आह अमेरिका,बाय-बाय ट्रम्पस अमेरिका

कुमार राकेश
कुमार राकेश

*कुमार राकेश

वाह अमेरिका,आह अमेरिका.हाय हाय अमेरिका.हाय ट्रम्प वाला अमेरिका ,बाय ट्रम्प अमेरिका .कभी हँसता तो कभी रोता अमेरिका .232 वर्षो के स्वतंत्र अस्तित्व वाला अमेरिका .बड़े-बड़े  विद्वानों वाला अमेरिका ,कभी ट्रम्प व उनके जैसे मूर्ख व्यवहारो से युक्त भक्तो वाला अमेरिका.कभी सोचा  नहीं होगा अमेरिका ने .उसे ऐसे बुरे दिनों से पाला पड़ेगा.एक ही झटके में अमेरिका के माथे पर उसके ही निर्वाचित राष्ट्रपति पूरे देश को कलंकित कर देगा.न भूतो,न भविष्यति.सच में अमेरिका में 6 जनवरी 2021 को जो हुआ,वो एक ऐसा कलंक लग गया अमेरिका के माथे पर ,जिसे मिटाना इतना आसान  नही होगा.

शायद इसलिए अमेरिका के नव नियुक्त राष्ट्रपति जो बायडेन ने ट्रम्प समर्थको के असभ्य उपद्रव पर एक सभ्य टिप्पणी की .उनका कहना था  कि ये विरोध नहीं विद्रोह हैं ,देश द्रोह हैं.बायडेन के साथ भारत ,फ़्रांस,जर्मनी जैसे कई देशों ने अमेरिकी संसद भवन के उस हमले की कड़ी निन्दा की है .उस उपद्रव को लोकतंत्र का घोर अपमान बताया है.

ये क्या हो गया था अमेरिका को ,किसका श्राप लग गया या अपने कारणों व कर्मो का श्राप .दम्भ का श्राप या ट्रम्प के इशारे पर वैश्विक उद्द्दंद्ता का परिणाम ? पर कुछ भी हो ,जो भी हुआ ,अमेरिका में बहत बुरा हुआ.

क्या सोचा था बेचारे ट्रम्प ने,वो दोबारा  जीतेंगे.फिर राष्ट्रपति बनेगे,पर नहीं बने.उसका कारण उनका बडबोलापन.झूठ की सियासत,उनका दंभ,अहंकार और आम लोगो के आम नागरिक का व्यवहार नहीं करके एक तानाशाह की भांति व्यवहार.उसके बाद वही हुआ ,जो होना था.पिछले साल नवम्बर 2019 में अमरीकी चुनाव हारने के बाद 20 जनवरी 2021 को अमेरिका में सत्ता का हंस्तान्तरण होना है ,उसके महज़ 14 दिन पहले अमेरिकी संसद भवन –कैपिटोल हिल पर ट्रम्प समर्थको का तांडव.मत पूछिए ,ऐसा दृश्य पहली बार विश्व क सबसे शिक्षित व सम्भ्रांत कहे जाने वाले अमेरिका में कभी किसी ने नहीं देखा होगा .न ही अब देख सकेगा.एक पुलिस वाला सहित 5 लोगो की मौत. 60 से ज्यादा लोगो हताहत भी हुए.

आखिर उस उपद्रव से क्या दिखाना व बताना चाहते थे श्री ट्रम्प महाराज.पूरे विश्व को क्या संदेश देना चाहते थे कि आज भी उनके साथ अमेरिका या वहां के छटें हुए उपद्रवी लोग हैं .जो उनकी अंधभक्ति में कुछ भी कर सकते हैं.अमेरिकी लोकतंत्र में सत्तासीन राष्ट्रपति के शह पर ऐसा नंगा नाच आजतक किसी ने नहीं देखा होगा,न ही भविष्य में देखेंगा.अब तो महज़ 12 दिन बचे है ट्रम्प को वाइट हाउस से रुखसत होने में .लेकिन दोनों पार्टियों रिपब्लिकन और डेमोक्रेट  ने तय कर किया है ट्रम्प महाराज ऐन-केन प्रकारेण जल्द ही वाइट हाउस भी छोड़कर चले जाये.बहुत जग हंसाई करवा दी ,अब और बर्दास्त नहीं .7 जनवरी को नव नियुक्त राष्ट्रपति जो बायडेन ने टीवी पर अपील की कि ट्रम्प को देश से माफ़ी मांगनी चाहिए,लेकिन ट्रम्प नहीं माने ,उलटे कहा ,वो कभी भी वाइट हाउस से जाने को तैयार है.यदि ऐसा ही था .अमेरिकी संसद भवन पर वैसा हंगामा क्यों करवाया ,शायद इसे ही कहते हैं –सौ चूहे खाकर-बिल्ली चली हज को .वैसे अमेरिका के दोनों सदनों के ज्यादातर सांसदों ने ट्रम्प के खिलाफ संविधान की धारा 25 ए के तहत राष्ट्रपति पद से हटाने को लेकर आमादा हैं .सब अपनी अपनी जिद पर अटल हैं.यहाँ तक आज के हालातों के मद्देनजर 95 प्रतिशत से रिपब्लिकन पार्टी के ही ज्यादा सांसद ट्रम्प  के खिलाफ हैं .अब ट्रम्प के अमेरिका में दुर्दिन शुरू हो गए हैं.

