समग्र समाचार सेवा
हेग, 20 फरवरी। म्यांमार पर रोहिंग्या नस्ली अल्पसंख्यकों के नरसंहार का आरोप वाले अंतरराष्ट्रीय मामले की संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत में सोमवार से सुनवाई शुरू हो रही है। यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि म्यांमार के सैन्य शासकों को देश का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं।अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में सोमवार से चार दिन की सार्वजनिक सुनवाई शुरू होगी। म्यांमार ने अफ्रीकी देश गांबिया द्वारा लाए गए मामले पर प्रारंभिक आपत्ति दर्ज कराई है।
अफ्रीकी देश ने मुस्लिम राष्ट्रों के संगठन की तरफ से कदम उठाया
अफ्रीकी देश ने मुस्लिम राष्ट्रों के संगठन की तरफ से कदम उठाया है। मुस्लिम देशों के संगठन ने म्यांमार पर रो¨हग्या के खिलाफ अपने अभियान में नरसंहार करने का आरोप लगाया है।म्यांमार की सेना ने रोहिंग्या उग्रवादी समूह द्वारा किए गए हमले के जवाब में अगस्त 2017 में देश के पश्चिमी हिस्से में स्थित रखाइन प्रांत में आपरेशन क्लीन चलाया था। इस कारण सात लाख से ज्यादा रोहिंग्या को भागकर बांग्लादेश और भारत में शरण लेनी पड़ी। आरोप है कि म्यांमार में सेना ने सामूहिक दुष्कर्म किए, हत्याएं कीं और हजारों घर जला दिए। गांबिया की दलील है कि अभियान नरसंहार प्रस्ताव का उल्लंघन है और कोर्ट म्यांमार को जिम्मेदार ठहराए।
रोहिंग्या सिर्फ मुस्लिम ही नहीं हैं हिंदू भी रोहिंग्या
गौरतलब है कि रोहिंग्या सिर्फ मुस्लिम ही नहीं हैं। हिंदू भी रोहिंग्या हैं। रोहिंग्याओं में भी मुस्लिम बहुसंख्यक और हिंदू अल्पसंख्यक हैं। दरअसल 1826 के बाद अंग्रेज पूर्वी बंगाल से लोगों को अराकान लेकर गए तो उनमें हिंदू भी थे और मुस्लिम भी। आम तौर पर इस प्रांत में रहने वाले सभी लोगों को रोहिंग्या कह दिया जाता है। इसलिए रोहिंग्या जनसंख्या में हिंदुओं की भी गिनती होती है। 1982 के बर्मीज सिटिजनशिप ला के तहत रोहिंग्याओं को म्यांमार की नागरिकता देने से इनकार कर दिया गया। म्यांमार में साल 2014 से 2016 के बीच सिर्फ 10 हजार रोहिंग्याओं को देश की स्थायी नागरिकता दी गई। कानून के अनुसार रोहिंग्याओं को म्यांमार की नागरिकता मिलनी चाहिए, लेकिन जातीय भेदभाव के कारण उन्हें नागरिकता नहीं मिलती। जबकि रोहिंग्या को वहां नागरिक अधिकार नहीं दिए जाते हैं। शिक्षा से लेकर नौकरियों में भी रोहिंग्याओं के साथ भेदभाव होता है।
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