![त्रिदीब रमण](https://www.samagrabharat.com/wp-content/uploads/2022/05/Tridib-Raman-227x300.jpg)
त्रिदीब रमण
’न जाने कितनी आंखों में नश्तर सा चुभता है तू
सज़रे-बहारा में क्या ईंट-पत्थर सा रहता है तू’
कहते हैं नाम में क्या रखा है, आज हम जिस शख्स की कहानी यहां बयां करने वाले हैं, एक समृद्ध विरासत की दावेदारी के बावजूद भगवा सफर में इन्होंने उन रास्तों को चुना जो उन्हें सियासत के संक्रमण काल में लेकर गए। चंद दशक पहले साउथ दिल्ली की एक मामूली सी बरसाती से अपनी सियासी यात्रा शुरू करने वाला यह शख्स आज हजारों करोड़ का मालिक है। नोएडा में एक बड़ी कोठी है, एक बेनाम फॉर्म हाउस है और लंदन के पॉश इलाकों में बेटों के मालिकाना हक में फ्लैट्स हैं और भी बहुत कुछ है, पर सियासतदां अपने जुर्म और संपत्तियों को छुपाने में हमेशा सिद्दहस्त होते हैं। ऊंचाईयों को छूने का यह सिलसिला तब शुरू हुआ, जब वाजपेयी के शासनकाल में ये एक महत्वपूर्ण मंत्री के ऑफिस में लग गए। वहां से दुकान सजी तो यह एक बड़े हथियारों के सौदागर के संपर्क में आए, कई बड़ी डिफेंस डील में इनकी महती भूमिका मानी जाती है, उस डिफेंस डीलर ने इस शख्स को धन-धान्य से परिपूर्ण कर दिया। जब उस डिफेंस डीलर पर निजाम बदलने के बाद जांच एजेंसियों की सख्ती बढ़ी तो वह डीलर परिवार समेत लंदन शिफ्ट हो गया। पर इस भगवा राजनेता से उसके तार बदस्तूर जुड़े रहे। उस डीलर ने लंदन के एक पॉश इलाके में अपनी शानदार कोठी खरीद ली और इस भगवा शख्स के बेटे जब लंदन पढ़ने गए तो वह डिफेंस डीलर ही इनके बेटों के ‘लोकल गार्जियन’ की भूमिका निभाता रहा। इस भगवा शख्स ने इसके बाद नोएडा में अपनी एक आलीशान कोठी खरीदी और अपने एक मित्र के गारमेंट एक्सपोर्ट के धंधे में अपना ढेर सारा पैसा लगा दिया। अपनी अच्छी पढ़ाई और नफीस अंग्रेजी की बदौलत उन्होंने भगवा सियासत के एक चमकते नक्षत्र अरूण जेटली का दिल जीत लिया और धीरे-धीरे वे जेटली के बेहद करीबियों में शुमार होते चले गए। जब दिल्ली के निजाम पर मोदी जैसे शक्तिशाली सूर्य का उदय होने वाला था तो इस भगवा शख्स को एक महत्वपूर्ण पूर्वी राज्य का सहप्रभारी भी बनाया गया पर जैसे-जैसे मोदी दरबार में जेटली के आभामंडल में गिरावट आई, इस शख्स ने फौरन पाला बदल भाजपा के नंबर दो का दामन थाम लिया। और धीरे-धीरे सत्ता व सियासत की सीढ़ियां चढ़ते योगी के पहले शासनकाल में कैबिनेट मंत्री हो गए। उन्हें एक बेहद महत्वपूर्ण विभाग से नवाजा गया, पर जब इनके खिलाफ भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की शिकायतें लगातार दिल्ली पहुंचने लगीं तो इनका विभाग बदल कर इन्हें एक मामूली सा विभाग दे दिया गया। इस वर्ष मार्च में जब योगी दुबारा लखनऊ की सत्ता पर काबिज हुए तो उन्होंने इस शख्स को बाहर का दरवाजा दिखा दिया। आजकल यह शख्स दिल्ली में रह कर अपने लिए पार्टी संगठन में किसी बड़े पद के लिए लॉबिंग कर रहे हैं, महरौली में रहने वाले इनके एक मित्र कारोबारी जो इत्र के एक बड़े उत्पादक हैं, वे इनके लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं ताकि इनके राजनैतिक प्रार्दुभाव को एक नई उड़ान मिल सके। फिलहाल यह शख्स देश के एक प्रमुख बिल्डर कंपनी के लिए हाउस कीपिंग कंपनी चला रहे हैं। पर सूत्र बताते हैं कि इन शख्स के करतूतों की दास्तां पीएम मोदी के संज्ञान में आ गई हैं, सो लगता नहीं है कि ‘नेटफिलिक्स’ के किसी स्पेनिश माफिया ड्रामा वाले इस प्रतिनायक के किरदार को भगवा राजनीति में फिर से नायक की हैसियत हासिल हो पाएगी।
आखिर पीके और राहुल के दरम्यान हुआ क्या?
