वामपंथी उग्रवाद के परिदृश्य के संबंध में समीक्षात्मक बैठक आयोजित, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कही ये बातें
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 27सितंबर। वामपंथी उग्रवाद के परिदृश्य के संबंध में विज्ञान भवन, नई दिल्ली में कल यानी रविवार, 26सितंबर को एक समीक्षात्मक बैठक आयोजित की गई है। इस बैठक में सीएम नीतीश ने कहा कि बिहार में पिछले वर्षों में उग्रवादी हिंसा में गिरावट देखी गई है। नक्सली हिंसा का समाप्त होना प्रजातंत्र के सुदृढीकरण तथा समेकित विकास के लिए आवश्यक है। केन्द्र एवं प्रभावित राज्यों की सरकारों को इस लक्ष्य के संदर्भ में आगे की रणनीति तैयार करने के लिए इस प्रकार की बैठक नियमित रूप से हर वर्ष होनी चाहिए।
नक्सली हिंसा देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती है और यह विकासोन्मुखी सरकार की नीतियों के सफल क्रियान्वयन में बाधक बनता है। बीते वर्षों में घटित नक्सली हिंसा की हर घटना ने यह साबित कर दिया है कि इस संगठन का उद्देश्य गरीबों का हित करना नहीं है, अपितु अलोकतांत्रिक और हिंसात्मक तरीकों का प्रयोग कर गरीबों को विकास की मुख्य धारा से वंचित रखना है। इनके कारण गरीब अपने वाजिब हक से तथा क्षेत्र में संचालित विकास योजनाओं के लाभ, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ, संचार के आधुनिक माध्यमों से दूर हो जाते हैं परंतु इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता कि ऐसे तत्व एवं इनके प्रभाव से इन संगठनों में शामिल हुए लोग हमारे समाज एवं देश के ही अंश हैं। नक्सली संगठनों के नेतृत्व एवं संगठनात्मक क्षमता को निष्प्रभावी करने के लिए इन क्षेत्रों में समावेशी एवं सामाजिक-आर्थिक विकास की योजनाएं कार्यान्वित करनी होगी। हमने पुलिस को अधिक जवाबदेह और जनता के प्रति संवेदनशील बनाया है। यदि लोगों की आस्था हमारी व्यवस्था और कार्यप्रणाली में बढ़ेगी तो समाज में इसके सकारात्मक परिणाम होंगे।
नीतीश कुमार ने कहा कि 2018 में राज्य में सुरक्षा संबंधी व्यय योजना से आच्छादित जिलों की संख्या 22 से घटकर 16 हो गई तथा पुनः वर्ष 2021 में यह संख्या 16 से घटकर केवल 10 (रोहतास, कैमूर, गया, औरंगाबाद, नवादा, जमुई, लखीसराय, मुंगेर, बॉका, बेतिया) रह गई है। वर्ष 2018 में अति उग्रवाद प्रभावित जिलों की संख्या 06 थी जो अब घटकर केवल 03 (गया, जमुई, लखीसराय) रह गई है। अति उग्रवाद प्रभावित जिलों की सूची से औरंगाबाद जिले को हटा दिया गया है। औरंगाबाद झारखंड के अति नक्सल प्रभावित पलामू का सीमावर्ती है और पहाड़ एवं जंगलों से आच्छादित है। अतः औरंगाबाद जिला को अति उग्रवाद प्रभावित जिलों की सूची में पुनः शामिल करने की जरूरत है।
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आयाम रखने वाली नक्सली उग्रवाद की समस्या के एक छोटे भाग से पुलिस लड़ सकती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार ने ‘न्याय के साथ विकास’ की समावेशी रणनीति बनाई। विकास से वंचित और भटके हुए लोगों को सामाजिक-आर्थिक मुख्य धारा में वापस लाने के लिए गंभीर विकासात्मक पहल किए गए हैं। वर्ष 2006 में पंचायती राज व्यवस्था में और वर्ष 2007 में नगर निकायों के चुनाव में वंचित लोगों को आरक्षण, महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देकर उन्हें क्षेत्र के विकास के निर्णय लेने का हक दिया गया। सभी थानों में विधि-व्यवस्था और अनुसंधान के पृथ्थकीकरण किया गया है। कानून का राज एवं भयमुक्त शासन स्थापित करना बिहार सरकार की नीति रही है। साम्प्रदायिक सौहार्द्र का वातावरण राज्य के सभी जिलों में कायम है।
