मणिपुरी पत्रकार का अपहरण और रिहाई: प्रेस स्वतंत्रता पर गंभीर खतरा

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,18 फरवरी।
11 फरवरी 2025 की सुबह, पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर में एक वरिष्ठ पत्रकार यंबेम लाबा का अपहरण कर लिया गया। इस घटना ने पत्रकारिता जगत में गहरी चिंता पैदा कर दी। प्रेस स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए काम करने वाले वैश्विक संगठन प्रेस एमब्लेम कैंपेन (PEC) ने तुरंत उनके बिना शर्त रिहाई की मांग की। कुछ घंटों बाद, जब कई संगठनों और पत्रकारों ने आवाज उठाई, तो लाबा को सुरक्षित रिहा कर दिया गया।

क्यों हुआ अपहरण?

स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, इंफाल के उरिपोक इलाके में स्थित अपने घर से यंबेम लाबा को कुछ सशस्त्र लोगों ने अगवा कर लिया। वह उस वक्त नाइट ड्रेस में थे और उन्हें कपड़े बदलने तक का समय नहीं दिया गया। उनके अपहरण के पीछे का कारण एक टेलीविजन डिबेट में की गई उनकी टिप्पणी थी, जिसमें उन्होंने गलती से एक प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन को “समर्पित समूह” कह दिया था, जबकि वह संगठन भारत सरकार के साथ संघर्षविराम समझौते में था। इस टिप्पणी के बाद, उन्हें कट्टरपंथी गुट का निशाना बनना पड़ा।

मणिपुर में बिगड़ते हालात और पत्रकारों की चुनौतियाँ

69 वर्षीय यंबेम लाबा, जो अंग्रेजी अखबार ‘द स्टेट्समैन’ से जुड़े हुए हैं, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते हैं। इससे पहले भी उन पर हमले हो चुके हैं, और कुछ महीनों पहले उग्रवादियों ने उनके घर के बाहर गोलियां चलाई थीं। मणिपुर में बीते कई महीनों से जातीय हिंसा जारी है, जिसमें 250 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। मेइती और कुकी समुदायों के बीच बढ़ते तनाव ने राज्य में अस्थिरता बढ़ा दी है, जिससे पत्रकारों के लिए निष्पक्ष रिपोर्टिंग करना बेहद खतरनाक हो गया है।

प्रेस स्वतंत्रता पर हमला

PEC के अध्यक्ष ब्लेज़ लेम्पेन ने कहा, “कोई भी पत्रकार, चाहे वह राज्य या गैर-राज्य संगठनों की आलोचना करता हो, उसे शारीरिक रूप से नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। पत्रकारों को कानूनी और तार्किक रूप से अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, भले ही वे राजनेताओं या उग्रवादियों को पसंद न आएं।”

यह घटना सिर्फ यंबेम लाबा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के सामने एक बड़ी चुनौती को दर्शाती है। अगर पत्रकारों को सच बोलने पर डराया-धमकाया जाएगा, तो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी।

निष्कर्ष

यंबेम लाबा की रिहाई एक राहत की खबर है, लेकिन यह घटना पत्रकारों की सुरक्षा और प्रेस स्वतंत्रता को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े करती है। सरकार और स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि वे ऐसे मामलों में कठोर कार्रवाई करें और सुनिश्चित करें कि पत्रकार बिना किसी भय के अपने कर्तव्य का पालन कर सकें। मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए सभी पक्षों को संवाद और आपसी समझदारी से हल निकालना होगा, अन्यथा यह संकट और गहराता जाएगा।

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