पार्थसारथि थपलियाल।
पशिम बंगाल के मंत्री पार्थो बनर्जी इन दिनों प्रवर्तन निदेशालय (ED) के दायरे में हैं। प्रकरण सभी को मालूम है-शिक्षक भर्ती में धांधली के चलते उन्होंने अनाप सनाप भ्रष्टाचार किया। प्रभावित प्रत्याशी जब कोलकाता उच्च न्यायालय गए और उच्च न्यायालय ने विधिक जांच के आदेश दिए तो जो परिणाम सामने आए हैं वे चौंकाने वाले हैं।
जिन लोगों की जुबान पर गरीब गुरबा, किसान, मजदूर, दलित, महिला उत्थान की बातें होती हैं अथवा जो लोग कहते कि हम राजनीति में लोक कल्याण की भावना से काम करने की इच्छा से हैं, उनमें से अधिक लोगों के चरित्र को देखें तो उनका चरित्र एकदम विपरीत होता है। राजनेता ही नही नौकरशाह और ठेकेदारों की सांठगांठ से हर योजना 30 प्रतिशत अधिक होती है। यह राशि नेताओं, अधिकारियों और उनके साथ के कर्मचारियों में बंटती है। ट्रांसफर तो इनकी काम धेनु है। बंगाल में ममता बनर्जी सरकार में मंत्री पार्थो चटर्जी की करीबी अपराजिता के घर पर जिस तरह करोड़ों भारतीय रुपयों की गड्डियां देखने को मिली उसने यह सब सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि जनप्रतिनिधियों के लिए कुछ न कुछ ऐसी व्यवस्था ऐसी हो जिससे भविष्य किसी की पदीय दुरुपयोग करने की हिम्मत न हो सके। कुछ माननीयों के नाम याद दिला दें जिन पर कोर्ट की सील लगी है- सुखराम, सुरेश कलमाडी, प्रकाश जायसवाल, वी एस येदयुरप्पा, ए राजा, कनी मोझी, नवीन जिंदल, लालू यादव, मुलायम सिंह, शिब्बू सोरेन, स्व. जे जयललिता, मधु कोड़ा, सुशील कुमार शिंदे, अनिल देशमुख, नवाब मालिक और कई दूसरे लोग।
यही नही नाम तो दर्जनों हैं। नामों पर शोध करने की ज्यादा जरूरत नही। ऐसे अनेक जनप्रतिनिधि मिल जाएंगे जिन्हें हर रोज़ एक महिला साथी की आवश्यकता रहती है। कई लोगों के वीडियोज़ सोशल मीडिया में उपलब्ध हैं। हैरानी की की बात तो तब होती, जब गिरे हुए चरित्र के लोग किसी किसी चरित्रवान को कैरेक्टर सर्टिफिकेट अपने हस्ताक्षर से देते हैं।
राहत इंदौरी का ये शेर पढ़ें और विचारें-
बन के इक हादसा बाजार में आ जाएगा,
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा
चोर उचक्कों की करो कद्र, की मालूम नहीं,
कौन, कब, कौन सी सरकार में आ जाएगा…
अभी उत्तर प्रदेश में एक सुगबुगाहट सुनाई दी। कोई मंत्री त्यागपत्र दे रहा था तो कोई विभाग के लिए रो रहा था। ये नही कि गलती से ऐसा सुना गया हो। आपको याद होगा 1948 में आज़ादी मिलते ही एक जीप घोटाला (V K menon) हुआ था। 1951 में मुद्गल मामला,1958 में मूंधड़ा कांड, 1971 में नागरवाला कांड, 1986 में बोफोर्स तोप घोटाला, 1993 में जेएमएम घूस कांड (शिब्बू सोरेन), 2G, CWG, coal G, अगस्तावेस्टलैंड घोटाला आदि सब के साथ उन लोगों का हाथ रहा, जिन्हें माननीय कहा जाता है लेकिन उनके साथ हम बहन बेटियों को भी सुरक्षित नही मानते।
लोकतंत्र लोक मर्यादाओं से चलता है न कि दादागिरी से।
पार्थो चटर्जी की करीबी अपराजिता के पास जो बेनामी संपत्ति मिली है उससे यह लगता है कि कुछ लोग जनता को इतना भ्रष्ट बना देते हैं कि जनता चुन चुन कर चोरों को जनप्रतितनिधि बना देती है। इस चरित्र के लोगों का हाथ कानून बनाने में बहुत महत्वपूर्ण होता है। वे बोली पर सदैव उपलब्ध रहते हैं।
आये दिन डीजल, पेट्रोल, घरेलू गैस की बढ़ती हुई कीमतें, बढ़ती हुई जनसंख्या और बेरोजगारी, नागरिक आवश्यकता के संसाधन निरंतर मंहगे हो रहे है। हर सुविधा पर टैक्स। आम जनता पिसी जा रही है। सरकार इस पार्टी की हो या उस पार्टी की छुरी कद्दू पर गिरे या या कद्दू छुरी पर काटना तो कद्दू को ही है। पहले आई ए एस अधिकारी आटा में नमक जितना भ्रष्टाचार करते थे। हाल ही में उत्तराखंड, झारखंड और अनेक स्थानों पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी नाम कमा गए हैं।
भारत में आई बी का नाम तो बड़ा है लेकिन काम…। साल में 2-4 बड़े मामले पकड़ लिए। क्या आई बी, सी बी आई या सतर्कता से जुड़ी एजेंसियों को कुछ पता नही चलता कि कौन अधिकारी या मंत्री क्या गुल खिला रहे हैं। सच कहें तो दायां हाथ बाएं हाथ को धो रहा है, भ्रष्टाचार लोकतंत्र में शिष्टाचार बन गया है। मध्य वर्ग झेले महंगाई और बेरोजगारी।
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