प्रशांत किशोर ने लगातार तीन दिनों तक अपनी प्रेजेंटेशन गांधी परिवार के समक्ष प्रस्तुत की, राहुल पहले दिन के प्रेजेंटेशन में मौजूद रहे पर दूसरे दिन उन्हें लंदन की फ्लाइट पकड़नी थी सो वे एयरपोर्ट के लिए निकल गए। तीसरे दिन प्रेजेंटेशन की रात प्रियंका गांधी को भी अमेरिका के कैर्लिफोनिया की फ्लाइट लेनी थी, और अपनी बेटी के पास पहुंचना था, जहां की यूनिवर्सिटी में उनकी बेटी पढ़ाई कर रही है। सो, आखिरी दिन के प्रेजेंटेशन में गांधी परिवार की ओर से सिर्फ सोनिया गांधी मौजूद थीं। सोनिया से बात करते हुए पीके ने एक शब्द का गहराई से इस्तेमाल किया, वह शब्द था-’नॉन निगोशिएबल’ जब इस बात की भनक लंदन में बैठे राहुल को लगी तो उन्होंने वहां से फौरन पीके को फोन लगाया और उनसे जानना जाहा कि ’आखिर ’नॉन निगोशिएबल’ शब्द का आशय क्या है।’ राहुल ने जोर देकर कहा कि ’ऐसे शब्दों को वे पसंद नहीं करते, इससे ऐसे लगता है कि जैसे कांग्रेस बेहद दबाव में है इससे उबरने के लिए पार्टी किसी तारणहार की तलाश कर रही है।’ पीके ने राहुल को समझाना चाहा कि ’आज कांग्रेस की जो दषा है, जहां वह खड़ी है, उसे ‘आउट ऑफ बॉक्स’ जाकर काम करना होगा।’ राहुल का कहना था कि कांग्रेस 135 साल पुरानी पार्टी है, इसमें अलग-अलग विचारधारा के लोग शामिल हैं, सो हमें सबको साथ लेकर चलना जरूरी है। इसके बाद आरजी ने पीके से कहा कि ’बेहतर होगा अगर वे कांग्रेस पार्टी ज्वॉइन कर लें।’ इस पर पीके ने राहुल से जानना चाहा कि ’अगर वे पार्टी ज्वॉइन कर लेते हैं तो उन्हें क्या जिम्मेदारी मिलेगी?’ इस पर राहुल ने कहा कि ’तीन-चार महीने बाद पार्टी को नया अध्यक्ष मिलेगा, वही आपकी जिम्मेदारी भी तय कर देगा।’ फिर पीके ने पूछा-’क्या आप होंगे पार्टी के अगले अध्यक्ष?’ राहुल ने कहा-’यह कांग्रेस संगठन, परिवार और पार्टी के वरिष्ठ नेतागण तय करेंगे। वैसे भी नए अध्यक्ष की घोषणा की खबर आपको टीवी पर मिल जाएगी।’ पीके ने बात आगे बढ़ाते हुए राहुल से पूछा-’क्या आपने अब तक पूरा प्रेजेंटेशन पढ़ लिया है?’ राहुल ने कहा-’नहीं, बस सरसरी तौर पर देखा है।’ पीके ने फिर राहुल से कहा कि ’मैं इसके प्वांइटर्स आपको व्हाट्सऐप्प कर देता हूं। आप एक बार देख लीजिए।’ राहुल ने मना करते हुए कहा कि ’अभी वे सारे प्वांइट्स जयराम को ब्रीफ कर दें, वे मुझे समझा देंगे।’ पीके अपना सा मुंह लेकर रह गए।
राष्ट्रपति चुनाव की भगवा तैयारियां
राष्ट्रपति चुनाव भले जुलाई में होने वाले हों पर भाजपा ने अभी से इसके लिए कमर कस ली है। पिछले दिनों हाईकमान के कहने पर जीवीएल नरसिंहा राव आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी से मिलने पहुंचे, राव से जगन के बेहद पुराने ताल्लुकात हैं, राव ने जगन को भाजपा उम्मीदवार का साथ देने के लिए मनाया। वहीं केंद्रीय रेल और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक से बात करने भुवनेश्वर पहुंचे। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से बिहार भाजपा के संगठन मंत्री निरंतर संपर्क में हैं। वहीं असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने पूर्वोतर के सभी मुख्यमंत्रियों के लिए अरूणाचल प्रदेश के एटानगर में एक दावत रखी थी, जिसमें उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार के लिए उनका समर्थन मांगा। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव डी पुरंदेश्वरी को चैन्ने भेजा गया है, जहां वह गैर द्रुमुक नेताओं से बातचीत कर रही हैं।
राहुल की नेपाल यात्रा
