अपने कई अनैतिक कार्यों के लिए ज़िंदगी भर विवादों में रहने वाले पाक वैज्ञानिक डॉ खान का कोविड से निधन
![आलोक लाहड](https://www.samagrabharat.com/wp-content/uploads/2021/10/AlOK-lahad-spain-.jpeg)
आलोक लाहड
“पाकिस्तान के परमाणु बम के जनक” कहे जाने वाले डॉ अब्दुल कादिर खान का 85 वर्ष की आयु में कोविड -19 के साथ अस्पताल में भर्ती होने के बाद निधन हो गया है।
अपने देश को दुनिया की पहली इस्लामी परमाणु शक्ति में बदलने के लिए डॉ खान को एक राष्ट्रीय नायक के रूप में सम्मानित किया गया था, किंतु कुछ वर्षों से वह उत्तर कोरिया और ईरान सहित कुछ दुष्ट राज्यों को परमाणु रहस्यों की तस्करी करने के लिए भी कुख्यात था।
एक्यू खान को, पश्चिमी जासूसों दुनिया के सबसे खतरनाक व्यक्तियों में से एक मानते थे। चाहे वह अपने देश में आरंभ में महानायक के रूप में सराहया जाता था और बाद में एक परमाणु तस्करी में पकड़े जाने के कारण पाकिस्तान के दुष्ट जनरलों और भ्रष्ट नेताओं द्वारा बाली का बकरा बना दिया गया जिसे वुहान वारिस ने हलाल कर दिया।
परमाणु हथियार प्रौद्योगिकी के प्रसार में सहायता के लिए ए क्यू खान, शायद, किसी भी अन्य व्यक्ति से अधिक जिम्मेदार थे। उसने अपने देश के परमाणु कार्यक्रम में मदद की लेकिन फिर ईरान, उत्तर कोरिया और लीबिया सहित अन्य लोगों के लिए कुछ जानकारी का प्रसार किया। परमाणु तकनीक की तस्करी किस हद तक पैसे, इस्लामिक विचारधारा या पाकिस्तान के भ्रष्ट नेतृत्व, चाहे वह राजनेतिक हो या सैन्य, हमेशा संदिग्ध रहा है।
पश्चिमी देशों के लिए परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना सर्वोच्च प्राथमिकता रही है, और सीआईए और एमआई6 ने खान के नेटवर्क को गिराने में मदद की जो वैसे भी चोरी की गई तकनीक थी जो उसने हॉलैंड के उरेंको ग्रुप में काम करते हुए चुराई थी।
वैसे बता दें कि खान का जन्म भारत के भोपाल शहर में हुआ था। 1952 में वह कराची चला गया जहां उसने कराची में भी पढ़ाई की और उसके बाद जर्मनी चला गया। बाद में उसने हॉलैंड की एक यूरेनियम समृद्ध करने वाणी एक कंपनी में नौकरी कर ली। भारत के लाफिंग बुद्धा परमाणु परीक्षण के बाद उसके दिमाग में पाकिस्तान के लिए परमाणु बॉम्ब बनाने की सूझी, उसने तत्काल पाकिस्तान के प्रधान मंत्री से संपर्क किया और चोरी किए नक्शों से इस्लामी देशों की आर्थिक मदद द्वारा इस्लामिक बन बनाने में लग गए।
उसने इस्लामाबाद के पास कोटा में पाकिस्तान का पहला परमाणु संवर्धन संयंत्र स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1998 में उसकी मदद से अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। पाकिस्तान में भारत के प्रति द्वेष के कारण उसे बहुत सेहराया गया और वह राष्ट्र नायक बन गया। इस धमाके के कारण पाकिस्तान को दुनिया की सातवीं परमाणु शक्ति के रूप में देखा जाने लगा।
उसका यह मानना था की यदि पश्चिमी देशों को अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु हथियार रखने की अनुमति है तो दूसरों को समान क्षमता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। पश्चिमी देश एक ओर इसे वैश्विक खतरे के रूप में देखते थे किंतु दूसरी और शीत युद्ध के रहते पाकिस्तान को मित्र मान कर इसे अनदेखा कर रहे थे। कुछ लोग कहते हैं की पाकिस्तान में महानायक होने के पश्चात भी खान बहुत दौलत नही कमा सका और लालच में उसने परमाणु टेक्नोलॉजी दुष्ट राष्ट्रों को बेचनी शुरु कर दी। दूसरे कहते हैं की इसमें पाकिस्तानी भ्रष्ट फौज और राजनीतिज्ञ का भी हाथ था। यह भी कहा जा रहा है की यह या तो परमाणु परीक्षण के लिए उधार लिए पैसे को वापिस देने या परमाणु शोध को आगे बढ़ाने के लिए पैसा बटोरने के लिए परमाणु तकनीक को बेचा जा रहा था क्यों की कंगाल पाकिस्तान के पास इसके लिए पैसा नही था। अन्य देशों के परमाणु रहस्यों पर उसने जो खुलासे किए, उसने पाकिस्तान को झकझोर दिया और 2004 में उसे ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया के साथ अवैध रूप से परमाणु तकनीक साझा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
एक टेलीविज़न संबोधन में, डॉ खान ने अपने “गहरे खेद और बिना शर्त माफी” की पेशकश की। पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति वह तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने खान को माफ तो कर दिया, लेकिन उसे 2009 तक नजरबंद रखा गया। उसकी परमाणु प्रसार के विचारों और इस दिशा में उसके काम के कारण पश्चिम के कई देशों नाराज हो गए, और उसे “हमेशा के सबसे बडे परमाणु प्रसारक” की उपाधि दी गई।
उसके निधन पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने कहा, “उन्होंने राष्ट्र को बचाने वाली परमाणु प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में हमारी मदद की और एक आभारी राष्ट्र उनकी सेवाओं को कभी नहीं भूलेगा।” प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट किया, “हमें परमाणु हथियार संपन्न देश बनाने में उनके महत्वपूर्ण योगदान के कारण उन्हें हमारे देश ने प्यार किया।” पाकिस्तान में वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाने में अपनी भूमिका के लिए गर्व के प्रतीक तो बना पर उसके साथ भी वही हुआ जो किसी भी पाकिस्तानी के साथ होता है, चाहे वह जिन्ना की बहन हो, भुट्टो हो या फिर बेनजीर सभी को बदनामी ही मिली। दूसरी ओर भारत में डा अब्दुल कलाम को मिली न केवल राष्ट्रपति बनाया गया बल्कि उन्हें वह प्रतिष्ठा मिली जो भारत अपने महानायकों को देता है।
आलोक लाहड बार्सिलोना (स्पेन)
Comments are closed.