर वे चले जाओ आंदोलन को अपने साथ आगे ले गए. जिस माता ने साने गुरुजी को सामाजिक समानता के संस्कार दिए, उसी माता ने संघर्ष का पाठ भी साने गुरुजी को पढ़ाया था.
साने गुरुजी के जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना पंढरपुर के विट्ठल मंदिर से संबंधित है, जहां पर उन्होंने मंदिर के द्वार सबके लिए खोलने को लेकर आंदोलन किया. इस अवसर पर सेवा दल के मुखिया एस एम जोशी ने साने गुरुजी को अनशन स्थगित करने की सलाह दी और इस दौरान उन्होंने लोगों में अपने कला दस्तों के माध्यम से जागृति निर्माण की. साने गुरुजी ने पंढरपुर में अनशन शुरू किया और उन्होंने जनता को स्वतंत्र भारत कैसा होगा इसको लेकर अपनी भूमिका बताई. उन्होंने कहा कि नए भारत में सभी जाति, जनजाति, वर्ग को प्रतिनिधित्व होगा और इससे ही बलशाली राष्ट्र का निर्माण होगा. साने गुरुजी के अनशन का परिणाम यह हुआ कि विट्ठल मंदिर सबके लिए खुला कर दिया गया और इसे साने गुरुजी के संघर्ष की सफलता माना जाता है, यह भी श्री वारे ने कहा.

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