पार्थसारथि थपलियाल
भारतीय संवाद परंपरा में मन में उपजे भावों का विचारों में बदलने के बाद दो स्वरूपों में से एक पक्ष को आधार बनाना है। ये दो पक्ष हैं- परामर्श और विमर्श। परामर्श में सलाह, राय, मत, अभिमत आदि शामिल होते हैं जबकि विमर्श किसी विषय पर विचार का आदान प्रदान विमर्श होता है। विचार को सीकर करने से पहले चिंतन, मनन और विवेचन की आवश्यकता होती है। कई बार छोटे मामलों में व्यक्ति चिंतन और मनन के बाद ही निर्णय की ओर बढ़ जाता है जबकि जबकि बड़े विचार के मनन के बाद मंथन की आवश्यकता रहती है। यह मंथन विचार का सांगोपांग विवेचन होता है। विमर्श में गुण और दोष भी शामिल होते हैं। विचार को भलीभांति मथा जाता है जैसे मक्खन बनाने से पहले दही को मथा जाता है। विचार मंथन एक प्राचीन भारतीय परंपरा है। उद्देश्य विशेष के लिए उसका रूप अवश्य बदलता है। देवताओं और दानवों के मध्य समुद्र मंथन एक प्रकार है तो आचार्य मंडन मिश्र और आदि गुरु शंकराचार्य के मध्य शास्त्रार्थ दूसरे प्रकार का मंथन है। समूह चर्चा तीसरे प्रकार का मंथन जिसमें सम्यक ज्ञानवान लोग किसी विषय पर अपना मंतव्य व्यक्त करते हैं। आधुनिक काल में बहुमत भी मंथन के निष्कर्ष का एक फल है।
पंचनद शोध संस्थान, जो कि सकारात्मक विचारों की एक संवाद चौपाल है, का दो दिवसीय मंथन शिविर 14 व 15 जून को कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में आयोजित किया गया। मंथन में 38 वर्षों की संवाद यात्रा का सिंहावलोकन, वर्तमान का दर्शन और भविष्य का चिंतन समाहित था। इस शिविर में 42 इकाइयों में से 28 इकाइयों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। संभागियों की संख्या 69 थी। “पंचनद” का वर्तमान कार्यक्षेत्र जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, हरियाणा और दिल्ली है। पंचनद में भूमिका निभानेवाले अधिकतर लोग वे है जो शिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन अध्यापन कर रहे हैं, कोई प्रोफेसर है, कोई अधिवक्ता है, कोई चिकित्सक है, कोई शोधार्थी है, कोई साहित्यकार है, कोई पत्रकार/मीडियाकर्मी है, कोई ललित कलाओं में है तो कोई प्रेरक के कार्यों से जुड़े हैं। अनुभवी सेवानिवृत्त लोग वटवृक्ष के समान छायादार है। यह संस्थान सामाजिक समरसता के लिए संवाद के माध्यम से “एक: सद विप्र: बहुधा वदन्ति” के घोष वाक्य को चरितार्थ कर रही है। वर्तमान में इस संस्थान के अध्यक्ष माननीय प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाला हैं, जो हरियाणा राज्य उच्चशिक्षा परिषद के अध्यक्ष भी है। प्रोफेसर कृष्ण चंद्र पांडेय इसके निदेशक है और श्री विक्रम अरोड़ा, महासचिव।
इस दो दिवसीय मंथन शिविर में गीता ज्ञान मर्मज्ञ डॉ. स्वामी शास्वता नंद जी महाराज (महामंडलेश्वर, कुरुक्षेत्र),
मा.डॉ. मनमोहन वैद्य, (कार्यपालक अधिकारी प्रज्ञा प्रवाह एवं सह सरकार्यवाह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ), मा.जे नंदकुमार, मा. सतीश कुमार जी (स्वदेशी जागरण मंच) प्रो.बृजकिशोर कुठियाला (अध्यक्ष-पंचनद शोध संस्थान) और डॉ. कृष्ण चंद्र पांडेय (निदेशक पंचनद शोध संस्थान)14 जून को प्रातः उद्घाटन सत्र में मंच पर विराजमान थे। विशिष्ट अतिथियों में प्रोफ़ेसर सोम नाथ सचदेवा (कुलपति, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय) एवं डॉ. संजीव शर्मा, (कुलसचिव, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय), और श्री सुनील ढींगरा, (निदेशक, यू आई ई टी) भी शोभायमान थे।
दो दिवसीय इस मंथन में भारतीय चिंतन में विमर्श की परम्परा, वैचसरिक युद्ध के विविध आयाम, पंचनद की क्षमताएं और दुर्बलताएँ, सांगठनिक परिदृश्य, विभिन्न विभागों की प्रस्तुतियां, भारतीय चिंतन परंपरा, शोध व स्वाध्याय की अनिवार्यता, दैशिक शास्त्र, धर्मपाल शास्त्र, वैचारिक अभियान में पंचनद आदि विषयों पर विद्वान वक्ताओं द्वारा गहन ज्ञान को प्रबुद्ध वर्ग को सरल भाव से व्यक्त किया।
लेखक परिचय -श्री पार्थसारथि थपलियाल,
वरिष्ठ रेडियो ब्रॉडकास्टर, सनातन संस्कृति सेवी, चिंतक, लेखक और विचारक। (आपातकाल में लोकतंत्र बचाओ संघर्ष समिति के माननीय स्वर्गीय महावीर जी, तत्कालीन विभाग प्रचारक, शिमला के सहयोगी)
Comments are closed.