समग्र समाचार सेवा
रांची, 15सितंबर। झारखंड में चल रहे सियासी घमासान के बीच गुरुवार को सीएम हेमंत सोरेन ने राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात की। इस दौरान सीएम सोरेन ने राज्यपाल से चुनाव आयोग की सिफारिश की एक कॉपी उन्हें भी उपलब्ध कराने और जल्द से जल्द फैसला करने की अपील की है।
सीएम हेमंत सोरेन ने अपने ऑफिसियल अकाउंट पर ट्वीट किया, ‘आज राजभवन में माननीय राजपाल रमेश बैस जी से मुलाकात कर राज्य में विगत तीन सप्ताह से अधिक समय से उत्पन्न अनापेक्षित और दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों की अनिश्चितता को दूर करने हेतु पत्र सौंपा जिससे इस भ्रम की स्थिति में भाजपा द्वारा किये जा रहे अनैतिक प्रयास से उसे रोका जा सके।’
राज्य में 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय निवासी तय करने और 50 फीसदी से अधिक आरक्षण दिए जाने के झारखंड सरकार के निर्णय को हाईकोर्ट ने वर्ष 2003 में ही असंवैधानिक करार दिया है। हाईकोर्ट के पांच जजों की बेंच (संवैधानिक पीठ) ने कहा था कि सरकार की यह नीति आम लोगों के हित में नहीं है। इस नीति से वैसे लोग स्थानीय होने के दायरे से बाहर हो जाएंगे जिन्हें देश के विभाजन के बाद रांची में बसाया गया था। ऐसे लोग लंबे समय से झारखंड में रह रहे हैं और उन्हें स्थानीय के दायरे से बाहर किया जाना उनके साथ भेदभाव पूर्ण होगा।
अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य के हर इलाके में सर्वे भी नहीं हुए हैं। ऐसे में किसी एक सर्वे को ही आधार माना जाना उचित नहीं है और यह दूसरे लोगों के साथ भेदभावपूर्ण होगा। वर्ष 2002 में ही झारखंड सरकार ने पिछड़ों को 27 आरक्षण देने का प्रस्ताव लाया था। इससे राज्य में आरक्षण की सीमा 50 से अधिक हो गयी थी। यह मामला भी हाईकोर्ट पहुंचा था और पांच जजों की बेंच ने इसे भी असंवैधानिक करार दिया था।
अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 से अधिक आरक्षण नहीं देने का आदेश दिया है। इस आधार पर झारखंड में भी 50 से अधिक आरक्षण को संवैधानिक करार नहीं दिया जा सकता। उस समय अदालत ने झारखंड सरकार से कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में 50 से अधिक आरक्षण देने के लिए एक मामला लंबित है। याचिका पर अंतिम फैसला आने के बाद सरकार हाईकोर्ट में अपनी याचिका दायर कर सकती है।
झारखंड हाईकोर्ट के वरीय अधिवक्ता और संविधान विशेषज्ञ ए अल्लाम के अनुसार 50 फीसदी से अधिक आरक्षण देने पर सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में इसे लागू करने का फॉर्मूला तय किया है। इसके तहत सरकार को अपने सभी विभागों, सभी कार्यालयों में कार्यरत कर्मचारियों का सर्वे कराना है। सर्वे से यह पता लगाया जाएगा कि एससी, एसटी, ओबीसी अत्यंत पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों का अनुपात कितना है। आबादी के अनुसार उनका प्रतिनिधित्व कितना है। उनकी शैक्षणिक स्थिति क्या है। सर्वे के बाद जो आंकड़ा आता है उसके अनुसार ही आरक्षण सीमा बढ़ाने का प्रस्तवा ला सकते हैं। पर झारखंड में ऐसा सर्वे नहीं हुआ है। यदि बिना किसी सर्वे के यह प्रस्ताव आया है तो यह संविधान के खिलाफ होगा और इसे संवैधानिक करार नहीं दिया जाएगा।
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