सीएम ने कहा कि नक्सली उग्रवाद का सामना करने के लिए राज्य सरकार की बहुमुखी रणनीति में न्याय के साथ विकास के सिद्धान्त पर आधारित वर्ष 2006 में शुरू की गई ‘आपकी सरकार आपके द्वार’ योजना प्रभावित क्षेत्रों में विकास के साथ सुरक्षा प्रदान करने में सहायक सिद्ध हुई। इस योजना के अंतर्गत प्रभावकारी जन सहभागिता द्वारा विकासात्मक कार्यों को संकेन्द्रित कर संतृप्ति की स्थिति तक ले जाया गया तथा विवाद एवं शिकायत निराकरण प्रणाली को अधिक सशक्त एवं प्रभावकारी बनाया गया। राज्य सरकार की इस पहल को काफी सफलता मिली।
बिहार देश का पहला राज्य है जहाँ उग्रवादी तत्वों की गतिविधि पर रोक लगाने के लिए उनके द्वारा अर्जित की गई संपत्ति को जब्त करने की शुरूआत की गई। संगठन को आर्थिक क्षति पहुंचने के कारण इसके अनुकूल परिणाम भी स्पष्ट हैं। वर्ष 2012 से 2018 तक 32 मामलों में 6.75 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की जा चुकी है। अब यही संपत्ति जब्त हो जाने से उनके संगठन क्षमता में कमी आई है।
उग्रवादी संगठन के विरूद्ध वैधानिक कार्यवाही के क्रम में 13 मामलों में 8.76 करोड़ की चल-अचल संपत्ति जब्ती हेतु प्रवर्तन निदेशालय को प्रस्ताव भेजा गया, जिसमें अभी तक 3.01 करोड़ रूपये की चल-अचल संपत्ति जब्त की जा चुकी है। स्पष्टतः इतनी कार्रवाई अपर्याप्त है और नक्सली संगठन के नेताओं के विरूद्ध इसे और व्यापक करते हुए राज्य को भी इस अभियान में मिलाने की आवश्यकता है।
किसी भी पुलिस कार्यवाही अथवा अभियान की सफलता ससमय एवं सटीक आसूचना एवं उसके विश्लेषण पर निर्भर करती है। इसके लिए राज्य सरकार ने विशेष शाखा को अत्याधुनिक संसाधनों से सुसज्जित किया है। आसूचना तंत्र को अधिक पेशेवर, अधिकारी-उन्मुख तथा कार्य केन्द्रित बनाने के लिए पुनर्गठित किया गया है। राज्य पुलिस केन्द्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गये बलों के साथ मिलकर लगातार अभियान चला रही है।
नक्सली हिंसा रोधी अभियान में पुलिस तथा सुरक्षाबलों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है। अभियान को सुदृढ़ बनाए रखने हेतु यह अत्यन्त आवश्यक है कि कठिन परिस्थितियों में भी उनका मनोबल बना रहे। राज्य सरकार द्वारा इस दिशा में भी ध्यान दिया जाता रहा है तथा अभियान के लिए गठित विशेष कार्य बल को मूल वेतन का 40 प्रतिशत अतिरिक्त राशि विशेष प्रोत्साहन राशि के रूप में दी जाती है। नक्सली हिंसा में शहीद होने वाले राज्य पुलिस कर्मियों के परिजनों को अनुग्रह अनुदान एवं अनुकंपा पर नौकरी की व्यवस्था की गई है।