अब अमेरिका को नए ढंग से परिभाषित किया जायेगा.ट्रम्प के पहले और बाद का अमेरिका.जो भी हुआ ,अत्यंत निंदनीय है.उसकी जितनी भर्त्सना जितनी भी की जाये, वो कम हैं . अमेरिका के इस उद्दंड दृश्य को न तो इसके  पहले दुनिया ने देखा था.न कभी देखेगा.जो हुआ बहुत बुरा हुआ .ऐसा लगा कि कोई बड़े आतंकवादी गिरोह ने अमेरिका के संसद पर हमला बोल दिया. वो भी हल्ला बोल शैली में .पहले प्रदर्शन के लिए लोग एक जगह इकठ्ठा हुए. फिर नारे बाज़ी की.फिर सुरक्षा कर्मियों के रोक के बावजूद संसद में अन्दर घुस गए.तोड़फोड़ करें की कोशिश की.वो करीब 4 घंटे का हंगामा पूरे मेरिका और अमेरिकन के व्यक्तित्व पर एक बड़ा काला धब्बा छोड़ गया.जिसे अमेरिका के साथ पूरा विश्व कभी नहीं भूल सकता.सबके हाथ में अमेरिका के झन्डे ,पर सब लग रहे थे बड़े बड़े गुंडे ,वो भी पढ़े लिखे.क्या यही लोकतंत्र है .स्थितियों को ऍन केन प्रकारेण नियत्रण में लाया जा सका.

नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बायदेन ने अमेरिकी टेलीविजन पर जाकर सबसे अपील की .मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से अपील की कि वे अपने समर्थको को ऐसा हंगामा करने से रोके.तोड़ फोड़ से रोके.पूरा देश उस वक़्त सकपका गया जब उन उपद्रवियों के पास से बम,कारतूस व अन्य अस्त्र बरामद हुए.उस अफरातफरी में  5 अमरीकन नागरिकों की असमय  मौत भी हो गयी . आखिर ऐसा क्यों ? क्या ऐसा करने से श्री ट्रम्प को हारी हई सत्ता फिर से वापस मिल जाएगी .आखिर ट्रम्प इतने परेशान क्यों है ? इतने व्याकुल क्यों हैं ? फिर से सत्ता पाने के लिए ,वो भी घोर अलोकतांत्रिक तरीको से .क्या इससे उन्हें वो सत्ता वापस मिल जाएगी ? मेरे को लगता है ,अब तो कतई नहीं ,कभी नहीं ..फिर जान बूझकर ट्रम्प ने ऐसा क्यों किया ? क्या दिखाना चाहते थे .क्या बताना चाहते थे वो दुनिया को ? क्या वो अपनी ताक़त से विश्व या अमेरिका को बताना चाहते थे .ट्रम्प का स्वाभाव शुरू से ही जिद्दी ,हठी ,तुनकमिजाज़ वाला रहा है.उसका मुख्य कारण पैसो का साम्राज्य बताया जाता है .आज तक अमेरिका के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ ,ऐसा लगता है कि भविष्य में भी कभी नहीं होगा.अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में स्थानीय मेयर ने आपत्काल लागू कर दिया है .गौरतलब है अगले 20 जनवरी को अमेरिका में आम चुनाव परिणाम के बाद सत्ता का हंस्तानतरन होना है और अभी भी अमेरिका की राष्ट्रपति  पद पर आसीन श्री डोनाल्ड ट्रम्प को उस गद्दी से उतर कर वाइट हाउस को खाली करना है .

चुनाव में हार के बावजूद सत्ता में बने रहने के लिए ट्रम्प महाराज ने हर वो रास्ता तलाशा,उस पर अमल किया.परन्तु हर वक़्त जीत की हार के स्वप्न को संजोने वाले ट्रम्प इस बार करारी –खाली पीली हार मिली.इससे वो बौखलाए.एक मज़े हुए नहीं बल्कि एक बचकानी हरक़त से स्वयं को पुनः राष्ट्रपति बनाये रहने के लिए उच्चतम न्यायालय,पेंटागन ,चुनाव आयोगों को चुनौती जैसे हर सम्भव कार्य किया.परन्तु हर मोड़ पर उभे हताशा ही नसीब हुयी.सच कहते ई ,पैसे से सब कुछ नहीं ख़रीदा जा सकता.क्योकि ट्रम्प जीवन के सभी शक्तियों के केंद्र सिर्फ धन को मानते है ,जो इस बार उनके काम नहीं आई.अब आने वाले दिन उनके घर दुर्दिन से भरे होंगे ,लोग कुछ बोल देंगे,पर बचाने कोई नहीं जायेगा.जैसी करनी.वैसी भरनी

वाशिंगटन डीसी  स्थित अमेरिकी संसद भवन कैपिटोल हिल के उस हंगामें  के परिपेक्ष्य में मेरे सामने वो पूरा विशाल भवन की यात्रा दृश्य घूम जाता हैं.वैसे तो 2007 से अब तक मेरी अमेरिका की कई यात्रायें  हो चुकी है ,परन्तु वो 2015 में मैंने अपनी पत्नी सरोज के साथ एक अलग ही यात्रा थी.उस दरम्यान हमने अमेरिकी संसद की कार्यवाही देखी थी.चप्पे चप्पे पर सुरक्षा का घेरा देखा था.अपने भारत से तुलना भी की थी .वैसे अमेरिकी सीनेट की कार्यवाही व बहस भारत की तुलना में वो स्तरीय नहीं लगी.ये बात दीगर है कि भारत व अन्य देशो की तरह अमेरिका के संसद में भी बहस का स्तर तुलनात्मक तौर पर नीचे गिरा है.

बहरहाल यदि सुरक्षा की बात करे तो उस व्यवस्था में कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता ,तो हजारो की संख्या में उस भवन के अन्दर तक वे उपद्रवी कैसे पहुंचे,ये सोच,चिंता व अमेरिकी सरकार के लिए अनुसन्धान का विषय हो सकता है.

*कुमार राकेश

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