राहुल गांधी की हालिया नेपाल यात्रा खासी विवादित रही है। वैसे तो राहुल के तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक उन्हें इंटक के अमृत महोत्सव (स्थापना के 75वें साल) में हिस्सा लेने केरल जाना था। सनद रहे कि इंटक कांग्रेस समर्थित एक प्रमुख मजदूर संगठन है। पर 3 मई के रोज राहुल सीधे पहुंच गए काठमांडो अपनी एक दोस्त और सीएनएन की पूर्व संवाददाता सुमनिमा उदास के विवाह समारोह में शामिल होने के लिए। जहां काठमांडू के एक पब ’लॉर्ड ऑफ ड्रिंक्स’ से उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। सनद रहे कि सुमनिमा के पिता भीम उदास म्यांमार में नेपाल के राजदूत रह चुके हैं, और दो वर्ष पहले नेपाल द्वारा जारी किए गए विवादित नक्शे के पक्षधर रहे हैं, जिस नक्शे का भारत द्वारा तीव्र विरोध किया गया था। कहा तो यह भी जाता है कि राहुल की ये दोस्त सुमनिमा जब तक सीएनएन के लिए रिर्पोटिंग करती थीं तो वे अपने भारत विरोधी रुख के लिए जानी जाती थीं।
असमंजस में पायलट
सचिन पायलट पिछले दिनों दुबारा सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे और उनसे दो टूक कहा कि ’अगर प्रदेश में सब ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले चुनाव में राजस्थान से कांग्रेस साफ हो जाएगी।’ इस पर सोनिया ने उनसे पूछा कि ’अगर अशोक जी को हटा कर उन्हें वहां का सीएम बनाते हैं तो इस बात के पक्षधर कितने विधायक उनके साथ हैं।’ तो पायलट ने पार्टी अध्यक्ष को बताया कि अशोक गहलोत के डर और दबदबे की वजह से ज्यादातर पार्टी विधायक खुल कर सामने नहीं आ पा रहे हैं, सो अगर पार्टी ’क्लोजड वोटिंग’ करा ले तो बहुमत विधायकों का फैसला पायलट के हक में होगा। सोनिया ने कहा कि ’कांग्रेस में बंद कमरे में गुप्त मतदान की परिपाटी नहीं है। इससे अच्छा होगा कि वे अपने समर्थक विधायकों का दस्तखत लेकर अजय माकन से मिल लें।’ जब इस बात की खबर गहलोत को लगी तो उन्होंने कांग्रेसी विधायकों पर और चाकचौबंद पहरा बिठा दिया है, उल्टे उन्होंने पायलट तक यह संदेशा भी भिजवा दिया है कि ’वे चाहे जितनी भी उछल-कूद मचा लें पर उन्हें सीएम की कुर्सी से कोई हटा नहीं सकते,’ सूत्रों की मानें तो गहलोत ने पायलट को यह भी धमका दिया है कि अगली बार पायलट अपनी विधानसभा सीट से जीत कर दिखा दें। अब बारी पायलट के पलटवार की है।
क्यों निराश हैं वेंकैया
सूत्र खुलासा करते हैं कि देश के उप राश्ट्रपति वेंकैया नायडू की राष्ट्रपति बनने की आस षायद टूट गई है। कहते हैं पिछले दिनों उनके कुछ मुंहलगे पत्रकार उनसे मिलने उप राष्ट्रपति भवन पहुंचे, और वेंकैया की सेवा में मिजाजपुर्सी का समां बांध दिया है। पत्रकारों का कहना था कि अब तो आप मोदी सरकार की तारीफ में लगातार अखबारों में लेख भी लिख रहे हैं, सो देश के अगले राष्ट्रपति के तौर पर आपका नाम पक्का समझा जा रहा है। इस पर वेंकैया ने झुंझलाते हुए कहा-’मुझे ऐसा नहीं लगता। पिछले दो महीनों से मैं पीएम से मिलने का टाइम मांग रहा हूं, जो अब तक मिला नहीं है। इधर जब भी पीएम से मुलाकात हुई है वे लोगों की भीड़ में घिरे थे, अकेले मिलने का टाइम मिले तो मन की बात उनसे शेयर कर सकूं।’
…और अंत में
‘सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस एंड कस्टम‘ में पिछले दिनों बतौर मेंबर एक अहम नियुक्ति हुई है। ये अफसर हैं संजय अग्रवाल, ये पूर्व में मुंद्रा पोर्ट के कमिश्नर भी रह चुके हैं, गुलजार के शब्दों में बयां करे तो ’मैंने मुन्द्रों’ की तरह कानों में तेरी आवाज़ पहन रखी है।’ अब आपको बताना पड़ेगा कि यह आवाज़ किसकी है, वे दुनिया के पांच सबसे अमीर शख्सों में शुमार हैं और जिनकी एक आहट पर सत्ता के हर द्वार खुद ब खुद खुल जाते हैं।
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