महिला सशक्तिकरण के तहत हमने पुलिस में 35 प्रतिशत आरक्षण दिया है और इसी का नतीजा है कि आज बिहार पुलिस में 23 प्रतिशत से अधिक संख्या महिलाओं की है। उल्लेखनीय है कि महिलाओं की कमाण्डो टीम को विशेष टास्क फोर्स एवं आतंकवाद निरोधक दस्ता में सम्मिलित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। एक अभिनव पहल के तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्र के थारू, संथाल, उरांव और अन्य अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को लेकर ‘बिहार स्वाभिमान बटालियन’ का गठन वाल्मिकीनगर, पश्चिम चंपारण जिला में किया गया है। राज्य सरकार के इस कदम से बगहा एवं वाल्मिकीनगर के जंगल तथा पहाड़ी क्षेत्रों में नक्सलियों का प्रभाव घटा है।
नक्सली उग्रवाद प्रभावित जिलों में लोगों को समाज के मुख्य धारा से जोड़ने के लिए चलाई जा रही विभिन्न विकासोन्मुखी एवं कल्याण संबंधी योजनाओं का नियमित अनुश्रवण मुख्य सचिव, बिहार सरकार के स्तर से किया जाता है जिसके फलस्वरूप केंद्र सरकार द्वारा संचार व्यवस्था के लिए पहचान किए गए बी०एस०एन०एल० के 250 मोबाईल टावर का अधिष्ठापन कार्य राज्य में सबसे पहले पूर्ण कर उन्हें ऊर्जान्वित भी किया जा चुका है। विभिन्न विकासोन्मुखी एवं कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दूरस्थ एवं ग्रामीण इलाकों में पहुँचने से सकारात्मक माहौल बना है।
जहाँ एक तरफ घटनाओं में कमी आना प्रसन्नता का विषय है वहीं घटनाओं का पूर्णतः समाप्त नहीं होना यह इंगित करता है कि नक्सली हिंसा की संभावना अभी भी बनी हुई है, जिसे समूल समाप्त करने की दिशा में अत्यन्त सचेत रहते हुए रणनीति बनाकर अभियानों के साथ-साथ समावेशी विकास हेतु किए जा रहे प्रयासों में और तीव्रता लाए जाने की आवश्यकता है।
नक्सली हिंसा से निबटने के लिये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिए ये महत्वपूर्ण सुझाव-
(क) विशेष आधारभूत संरचना योजना (एस0आई0एस0) 2021-22 के बाद बंद होने की सूचना मिली है। इसे आगे चलाने की आवश्यकता हैं।
(ख) नक्सली हिंसा के विरुद्ध अभियान में यह अत्यन्त आवश्यक है कि पुलिस को आधुनिकतम यंत्र एवं प्रशिक्षण उपलब्ध कराए जाएँ। केन्द्र सरकार द्वारा पुलिस आधुनिकीकरण योजना के तहत राज्यों को सहयोग किया जाता रहा है। समय के साथ अब इस योजना के स्वरूप एवं आयाम को और विस्तार देने की जरूरत महसूस की जा रही है। इस योजना में केन्द्रांश और राज्यांश का अनुपात 60:40 रखा गया है। बिहार जैसे सीमित संसाधन वाले राज्य के लिए यह अनुपात 90:10 किया जाना चाहिए।
(ग) केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा नक्सली उग्रवाद से निपटने की राष्ट्रीय नीति के अंतर्गत सुरक्षात्मक कार्यवाहियों के साथ-साथ विकासोन्मुखी कार्यक्रमों का भी अनुश्रवण किया जा रहा है। प्रभावित जिलों की विशेष स्थिति के कारण निश्चित ही इस दिशा में समेकित पहल करने की आवश्यकता है। हमारा सुझाव होगा कि इन क्षेत्रों के लिए चिन्ह्ति योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लाने और उन्हें समाज के सबसे कमजोर वर्ग तक पहुँचाने के लिए अतिरिक्त निधि उपलब्ध कराई जाए तथा स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप योजना के क्रियान्वयन की प्रक्रिया एवं मापदंडों में संशोधन करने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया जाय।
