सुश्री मीनू बक्शी जी की गुरु गोविंद सिंह जयंती पर अनुपम भेंट: कवियो बच बेंटी चौपाई, अथवा चोपाई साहिब का शक्तिशाली गायन

आलोक लाहड़
आलोक लाहड़

 आलोक लाहड़

आज गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती है। मेरे लिए गुरु गोविंद सिंह जी असीम आंतरिक मानव शक्ति के प्रतीक हैं। एक ऐसे व्यक्ति की मनःस्थिति की कल्पना कीजिए जिसने अपने पिता, अपने सभी बच्चों और परिवार को खो दिया हो, और सभी की हत्या अत्यधिक निर्मम ढंग से कर दी गई हो। ऐसी परस्थिति में गुरु महाराज उठे और उन्होंने पंत खालसा की उत्पत्ति की। भारत से कोने कोने से चुनकर उन्होंने पंज प्यारो से आरंभ कर एक ऐसी सेना का नियोजन किया जिस ने तब की आत्ताई सत्ता की चूलें हिला दी। यदि आप प्रबंधन के छात्र के रूप में भी इस का अध्यन करे, तो भी आप आश्चर्य चकित हुए बिना नहीं रह सकते की वह कौन सी आंतरिक दैविक शक्ति थी जिस के साथ उन्होंने न केवल स्वयं को केंद्रित किया वरना एक ऐसे पराजित मानसिकता वाले जन समूह से एक विशिष्ठ सैन्य बल का संगठा किया, जो सदियों से उत्पीड़ित था। उन का लेखन अद्वितीय रूप से शक्तिशाली था, विशेष रूप से दशम ग्रंथ। कवियो बच बेंटी चौपाई, जिसे चोपाई साहिब भी कहा जाता है, इसी दशम ग्रंथ से है, जिसे सतलुज के तट पर स्वयं गुरु महाराज ने लिखा था। क्या आप इसके पाठ में शक्ति अनुभव कर सकते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि इस के शब्दों में वह प्शक्ति पारंगत रूप से विद्यमान है। गुरु महाराज ने स्वयं कहा था कि एक शब्द से अधिक शक्तिशाली कुछ भी नहीं है। सर्वोच्च आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता एक शक्तिशाली लेखक भी थे। (उन्होंने संस्कृत, ब्रज और फारसी सहित चार भाषाओं में शिक्षा प्राप्त की थी) दशम ग्रंथ इसका एक उदाहरण है। यहां तक कि उन्होंने औरंगजेब को जो पत्र लिखा वह भी एक उत्कृष्ट कृति है। काश, यह गौरवशाली इतिहास हमें स्कूलों में पढ़ाया जाता। मैं भाग्यशाली था कि मैं पंजाब में रहा, जहां यह इतिहास जनमानस के हृदय में बसता है और गांव के वृद्ध युवाओं को अपना इतिहास सिखाते हैं। भूमि का इतिहास, उसके लोगों का इतिहास और उनके चरम बलिदान की मार्मिक गाथा। एक ऐसे व्यक्ति का इतिहास जिसने जन मानस का हृदय एवं विचार पद्धति बदल डाली और उन्होंने उनकी सर्वोच्च राजनीतिक और आध्यात्मिक मार्ग दर्शक होने के नाते किया। कभी आपने सोचा है कि एक आध्यात्मिक व्यक्ति जनमानस का सर्वप्रिय नेता और योद्धा क्यों बन गया? कभी आपने सोचा है कि गौरैयों को बाजों से लड़ने की शक्ति प्रदान करने वाले को स्वयं यह शक्ति कहां से मिली? कदाचित यह शक्ति दिव्य थी, क्युकी वह एक दिव्य पुरुष थे, साधारण पुरुष ऐसे नही होते। लेकिन उन्होंने अपने लेखन से अपने अनुयायियों को आंतरिक शक्ति दी और यह सिर्फ एक उदाहरण है।

सुश्री मीनू बक्शी जी, जवाहरलाल नेहरू विश्विदालय में स्पेनी भाषा की प्राध्यापिका रही है। इसके साथ साथ वह एक प्रांगत कवित्री एवं गायिका भी हैं। आपने कई गाने और गजलें गाई हैं किंतु अब उन्होंने गुरु गोविंद सिंह महाराज द्वारा कृत चोपाई साहिब जी का नितनेम पाठ हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है। यह उनके गायन को दूसरा स्तर पर ले गया है। मैंने इसे सुना और अपने भीतर गुरु महाराज के शब्दों की शक्ति को अनुभव किया। आरंभ में मीनू जी की गायकी, विशेषकर वह समय जब वह बेगम अख्तर से प्रेरित थी मुझे बिलकुल नहीं भाती थी। उनके बाद के गीत वह गजलें रोचक लगती थी। शायद इस लिए भी क्युकी वह मेरी अध्यापिका रह चुकी है किंतु आज गुरु गोविंद सिंह जयंती के पवन दिवस पर सुश्री मीनू बक्शी जी ने इस शक्तिशाली प्रार्थना को हमारे साथ साझा किया है। इसे सुन कर मुझे लगा की यह मुख से नही हृदय से गाई गई है। गुरुमहराज के शब्दों में आपार शक्ति है, मीनू जी का गायन उस शक्ति को संजोने और व्यक्त करने में सक्षम ही नही बालिक उसे एक अलौकिक स्टार पर ले गया है। कॉविड के इस दौर मैं, जब सभी की मानसिक स्थिति नयूंतन स्तर पर है, मीनू जी की यह अनुपम देन सार्थक ही नही सामायिक भी है। गुरुगोविंद सिंह जी के प्रकाश दिवस के अवसर पर इस प्रस्तुति के लिए में उनका आभारी हुं और अब सभी के साथ इसे सांझा कर रहा हूं। आप इसे प्रतिदिन अमृतवेले में सुने, इस के श्रवण एवं पाठ से आपने विचलित मन को शांति भी मिलेगी और स्फूर्ति भी। इस से अनुपम भेंट इस समय मैं दूसरी नही हो सकती। गुरु महाराज सर्वत दा भला बकक्षण।

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