*नारद बघेली
“जिंदगी तो अपने दम पर ही जी जाती है..
दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं !”
सरदार भगत सिंह जी को पाश्चात्य और परजीवी इतिहासकारों ने आतंकवादी बताया है तो इन्हीं के स्वरों को साधते हुए शातिर वामपंथी इतिहासकारों ने मार्क्सवादी साहित्य पढ़ने के कारण उन्हें वामपंथी चाशनी में लपेटने की कोशिश की है जबकि वास्तविकता कुछ और है ! जब वामपंथियों को यह एहसास हुआ कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान नगण्य है तो 1957 से भगतसिंह को अपनी विचारधारा में लपेटने लगे और इसको अंजाम तक वामपंथी इतिहासकार विपिन चंद्रा ने 1990 में पहुँचाया। भगत सिंह पर असल प्रभाव किसका पड़ा था यह बात इससे अच्छी तरह समझी जा सकती है कि 1920 के आसपास जब भगत सिंह और सहदेव, “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” (HSRA) के लिए सदस्यों को भर्ती कर रहे थे तब उसकी पहली शर्त यह होती थी की हर नए सदस्यों ने निकोलई बुखारीन और एवगेनी परोबरजहसंस्की की “ऐबीसी ऑफ़ कम्युनिज्म”, डेनियल ब्रीन की “माय फाइट फॉर आयरिश फ्रीडम” और चित्रगुप्त (जो एक छद्म नाम था) की “लाइफ ऑफ़ बैरिस्टर सावरकर” पढ़ना आवश्यक है। इन तीनों किताबो में कोई भी लेनिन या कार्ल मार्क्स ने नहीं लिखी है। साम्राजयवाद के विरुद्ध क्रांति की प्रेरणा जितनी उन्हें वामपंथियों के तौर तरीकों से मिली थी, उतनी ही उन्हें आयरलैंड के क्रांतिकारियों से मिली थी।
यहां यह जानना आवश्यक है कि HSRA, रामप्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर आज़ाद की एचआरए (HRA) का नया रूप था जिसका नामकरण, “आयरिश रिपब्लिकन आर्मी” से प्रेरित हो कर “हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी” रखा गया था। इससे पूरी तरह साफ है कि भगत सिंह और उनके साथियों का वामपंथी विचारधारा से कोई लेना देना नहीं था। उपरोक्त किताबों में सबसे महत्वपूर्ण किताब चित्रगुप्त की “लाइफ ऑफ़ बैरिस्टर सावरकर” थी। यह किताब विनायक दामोदर सावरकर की जीवनी थी जो उन्होंने छद्म नाम चित्रगुप्त के नाम से लिखी थी। इस किताब को पढ़ना और समझना हर HSRA के क्रन्तिकारी सदस्य के लिए अनिवार्य था। सिर्फ यही ही नही, बल्कि इस प्रतिबंधित किताब को छपवाया और उसका वितरण भी करवाया जाता था। जब लाहौर अनुष्ठान के बाद क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियां हुईं थी तब यही एक ऐसी किताब थी जो सारे क्रांतिकारियों के पास से जब्त की गयी थी।
अब आप बहाली-भांति यह समझ सकते है कि कांग्रेस ने वामपंथियों के झूठ को क्यों प्रचारित होने दिया ! कांग्रेस हमेशा से ही सावरकर और भगत सिंह के बीच के सत्य को जहां दबा कर रखना चाहती थी वहीं ‘सावरकर’ के विशाल व्यक्तित्व और उनकी आज़ादी की लड़ाई में योगदान को, दुष्प्रचार के माध्यम से कलंकित करके, राष्ट्रवादी विचारधारा को दबाये रखना चाहती थी। भगत सिंह और उस काल के सभी क्रन्तिकारी, स्वतंत्रता सेनानी सावरकर जी से न केवल प्रभावित थे बल्कि ये नवजवान एक सच्चे राष्ट्रवादी थे। उनकी भारत के भविष्य को लेकर दृष्टि बिलकुल साफ़ थी। वो भारत को, अंग्रेजो की गुलामी से ही सिर्फ आज़ाद नही कराना चाहते थे बल्कि वो भारतवासियों के राजनैतिक के साथ, सामाजिक और आर्थिक आज़ादी का भी सपना देखते थे।
आज शहीद सरदार भगत सिंह जी के जन्मदिवस पर यह रहस्योद्घाटन उन्हें उनके बलिदान का सही समादर और सच्ची श्रद्धांजलि है !
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