(घ) नक्सली उग्रवाद के विरूद्ध चलाये जा रहे अभियानों में आधुनिक तकनीक का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग आवश्यक हो गया है। अत्याधुनिक हथियार, ड्रोन, रोबोटिक यंत्र, संचार माध्यमों पर निगरानी आदि तकनीकें न सिर्फ सुरक्षाबलों की सक्षमता बढ़ाती हैं, संभावित जान के खतरे को भी कम करती हैं, जिससे सुरक्षा बलों का मनोबल और भी बढ़ता है। इसके साथ-साथ प्रत्येक राज्य में हेलीकॉप्टर की तैनाती अवश्यंभावी रूप से की जाए, जो सुरक्षा बलों की गतिशीलता को तो बढ़ाता ही है, आवश्यकता पड़ने पर बचाव में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। हम चाहेंगे कि गृह मंत्रालय इस पर पुनर्विचार कर बिहार में अलग से हेलीकॉप्टर की स्थायी तैनाती करे।
(ड.) वर्तमान में बिहार राज्य में 7.5 बटालियन केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बलों को उपलब्ध कराया गया है जिसमें सभी बलों की प्रतिनियुक्ति बिहार-झारखंड के सीमावर्ती जिलों में की गयी है। इन बलों के माध्यम से लगातार अभियान चलाया जा रहा है। वर्ष 2020 में गृह मंत्रालय, भारत सरकार के निदेशानुसार सी0आर0पी0एफ0 की 02 बटालियन बल बिहार से छत्तीसगढ़ राज्य में भेजी गई है, जिससे बिहार राज्य में प्रतिनियुक्त बलों की संख्या घट गयी है। इन बलों के जाने से क्षेत्र में सुरक्षा अंतराल बना है, जिससे अभियान की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। अत्यन्त नक्सल प्रभावित क्षेत्र में अतिरिक्त सुरक्षा कैंप का निर्माण प्रस्तावित है, जिसके लिए अतिरिक्त केंद्रीय सुरक्षा बलों की आवश्यकता है। अतः मै गृह मंत्रालय से अनुरोध करना चाहूँगा कि केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की इन दोनों बटालियनों को बिहार में वापस किया जाए।
(च) नक्सली हिंसा के विरुद्ध अभियान हेतु यह भी आवश्यक है कि राज्यों के सुरक्षाबलों को गहन प्रशिक्षण देकर उन्हें प्रभावी रूप से दक्ष बनाया जाए। केंद्रीय पुलिस संगठनों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में बिहार के लिए अधिक कोटा निर्धारित किया जाए और निःशुल्क प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाय।
(छ) सीएम ने कहा कि अभियान के लिए प्रतिनियुक्त केंद्रीय सुरक्षा बलों पर होने वाले खर्च की प्रतिपूर्ति की नीति की तरफ भी आकृष्ट कराना चाहूँगा। आंतरिक सुरक्षा के लिए नक्सली हिंसावादियों के खिलाफ यह लड़ाई राज्य और केंद्र सरकार की संयुक्त लड़ाई है परन्तु इन बलों की प्रतिनियुक्ति पर होने वाले खर्च को उठाने का पूरा भार राज्य सरकार के कोष पर पड़ जाता है। अतः अनुरोध होगा कि इस खर्च का वहन केन्द्र और राज्य को संयुक्त रूप से करना चाहिए। यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि बिहार सरकार केंद्रीय बलों से संबंधित गृह मंत्रालय को किए जाने वाले भुगतान के प्रति सदैव सजग रही है और वर्तमान में कोई भुगतान लम्बित नहीं है।
नक्सली उग्रवाद के विरूद्ध अभियान केन्द्र एवं राज्य सरकार का संयुक्त दायित्व है। अतः इसका आर्थिक भार भी केन्द्र और राज्यों के बीच बांट कर वहन किया जाना चाहिए।
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