समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 20जुलाई। मोदी सरकार के एक के बाद एक फैसले से पहले ही देश में विरोधी दलों की चिंता बढ़ा दी है। केंद्र सरकार नें राजनैतिक दलों द्वारा जनता को लुटने की आदत को लगाम लगाया है। हालांकि देश में कोविड काल के दौरान कारोबार में काफी घाटा हुआ है जिसने देश को चिंता में डाल दिया जिसका फायदा विपक्ष ने उठाने की कोशिश की। अब इसी बीच भारतीय अर्थशास्त्रियों की रुपये को इंटरनेशनल करने की मांग को सरकार ने पूरा किया है जिसका फायदा देश को होने वाला है। जी हां भारतीय रिजर्व बैंक ने बड़ा फैसला करते हुए रुपये को इंटरनेशनल कर दिया है। आरबीआई ने जो कदम अब जाकर उठाया है, उसकी मांग भारतीय अर्थशास्त्री पिछले कई सालों से कर रहे थे और भारत के इस कदम से देश को बंपर फायदा होने की संभावना है।*
भारतीय रुपये में इंटरनेशनल ट्रेड शुरू करने के आरबीआई के फैसले के बाद भारत को हार्ड करेंसी में सालाना 30 से 36 अरब डॉलर की बचत हो सकती है और रुपये में कारोबार करने की वजह से कई देशों के साथ व्यापार की गुंजाइश बढ़ सकती है, जिससे रुपये के एक्सचेंज पर प्रेशर कम हो जाएगा।
भारतीय करेंसी रुपये के जरिए शुरू होने वाले इस नये व्यापार तंत्र के जरिए अब रूस के साथ बिना देरी किए व्यापार शुरू किया जा सकता है,जो भारत सरकार के बांडों के लिए भी अनुकूल हो सकता है। इस दौरान भारत को जो सरप्लस भुगतान होगा, उसे एक स्पेशल ‘वोस्ट्रो’ खाते में रखा जाएगा।
वोस्ट्रो खाता एक ऐसा खाता है जो एक बैंक दूसरे बैंक में खोलता है। ये खाते संपर्ककर्ता बैंकिंग का एक अनिवार्य पहलू हैं जिसमें निधि रखने वाला बैंक किसी विदेशी समकक्ष के खाते के संरक्षक के रूप में कार्य करता है या उसका प्रबंधन करता है।
ये वोस्ट्रो अकाउंट भारतीय रुपये में कारोबार के लिए खोला जाएगा, जिसका इस्तेमाल भारत किसी देश के स्थानीय बाजार में व्यापारिक भागीदारी निभाने के लिए और निवेश करने के लिए कर सकता है।
जब कोई देश रिकॉर्ड उच्च चालू खाता घाटे का सामना करता है, यानि, अगर किसी देश की करेंसी डॉलर के मुकाबले गिरने लगती है, तो चुनिंदा देशों के साथ इस तरह के स्थानीय करेंसी में आपसी व्यापार किया जाता है, ताकि डॉलर को देश से बाहर निकलने से बचाया जा सके।
रिजर्व बैंक के इस फैसले से भारत की निर्भरता अब सिर्फ डॉलर्स पर नहीं रहेगी, वहीं दूसरी तरफ अब भारत के लिए रिजर्व बैंक का ये कदम व्यापार घाटे को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।
यूक्रेन संकट के दौरान खुद रूस ने भारत को स्थानीय करेंसी में व्यापार करने का ऑफर दिया था और भारत और रूस के बीच अभी जो पेट्रोलियम का व्यापार हो रहा है, वो चीन की करेंसी युआन के जरिए हो रही है। लेकिन, अब भारत खुद अपनी करेंसी के जरिए ना सिर्फ व्यापार कर सकता है, बल्कि अपने मित्र देशों को भी रुपये के जरिए व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
अप्रैल और मई में रूस को भारत का आयात लगभग 2.5 अरब डॉलर था, जो सालाना आधार पर करीब 30 अरब डॉलर होता है। इस वित्त वर्ष के दौरान यह बढ़कर मासिक औसत 3 अरब डॉलर या सालाना कुल मिलाकर 36 अरब डॉलर हो जाएगा।
इसका मतलब ये हुआ, कि इस साल सामानों के आयात के लिए भारत जो 36 अरब डॉलर रुस को देने वाला था, वो अब नहीं देना होगा। इसकी जगह पर भारत अब रूस के साथ रुपये में कारोबार करेगा, वहीं, रूस को भारत में व्यापार करने के लिए भारतीय मुद्रा भंडार भी मिलेगा, जो भारत के बांड के लिए स्वागत योग्य मांग प्रदान करता है।
रूस के अलावा अब ईरान, अरब देश और यहां तक कि श्रीलंका जैसे देशों के लिए नई दिल्ली के साथ जुड़ने की संभावना के दरवाजे खोलती है। ईरान और रूस के खिलाफ व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध हैं, लिहाजा अब वो काफी आसानी के साथ, बिना प्रतिबंधों का उल्लंघन कि, रुपये में भारत के साथ कारोबार कर सकते हैं।।
*दुनिया के ज्यादातर देश व्यापार करने के लिए विदेशी मुद्रा, जैसे डॉलर, यूरो, रॅन्मिन्बी और पाउंड का इस्तेमाल करते हैं। अब चीन की मुद्रा युआन भी इस्तेमाल की जाने लगी है। लेकिन, डॉलर अभी भी इंटरनेशनल ट्रेड के लिए सबसे प्रभावी मुद्रा बना हुआ है और इसीलिए पूरी दुनिया में अमेरिका की बादशाहत भी है। लेकिन, जैसे जैसे नई करेंसी को इंटरनेशनल किया जा रहा है, डॉलर का प्रभुत्व कुछ हद तक कम हो रहा है।।*
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